रामखिलावन ,न हो गए अवधूत हो गए ,बलभद्र बोले नहीं हो, वो तो भूत हो गए है |
काहे ,कह रहे हो भाई,का आज कल मुलाकात नहीं हो रही है का ?
अरे जे बात नहीं है ,हो यह रहा है की मुलाकात की जगह मुक्कालात ज्यादा हो रही है ,खिसियानी बिलारी की तरह खिखियाते रहते है न जाने काहे |
बात असल में यह है जो इन चुतियो को समझ में नहीं आ रही है ,रामखिलावन आज कल अपने भीतर घुसने की कोशिश कर रहे है बलात कोशिश बरक़रार है पर घुस नहीं पा रहे है ,काहे रामखिलावन बाहर है का ,की भीतर जाने की कोशिश कर रहे है ,भला बिना दरवाजा के बाहर से भीतर कैसे जाया जा सकता है और या दरवाजा कहा है का रामखिलावन का मालूम है की चले है बाहर से भीतर ,ओ भीतर जायके करिहे का कुछ पता रता है की बस उठे ओ चल दयीन झोरा लेई के, का हो शनिचर |
ये वार्तालाप बलभद्र और शनिचर के बीच धाराप्रवाह चल ही रहा था की अनायास ,रामखिलावन प्रगट हो गए ,भय प्रगट कृपाला दीन दयाला की चिरपरिचित मुद्रा में .........का चल रहा है वत्स ,रामखिलावन मंद मंद ,भगवान की तरह मुस्कराते हुए उवाचे |
शनिचर जो पलथी मारे अभी तक बलभद्र स्वामी की वाणी सुन रहा था ,मुद्रा बदल उकुडू बैठ गया वैसे भी वो पलथी मारे मारे अधमरा हो चला था |
वत्स ,अस्त वस्त थे गहन सोच विचार में मग्न थे उन्हें पता ही नहीं था की प्रभु इस तरह अचानक प्रगट हो जायेंगे बलभद्र की वाणी रेलगाड़ी की तरह रुक गयी और शनिचर जो उसमे चठा था उतर भागा,पर भाग कर जाता कहा सो उकुडू बैठ गया था |दादा कुछु नहीं, होइगा गप्प सड़ाका चल रहा है ,इस तरह से समय क्यों नष्ट करे हो वत्स रामखिलावन बोले जीवन अमूल्य है नहीं जानते ,अरे दादा जान के का कर लेबे मूल्य हो या अमूल्य हो बलभद्र ओउघाते ओउघाते उवाचे |रामखिलावन खिन्न हो गए ये सब सुन कर ,कहा हो मोहन प्यारे .......बरसो घनघना के इन ससुरो के ऊपर जो इस जीवन का मोल नहीं समझ रहे है तुमने प्रेम बस इन्हें ये अलौकिक जीवन दिया और ये ससुरे अलौकिक को लौकिक बनाये घुम रहे है ,ये का लौकी .लौकी बोल रहे हो दादा रामखिलावन आज कल के मौसम माँ लौकी वौकी नहीं फरे बलभद्र का कहना वाजिब था ,दादा रामखिलावन ने दिमाग लगाया ,बच्चा सही कह रहा है ,जिधर देखो उधर सब तरफ अफरातफरी मची हुई है लौलिकता पर ,अपने आप को छोड़ सब कुछ पाना चाह रहे है लोग आपाधापी मची है इस अलौकिक शरीर को लोग लौकिक काम तक सियमित किये हुए है ,जाना कहा है जा कहा रहे है उन्हें खुद पता नहीं ,जिन्हें खुद पता नहीं वे जायेंगे कहा यही कही मर मुरा जायेंगे ,वैसे भी मारे हुए तो है ही ये अलग बात है की जलाये नहीं गए है ........हे प्रभु तुम कहा हो मोहन प्यारे ...........
रामखिलावन भीतर घुसने की कोशिश तो कर रहा है पर आप क्या कर रहे है क्या बाहर ही बाहर चले जायेंगे ,अन्दर नहीं आयेंगे .......