Wednesday, February 20, 2013

सब भउसा खाता है ...............

रामखिलावन जटिल समस्याओ के विकट हल खोज लेते थे एक जमाना ऐसा भी था ।  पर अब सब भ उ सा खाता है। रामखिलावन सरकार  को तलाश रहे है और वह  मिल नही  रही , लगता है सरकार चलते  चलते कही दूर निकल गयी ,किस  दिशा की ओर  निकल गयी कुछ पता नही चल  रहा, यह बात  यह साबित  करती  है  कि सरकार चलती है । और वह चलते चलते किसी भी तरफ निकल सकती है  पतली गली से ,मिल भी सकती है और नहीं भी यह सब आपकी कार गुजारी पर निर्भर करता है की आप क्या है और कहा विराजते है । सरकार तो कभी कभी चलते चलते आप के व्दार पर भी आ जाती है ,और आपके व्दार पर आ कर सो  भी जाती है । चलते चलते थक जाती है इस लिए सो जाती है कोई गुनाह करती है आप नहीं सोते है क्या ? की सरकार सो रही है बोल बोल कर उसे बदनाम करते रहते है अरे जो चलेगा वह थकेगा भी भईया ..........लेकिन कुछ लोग बिना कुछ करे भी थक थूका जाते है बिना काम  जैसे ट्रेन में बैठे आप है चल ट्रेन रही है और थक आप जाते  है । 
बैठे बैठे भी भईया कुछ लोग थक जाते है तब उनका क्या किया जाये ये तो सरकार है ,चल  रही है इसलिए उसका थकना भी  लाजमी है ,थकती है तो सो भी जाती है । इसमें बुरा क्या है कि सोती हुयी सरकार को भला  बुरा  कहा जाये ये तो आपकी सोच है , तुलसी बाबा भी जाते जाते  कह गए है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी । 
 आप अपनी भावना बदले ,सब कुछ बदल जायेगा ,गली ,मोहल्ले बदल गये ।  राज्य ,प्रान्त बदल गये । भाषा ,बोली बदल गयी ।  आभूषन परिधान बदल गये । चाल चलन बदल गया ।युग बदल गया परिभाषाये बदल गयी । नेता बदल गये अभिनेता बदल गये  और एक आप है कि अपनी भावनाए नही बदल पा  रहे है ,।धिक्कार है प्रभु अपने को नही बदल पा रहे हो आप तो  कम से कम भावना बदल लो नहा नही रहे हो  तो कम से कम कपड़े  बदल लो सेंट - वेंट छिडक लो ,महकने लगो पूरा देश महकता नजर आएगा ,फील गुड करो भईया ..फीलगुड .........। फील और फीलिंग से ही तो सब कुछ होता है प्रभु , तुलसी बाबा कह तो गये है। कबीर भी तुम्हे सुधारते सुधारते चले गए ,कहते रहे बुरा जो देखन मै  चला  ,बुरा न मिलयो कोय जो दिल खोज आपना मुझसा बुरा न कोय और तुम ससुरे सरकार को भला बुरा कहते रहते हो वो भी चुनी हुयी सरकार को ,सीधे नरक में जाओगे ,गरम खौलते  तेल में पकौड़े  जैसे तले जाओगे तब पता चलेगा ,बदलो बदलो सरकार के प्रति अपनी भावना को, नही तो कही सरकार ही न बदल जाये ।
रामखिलावन ,सरकार को ढूढ़ रहे है जैसे भक्त भगवान को ढूढ़ते है । भक्त भगवान की भक्ति करते है पूजा अर्चना भी करते है फल फूल चढाते है मनोतिया मानते है पुरी  होने पर मालपुआ चढाते है कोई कोई तो गुप्त दान भी करते है भगवान  को मालामाल  करते है  वैसे ही जनता सरकार की आव भगत में लगी रहती है ,पूजा अर्चना करती रहती है मनौतिया मानती है फिर पूरा होने पर सरकार को दान ,गुप्त दान भी करती है सरकार के कुछ पुरोहित गुप्त दान लेने में पकड पकड़ा जाते है ये अलग बात है पर  उन्हें भी सरकार  फिर छुड़ाने में मदद  भी करती है ,सारे वेद  -  पुराण और सम्बन्धित पोथी पन्ना बदल देती है अपने भक्त को बचाने में सरकार कोई कसर  नही छोडती कैसे छोड़े जो .... वादा  किया है वो निभाना पड़ेगा ...... ।
कुल मिला के रामखिलावन कनफुजिया गए है कहते है सब भ उ सा खाता है बलभद्र ..............