Wednesday, November 4, 2009

भोर भई


भोर भई अब जाग मुशाफिर .......................


भोर कब होगी जीवन की ,जीवन भर क्या सोये सोये रहेंगे ,या फ़िर जागेंगे भी ? कब जागेंगे ,कुछ पल छिन आते है अनायाश जीवन में जो हमें ,तुम्हे जगाने की कोशिश करते है प्रयास करते है पल भर के लिए हम तुम जग भी जाते है ,पर फ़िर सो जाते है सोते सोते जीवन गुजार देते है जगे भी है तो केवल बाहर बाहर ,भीतर तो सोये ही रहते है कोई जगाये भी तो नही जागते


जीवन भर हम जागने का स्वांग किए भटकते रहते है ओरों को भी भटकाते रहते है अपने अपने दर्शन से प्रदर्शन से जीवन ऐसे जीते है की कभी मरेंगे ही नही दुसरे मरेंगे ,हम नही

हम जीने भर लिए अवतरित हुए है मरने के लिए नही

आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर ,कितनी बार सुना, सुन कर अनसुना किया ,और करते जा रहे है कब तक ,जब तक चले नही जायेंगे है ना? माया के मोह जाल का का बहाना लिए अपने को ख़ुद फ़साये घूम रहे है ,अरे तुम निकलने की कोशिश करो और ना निकल पाओ ये कैसे हो सकता है ,हम ख़ुद निकलना ही नही चाहते है जाल

janjaal से क्यो सही है ना ,और बहाना पर बहाना बनाये jate है

ये सब बहाने बह जायेंगे ,बह तो हम भी जायेंगे पर जब तक bahe नही है ,tab तक कुछ तो करे .......

gud खाए और gulgule से parhej करे ये bat कुछ jami नही