Sunday, February 21, 2010

सुख दुःख

देखना क्यों नहीं चाहते , चाहना या न चाहना किसके बस में है ये है सब कुछ क्या कभी सोचा है या फुर्सत ही नहीं मिल रही सोचने की या फिर सोच कर, कर भी क्या लेंगे सोचना किसी धरातल में बीज बोने जैसा है जब बीज ही नहीं बोंगे तो फसल क्या होंगी

दूसरो के लहलहाते खेतो को देख मन कुछ देर के लिए विचलित तो होता है फिर हाथ पे हाथ धर कर रोना रोना कोई तुमसे सीखे हम सब के जीवन में सुख दुःख का माया जाल हमारा अपना बनाया हुआ है जो होने और न होने के बीच लटकता रहता है जीवन भर ,इस लटकन को तुम बलात उखाड़ फेक सकते हो बशर्ते दम हो दम का वहम नहीं ,वहम पाले पाले न जाने कितने लोग आये और चले गए कुछ जाने को तैयार है और अपने अपने सुख दुःख की गठरिया साथ लिए ,जितना कम हो सामान उतना सफ़र है आसन ये सब आपके लिए ही बोला लिखा गया है पठता मनन करता कौन है ? आप सुनते है गुनते है या फिर हर फिक्र को धुएं में उडाता चला गया ..............
थोड़ी देर में सुखी थोड़ी देर में दुखी छड़े तुष्टा छड़े रुष्टा रुष्टा तुष्टा छड़े छड़े ये है हम आप या आप अलग है ,हम सब जब बात करते है तो अपने आप को अलग कर के करते है ,जनता सोचती नहीं है ,जनता जानती नहीं है ये बोलने कहने में हम अपने आप को उस जनता जिसका हम जिक्र कर रहे है अपने आप को उसमे नहीं जोड़ते हम उस जनता से अलग है ऐसा सोचते है
शीशे के अलावा कभी अपने आपको देखा है? ,पानी की परछाई या छाया नहीं प्रतिकृति नहीं ,जो तुम हो ,तुम क्या हो कभी सोचा है ? कहोगे आदमी ,मानव ,जीव और पता नहीं क्या क्या कहोगे या कह सकते हो तुम्हारीबाते और तुम दोनों निराले हो ,नित नूतन हो इसलिए धन्य हो कभी टटोलना अपने आपको ,कभी तलाशना अपने आप को ,मिल जाओ तो बताना हमें नहीं तो अपने आप को की मिल गए जिसे ठूठ रहे थे ...........
जो करीब है उसे क्या तलाशना हम, जो दूर है उसे तलाशने में पूरी ताकत लगाये रहते है जो है उससे संतुष्ट नहीं जो नहीं है उसे पाने की उधेड़ बुन में सारा जीवन लगाये हुए है मिल भी जायेगा तो क्या करोंगे साथ ले जाओंगे ,जब कुछ ले कर नहीं आ सकते तो फिर ये कैसे सोच रखा है की ....................
पल पल हम घर की तरफ जा रहे है घर जाने में दुःख कैसा , कहते सुनते होंगे की समय बालू की तरह मुठी से निकलता जा रहा है ,निकल रहा है तो साध लो कूबत हो तो ...साध लेना तो बताना ..............
जो हो रहा है उसे होने दो जो नहीं हो रहा है उसे रहने दो ,फल पकेंगा तो पेठ में लगा नहीं रहेंगा ,गिरेगा ही ,जो मिटेगा वो बनेगा भी , तार जुड़े है दोनों और जिनका कोई और न झोर ......................

इसी तरह फिर कभी ....................

सुख दुःख

सब के जीवन में सुख दुःख का आना जाना लगा रहता है मुझे ऐसा लगता है कि सुख दुःख ,जीवन में ,ऐसा होना चाहिए और ऐसा नहीं होना चाहिए के इर्द गिर्द घूमता है ये सुख दुःख भी किसे होता है हमें ? हमें से क्या मतलब है ,हम क्या है ,ये हाड़ मास का शरीर या फिर कुछ और ...............
जो कुछ भी दिखता है उसके अलावा भी बहुत कुछ है जो इन आखों से नहीं दिखता .दिखता भी है तो देखते नहीं