Thursday, June 25, 2009

राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन गाव के सूखे तालाब के किनारे ,लगे पीपल के पेड़ से सटे चबूतरे में बैठे ,चिंतन कर रहे है ,

झील ताल सागरों को डाटते है क्या करे|

हंसो को उपाधि ,गीध बाटते है क्या करे |

सोच रहे है ,की कितना इस तालाब में नहाया करते थे ,इक बार तो डूबते डूबते बचे थे ,कितना पानी होता था ,कितने लोग नहाते थे ,गाय,बैल ,मवेशी ,पानी पीते थे ,तिथि त्योहारों में कितनी भीड़ भाड़ हो जाती थी इस तालाब के किनारे ,अब बस किनारे बचे है ,वो भी देखने भर के |

लोगो ने तालाब जैसी सार्वजनिक निस्तार के स्थानों को भी निजी मान कर बेच दिया ,लोगो ने खरीद लिया और अब खेतिया की जा रही है ,गावो का जल स्तर नीचे चला गया ,सब कुए ,बावलिया सूख गई ,जो बरसात आने तक गाव वालो की प्यास बुझाती थी ख़ुद प्यासी हो गई |

उसकी प्यास कोईं बुझायेगा ?,

प्यासा,प्यासे की प्यास कैसे बुझाये ?

राम खिलावन का चिंतन यही है ,हमी ने अपने ताबूत बनाये है हमी ने अपना इतिहास लिखा है और हमी अब अपना भविष्य लिख रहे है ,वर्तमान जो है, सामने है |

वर्तमान की लेखनी को ही,भूत की स्याही में डुबो कर भविष्य लिखा जाता है |

कौन लिखेगा ?

हम,तुम जिन्हें केवल अपने से मतलब है सोच का दायरा हम दो और हमारे दो ,बाकि को भाड़ माँ जाने दो|

इस देश में, इस प्रदेश में ,खूब विकाश हुआ ,विकाश पुरूष पैदा हुए ,कुछ मर गए और कुछ पैदा हो गए विकाश करने ,ये बात अलग है की विकाश किसका हुआ ,ये शोध का विषय नही है आखो पर जोर डाले सब दीखता है ,बस आपके मोतिया बिन्दु भर हो |

इन विकाश पुरुषों की छाया में अविकसित पुरुषों का विकाश हुआ और हम सब विकसित हो चले ,और विकसित हो कर ,एक दुसरे के सामने खड़े है |

हम तुम्हे देख रहे

है ,तुम हमें ,तुम हमारे दोष गिना रहे हो ,हम तुम्हारे ,और क्या कर रहे है ?विकाश ही तो कर रहे है ,विकसित लोग क्या करेंगे विकाश ही तो करेंगे ,और कैसा विकाश होता है देखो हमने अपने गाव का तालाब सूखा दिया ,उसमे खेती कराने के लिए रस्ते बना दिए चलने के लिए ,रहने के लिये मकान बना लिए ,और कैसा विकाश होता है ,विकाश पुरुषों की छाया में जो बताया वही तो किया है ,अब तालाब सूख गया तो हम क्या करे ,बिना सूखाये क्या ये सब विकाश होता ?

हम विकसित हो गए है ,पर सहनशील कम हो गये है |

हम संख्या में ज्यादा हो गए है ,पर गुडवत्ता में कम हो गए है|

हमारा छोटा सा गाव बडा हो गया है पर हम सिकुड़ गये है |

जुड़ने की कोशिश में टूट गए है|

टूटा हुआ विकाश लिए घूम रहे है ,हम तुम |

वो परम्पराए ,वो सभ्य्ताये कहा खो गई ,क्या तालाब के साथ वो भी सूख गई ?

कब तक हम बड़े बड़े नामो की माला जपेंगे ,ये देश इसका है ,ये देश उसका है कब तक ?

कब कहेंगे की ये देश मेरा है हमारा है |

राम खिलावन का चिंतन यही है

झील ,ताल सागरों को डाटते है क्या करे |

हंसो को उपाधि ,गीध बाटते है क्या करे |