Friday, April 9, 2010

रामखिलावन उवाच


सरकार की जय हो ,रामखिलावन उवाच
बलभद्र चौक गए
दादा सरकार दिखाओ ,जिसकी जय बोल रहे हो
सब कुछ इन आखो से नहीं दिखता है
तो क्या दो चार तरह की आखे होती है ,बलभद्र बोले
हे वत्स ,तुम क्या जानना चाहते हो ?
मै सरकार को देखना चाहता हूँ
इसके लिए तो तुम्हे संजय की आखो से देखना होगा संजय की तरह आखे होनी अनियार्य hai
अब हम संजय की आखे कहा से लाये ?
लाओ और देखो सरकार को ,इसके अलावा कोई चारा नहीं है वत्स
रामखिलावन संत की मुद्रा में बोले और शांत हो पालथी मारे बैठे रहे अगले प्रशन की प्रतिझा में
बलभद्र बोले अच्छा ये ही बता दो की सरकार रहती कहा है ?
सरकार सब जगह व्याप्त है और नाडा राजधानी में gada रहता है
कैसे ?जरा विस्तार से समझाए प्रभु ,बलभद्र , विनती करने की मुद्रा में आ गए और उसी तरह बने रहने में ही भलाई समझी ये सोचा की शायद मुद्रा से ही प्रभावित हो कर ,प्रभु कुछ सही सही उगले और हम चाट ले
सुनो वत्स ,तुमने कभी हवा देखी है
बलभद्र ने कभी हवा देखी हो तो बताये , चुप और अचकचाए से शांत और गंभीर हो चले
तभी बलभद्र की जाघिये में कनखजूरा अप्रत्याशित रूप से पिल पड़ा ,बलभद्र हडबडा गए ,सारा ज्ञान और सरकार जाघिये में घूसा जान पड़ रहा था बलभद्र ,जाघिये का नाडा खोलने को आतुर दिखे तभी उन्हें याद आया कि नाडा खोलने से कही सरकार नाराज न हो जाये जो जाघिये में घुसी हुई है या फिर नाडा खुलते ही सरकार नदारत हो जाये जिसे देखने को मन ब्याकुल हो चला था ,बलभद्र को इस असमंजस में देख ,कनखजूरे को मौका मिला और उसने बलभद्र को दे मस्का ,अब बलभद्र बिलबिला उठे भाड़ में जाये सरकार यहा तो अपनी सरकार लफड़े में पडी है उसे बचाए कि जो दिख नहीं रही है उस सरकार को देखने के चक्कर में जो दिख रहा है उसे न देखे ये कहा कि बुधिमत्ता है ,बलभद्र के ज्ञान चकछुओ ने उन्हें धोखा नहीं दिया और वे कर्म कांड में व्यस्त हो गए तब तक ,व्यस्त रहे जब तक उन्होंने आतंकी कनखजूरे को शहीद नहीं कर दिया
रामखिलावन बिना संतुलन खोये बलभद्र की सारी रामलीला देख रहे थे
इस बीच बलभद्र फारिंग भी हो आये ,मूत तो तभी दिया था जब वे कनखजूरे के आगोश में थे
बहरहाल अब जब सब सामान्य हो चला ,,बलभद्र बोले ,
हे प्रभु , वो सरकार तो दिखी ,पर अपनी सरकार जरूर अल्पमत आ गयी थी
रामखिलावन अपने आसन से ,बिना हिले डुले बोले हे वत्स ... तुम नाहक चिंतित हो रहे हो
सुनो जिस तरह वायु नहीं दिखती केवल महसूस होती है उसी तरह सरकार nahee दिखती नहीं सिर्फ महसूस होती है
वायु जब चलती है तो क्या दिखती है
नहीं ,बालक बलभद्र बोले और फिर सन्न हो गए
हे वत्स ,और सुनो , सरकार साईकिल नहीं है कि उसे चलते हुए देखा जा सके कि ये चली ,वो चली , मै चली .मै चली देखो प्यार की गली..................... चलती तो वो चीज है जिसके पाँव होते है ,पहिये होते है ,सरकार के पाँव वाव नहीं होते और न ही पहिए होते है कि ,जहा चाहो वहा घुमा दिया ,ख़बरदार ऐसा सोचना भी गुनाह है कि सरकार तुम जैसे अइरे गयिरे के चक्कर में नहीं पड़ती है वत्स
सरकार ,सरकार है जब दिल किया चली ,जब दिल किया बैठ गयी अब उठाओ तो जाने ,कभी कभी तो सरकार बैठे- बैठे पसर भी जाती है और तो और कभी कभी ससुरी सरकार पसरे पसरे सो भी जाती है बलभद्र जिज्ञाशु और रामखिलावन के प्रवचन से अविभूत हो सब सुन रहे थे और सुनाने वाले सुना रहे थे
हे वत्स तू अपनी जिज्ञासा शांत कर और सरकार को देखने के चक्कर में ये जीवन नष्ट मत कर
सरकार ,सरकती हुई कभी न कभी तुझे दर्शन अवश्य देगी तब तक
घर चल, नल पर ,जल भर .........................................