Thursday, July 9, 2009

आओ हम जीना सीखे

जन्म के पहले और म्रत्यु के बाद भी जीवन है इस बीच हम आप इस धरा पर है मिल रहे है जुल रहे है और अपने कृत्यों के अनुसार फल भोग रहे है पञ्च तत्यों का शरीर पञ्च तत्यों में मिल जाएगा और आत्मा ,परमात्मा में मिल जायेगी जैसे गुब्बारे के भीतर की हवा गुब्बारा फटने के बाद बाहर की हवा में मिल जाती है हवा ,हवा में मिल जाती है उसी प्रकार आत्मा ,पञ्च तत्व के शरीर को त्यागने के बाद परमात्मा में ,जहा से आए है वही , उसी में मिल जाते है
इस बीच हम आप पता नही कितने सपने बिनते बिगाड़ते रहते है .और आखिरी में जैसे आए थे वैसे ही चल देते है ,बंद आखो के सपने जैसा ही खुली आखो का सपना होता है
पैसा ,धन ,दौलत कमाने के चक्कर में ,जिंदगी गुम सी जाती है ,जिंदगी है क्या ,अपने अपने ताने बाने है ,कोई कुछ तो कोई कुछ सोचे बिचारे है ,कोउलू के बैल की तरह आखो में पट्टी बांधे चले जा रहे है ,कहा जा रहे है कुछ पत्ता नही ,बिना कम्पास के नाविक अपनी नाव किस किनारे ले जाएगा ,नाव के साथ नाविक ख़ुद डूब जाए तो बड़ी बात नही
कुल मिला कर ,हम कर क्या रहे है ,कहा जा रहे है ये आपा धापी काहे की ,क्या खोज रहे है ,बिना ख़ुद को खोजे क्या खोज लोगे सब धान बाईस पसेरी
अपना कुछ है मूलत : जिसे हम अपना कह सकते है जैसे फूलो में खुशबू
हम क्यो हो जाते है प्रभावित इतनी जल्दी किसी से ,क्या पानी की तरह निर्मल है की जिसमे मिला दो उसी रंग का हो जाए यदि निर्मल है तो कोई बात है यदि नही तो क्या है हम ?
बहुरूपिये या पाखंडी ये तो हमें तय करना है