राम खिलावन बहुत दिन बाद फिर आ गए ,मन भर गया इस चिल -पो से उनका ,बेसुरा गाना सब गए जा रहे है हर तरफ भ्रस्ताचार की बाते उसी के गीत उसी के नव गीत गाते लोग बैग नही अघा रहे है लितनी बाते करते है उतना ही वह सुरसा की तरह बठ्ता ही जा रहा है शायद गाने न गाने से न बठे ऐसा रामखिलावन का सोचना है ,वो कहते है की गए गए बियाह हो जाता है बलभद्र ,भ्रस्ताचार क्या चीज है जिसके बारे में हम सब ज्यादा सोचते है वही हमे सब तरफ दिखने लगती है ,प्रेम के किसी दीवाने से पुछो भईया उसे हर तरफ उसकी प्रेमिका ही दिखाई देती है हर जगह वह उसी की छवि देखता है उसी में सोता है और उसी में जागता है ,ऐसी ही कहानी कुछ -कुछ भ्रस्ताचार की है
तुम्हारा का कहना है बलभद्र महोदय , रामखिलावन खीस निपोरते हुए उनकी तरफ व्यंग बान मारते हुए बोले _ कुछ सकुचाते हुए भईया बलभद्र उवाचे ,दादा -जैसे हमारे विचार होते है वैसे ही हमारे आचार होते है जो आगे चल क्र अपनी प्रकृति के अनुसार सदाचार ,भ्रस्ताचार ,शिष्टाचार ,के नाम से जाना जाता है दादा समाज तो सामाजिक प्राणियों से मिल कर बनता है तो फिर यह असमाजिक चीज सामाजिक जगह कैसे घुस गयी शरणार्थियों की तरह ,लगता है इसमें भी कुछ विदेशी शक्तियों का हाथ है जैसे सब चीजों में प्रायः होता है या कहा जाता है ,हमारा देश तो महान है इस देश के नागरिक भी महान है ये गैर महान चीज कहा से पिल पड़ी निकल बाहर करो ससुरे को ,जाये जहा से आया है
कौन कहा से आया है और कौन किसे भागना चाहता है सब कुछ कल के गाल में समाया है पर हम बपुरे तो इसी चिल पो में पिसे जा रहे है