Wednesday, June 10, 2009

राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन शहर की आवोहवा से परेसान हो सड़क का किनारे बैठा सोचा रहा था कि,क्या किया जाए इस समस्या से कैसे निजात पाई जाए, जब की सही यह है की उसके बाप को भी पता नही है कि शहर कि आवोहवा को , कैसे ठीक किया जाए किनारे लगे नल में पानी नही आ रहा था कि वह पानी ही पी ले और व्यवस्था के विरोध में उठते ज्वार भाटे को शांत कर ले इतने में ए़क भट सूअर ठेर सारा धुँआ उसके पास छोड़ कर अपनी रफ्तार से मंजिल कि और बठा चला गया ,इस अनचाहे धुएं ने रामखिलावान कि सोच में खलल दल दिया ,उसके मुह से गाली निकलने ही वाली थी लेकिन यह सोच कर नही निकल पाई कि साला सुनेगा कौन राम खिलावन के लिए साला कोई गली नही मात्र संबोधन है जिसे वे कभी भी किसी के लिए निसंकोच उपयोग कर लेते है
राम खिलावन सोच रहे थे कि नल है मगर पानी नही आ रहा ,अस्पताल है पर डाक्टर नदारत है कम्पौंदर ही डाक्टर बने बैठे है और मरीजो को टंच कर रहे है दोनों मरीज और कम्पौंदर भ्रम में जी रहे है कम्पौदर सोच रहा है कि मै डॉक्टर से कम नही और मरीज सोच रहा है कि मै कम्पौदर साहब कीलिखी दवाओ के असर से ठीक हो गया हूस्कुल है पर मास्टर नही आता ,गुरु जी है लौडो को क्या पठा रहे है उन्हें ख़ुद ही पता नही गुरु जी है ,पालनहारा की यह अनुपम कृति है ,उपहार है ,प्रदेश के नौनिहालों के लिए गुरु जी ,जो ज्यादातर अपने को नियमित करने और वेतन के अड़पेचो के सुधारवादी कार्यक्रम में लगे रहते है और फ़िर,जब भी वक्त मिलता है स्कुल का चक्कर लगा आते है
क्या होगा इस देश का प्रदेश का ? रामखिलावन शहर की एक सड़क के किनारे पद्माशन की मुद्रा में बैठ इस गूढ़ रहस्य को समझने की बलात कोशिश कर रहे थे कही देश,हिंद महा सागर नही डूब जाए इस तरह की अव्यव्स्थाओ के चलते प्रदेश तो डूब ही नही सकता क्यो की सागर बहुत दूर है देश के डूबने के चांसेज ज्यादा है फ़िर वह सोचने लगा की यदि देश डूबेगा तो प्रदेश भी तो डूबेगा क्या वह चड्डी पहने किनारे खड़ा रहेगा फ़िर वह सोचने लगा की हिंद देश, यदि डूबा भी तो हिंद महा सागर में ही तो डूबेगा वह भी तो अपना ही है ,किसी दुसरे सागर में तो डूबने जाएगा नही क्यो की वो सब दूर है अपना ,अपने में ही तो डूब रहा है इससे अच्छी बात और क्या हो सकती भगत भगवान से मिले या भगवान भगत से बात तो एक ही हैपर उसने सुन रखा था की कृष्ण की द्वारका वाकई में समुन्द्र में समाहित हो गई है कही ऐसा हुआ है तो क्या यह मन लिया जाए की उस समय भी इसी प्रकार की अव्यवास्थाओ के चलते जैसा मै सोच रहा हू हुआ होगा
राम खिलावन ने अपने को वैचारिक घालमेल में फसता देख और विचलित हो गया तब तक एक कनखजूरा उसके अर्ध नग्न शरीर में फसे कपड़ो के भीतर पता नही कहा से बिना पूछे घुस गया ;घुसा तो घुसा कोई बात नही ,झाड़ पोछ कर राम खिलावन फारिग हो जाते पर इस कनखजूरे ने तो बिना पूछे कस कर कट भी लिया ,राम खिलावन बिलबिला पड़े ;और एक छुट्टा गाली देते हुए कनखजूरे को बाहर निकाल फेका तबियत से उसकी चटनी बना दी ,कनखजूरा वीरगति को प्राप्त हो गया ,तब राम खिलावन को चैन मिला
ऐसे अप्रासंगिक छडो को छोड़ कर राम खिलावन का स्वभाव चिन्तक का है वे मूलतः चिन्तक ही है आप सोच रहे होंगे की चिन्तक शासकीय, अर्धशासकीय, नय्नाविराम इमारतो ,सरकारी बंगलो या टोपी तप लगाये दाठी बढाये झुके कंधो में झोला लटकाए या काफी हाउस में चार घंटे के हिसाब से चार बार काफी पीने वाले या चमचमाती कार में सत्ता के इर्द गिर्द चक्कर लगाते पाए जाते है तो आप ग़लत है राम खिलावन आपको ,आप के आस पास कही भी मिल जाएगा ;चिन्तक की मुद्रा में ,देखे तो सही हा, राम खिलावन को देखने के लिए आखे चाहिए बटन नही
राम खिलावन एक अधभुत प्राणी है वो चिंता नही चिंतन में विश्वास रखता है ,क्यो की उसे मालूम है की चिंता करने से चतुराई घटती है और चुतियाई बढ़ती है और आप जान ,की राम खिलावन को चुतियाई से बड़ा parhej है ,उसी तरह जय से madhumeh के मरीज को gulguley से ये बात अलग है की चोरी छिपे kha ही लेते है ,वैसे ही राम खिलावन भी कभी कभी दिल bahlane के लिए chutiyai कर ही bhaithate है
baharhal अभी तो राम खिलावन के चिंतन का विषय शहर की aavohawa को कैसे badala जाए ,है जिसे उसके बाप भी नही badal पाए ,खैर चिंतन jari है