Saturday, August 3, 2013

जय जय ..............

राम खिलावन पिछले कुछ दिनों से देश की तरह बेहाल थे कोई धनीधोरी नहीं था | बस यू ही जी  रहे थे , जी इस लिए रहे थे की उन्हें मौत नहीं आ रही थी जिसका वे बेसब्री से इंतजार कर रहे थे | मन भर गया था उनका लो लो चप्पो से |  हलाकान थे , परेशान थे रोज रोज अखबारों में छपी खबरों ने उन्हें सता रखा था | सोचते रहते थे की क्या हो गया है मेरे  देश को  देश को क्या देशवाशियो को ,फिर सोचने लगते की ये देश तो गौतम , गाँधी का है  ये देश  तो टैगोर ,भगत का है मेरा तो है ही नहीं क्या करू इसी उधेड़ बन में दिन गुजर रहे थे उनके .......|
बलभद्र आज का अखबार चबाये पडा था रामखिलावन ने एक खबर पठी की मुरैना में दाई ने पांच सौ रुपये नहीं दिए तो बच्चे को पटककर मार  डाला , बच्चे का बाप रिपोर्ट करने के लिए इधर उधर भटकता रहा ,क्या हो गया है हमें हमारे समाज को पैसे के लिए कितने आतुर है हम ,  इस देश में गरीब होना गुनाह है गरीब के लिए रोज योजनाये बनाई जाती है जिनके लिए अखवारो में रोज लाखो के विज्ञापन प्रसारित होते है जन जन जाने गरीबो के लिए जारी की गयी योजनाये उनका लाभ ले वे सभी जो गरीब है ,हमने गरीबो की एक परिभाषा भी परिभाषित  कर रखी  है  एक रेखा है उसके नीचे सब गरीब और उससे ऊपर के सब अमीर मतलब ऊपर  अमीर नीचे  गरीब |
जो नीचे होगा वो दबाया जायेगा या फिर दबा रहेगा ,कब तक दबा रहेगा जब तक उपर वालो का दबदबा रहेगा ऊपर वालो का दबदबा कब तक रहेगा जब तक नीचे वाले दबे रहेंगे कुल मिला के दबने  दबाने का खेल है  यह , ये और कुछ नहीं ऐसा कुछ कुछ रामखिलावन के दिमा ग में घुस रहा था  दिमाग में हलचल मची हुयी थी रेलमपेल विचार आ जा रहे थे रामखिलावन के ,तनाव के कारण उनका तन तमतमा गया था ,अब दबना नहीं है दबाना है ऐसा क्रांतिकारी विचार उन्हें उकसाए जा रहा था वो धीरे धीरे उसक रहे थे तभी बलभद्र ने अखवार एक तरफ फेका और जोर से जम्हाई ली रामखिलावन ने मौके की नजाकत को देखा और अखवार की पुंगी बना कर  बलभद्र के अधखुले मुह में डाल दी ,बलभद्र अचकचा गये ये ससुरा का है मुह खोलना भी गुनाह है रामखिलावन को समझते देर न  लगी एक और गुनाह इस देश में है जिसकी व्याख्या भारतीय दंड सहिंता में नहीं है | गुनाह  तो वही कहलायेगे जिनका जिक्र दंड सहिंता में होगा जिसके लिए कोई न कोई धारा उप धारा हो ,ऐसे तो कुछ भी कहते फिरो इनकम टैक्स थोड़े ही लगता है |
तो तय हुआ की गरीब होना देश में गुनाह नहीं है क्यों की दंड सहिंता में इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं है ...................

Wednesday, February 20, 2013

सब भउसा खाता है ...............

रामखिलावन जटिल समस्याओ के विकट हल खोज लेते थे एक जमाना ऐसा भी था ।  पर अब सब भ उ सा खाता है। रामखिलावन सरकार  को तलाश रहे है और वह  मिल नही  रही , लगता है सरकार चलते  चलते कही दूर निकल गयी ,किस  दिशा की ओर  निकल गयी कुछ पता नही चल  रहा, यह बात  यह साबित  करती  है  कि सरकार चलती है । और वह चलते चलते किसी भी तरफ निकल सकती है  पतली गली से ,मिल भी सकती है और नहीं भी यह सब आपकी कार गुजारी पर निर्भर करता है की आप क्या है और कहा विराजते है । सरकार तो कभी कभी चलते चलते आप के व्दार पर भी आ जाती है ,और आपके व्दार पर आ कर सो  भी जाती है । चलते चलते थक जाती है इस लिए सो जाती है कोई गुनाह करती है आप नहीं सोते है क्या ? की सरकार सो रही है बोल बोल कर उसे बदनाम करते रहते है अरे जो चलेगा वह थकेगा भी भईया ..........लेकिन कुछ लोग बिना कुछ करे भी थक थूका जाते है बिना काम  जैसे ट्रेन में बैठे आप है चल ट्रेन रही है और थक आप जाते  है । 
बैठे बैठे भी भईया कुछ लोग थक जाते है तब उनका क्या किया जाये ये तो सरकार है ,चल  रही है इसलिए उसका थकना भी  लाजमी है ,थकती है तो सो भी जाती है । इसमें बुरा क्या है कि सोती हुयी सरकार को भला  बुरा  कहा जाये ये तो आपकी सोच है , तुलसी बाबा भी जाते जाते  कह गए है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी । 
 आप अपनी भावना बदले ,सब कुछ बदल जायेगा ,गली ,मोहल्ले बदल गये ।  राज्य ,प्रान्त बदल गये । भाषा ,बोली बदल गयी ।  आभूषन परिधान बदल गये । चाल चलन बदल गया ।युग बदल गया परिभाषाये बदल गयी । नेता बदल गये अभिनेता बदल गये  और एक आप है कि अपनी भावनाए नही बदल पा  रहे है ,।धिक्कार है प्रभु अपने को नही बदल पा रहे हो आप तो  कम से कम भावना बदल लो नहा नही रहे हो  तो कम से कम कपड़े  बदल लो सेंट - वेंट छिडक लो ,महकने लगो पूरा देश महकता नजर आएगा ,फील गुड करो भईया ..फीलगुड .........। फील और फीलिंग से ही तो सब कुछ होता है प्रभु , तुलसी बाबा कह तो गये है। कबीर भी तुम्हे सुधारते सुधारते चले गए ,कहते रहे बुरा जो देखन मै  चला  ,बुरा न मिलयो कोय जो दिल खोज आपना मुझसा बुरा न कोय और तुम ससुरे सरकार को भला बुरा कहते रहते हो वो भी चुनी हुयी सरकार को ,सीधे नरक में जाओगे ,गरम खौलते  तेल में पकौड़े  जैसे तले जाओगे तब पता चलेगा ,बदलो बदलो सरकार के प्रति अपनी भावना को, नही तो कही सरकार ही न बदल जाये ।
रामखिलावन ,सरकार को ढूढ़ रहे है जैसे भक्त भगवान को ढूढ़ते है । भक्त भगवान की भक्ति करते है पूजा अर्चना भी करते है फल फूल चढाते है मनोतिया मानते है पुरी  होने पर मालपुआ चढाते है कोई कोई तो गुप्त दान भी करते है भगवान  को मालामाल  करते है  वैसे ही जनता सरकार की आव भगत में लगी रहती है ,पूजा अर्चना करती रहती है मनौतिया मानती है फिर पूरा होने पर सरकार को दान ,गुप्त दान भी करती है सरकार के कुछ पुरोहित गुप्त दान लेने में पकड पकड़ा जाते है ये अलग बात है पर  उन्हें भी सरकार  फिर छुड़ाने में मदद  भी करती है ,सारे वेद  -  पुराण और सम्बन्धित पोथी पन्ना बदल देती है अपने भक्त को बचाने में सरकार कोई कसर  नही छोडती कैसे छोड़े जो .... वादा  किया है वो निभाना पड़ेगा ...... ।
कुल मिला के रामखिलावन कनफुजिया गए है कहते है सब भ उ सा खाता है बलभद्र .............. 


 
 
 

Wednesday, February 13, 2013

कुम्भ की कहानी से रामखिलावन रूबरू हो रहे है ,जाके  कुछ पुन्य कमाना चाहते है ,फोकट में जब मिल रहा है तो क्यों छोड़ा जाये ,पाप न लग जाये । कही कोई ऐसा भी विधान न हो ,कि जो कुम्भ में न जायेगा तो बेटा  मरोगे तो सीधे नरक में जाओगे लिखा हो ,फिर बिलबिलाते रहोगे ,फोकट में पुन्य मिल रहा था तो लुटा नहीं अब ससुरे हिसाब किताब में भिड़े है कि हमने इतने पुन्य किये इतने पाप ।
सो रामखिलावन बलभद्र को लिए प्रयाग के लिए रवाना हो लिए साथ में दंड कमंडल लिए ,दाड़ी तो पहले से बढ़ी थी । रेलों में रेलम रेल मची हुयी है बसों में पैर रखने की जगह नहीं है जाये तो कैसे जाये फिर भी रामखिलावन के पाँव नहीं रुके ,रुके तो प्रयाग में ही जा कर । लाखो क्या करोडो लोगो के साथ वे भी गुम गए अपनी कछनी संभाले जो की बीच बीच में दगा देने की स्थिति में आ जाती थी खैर ,राम खिलावन कुम्भ का पुन्य लूटने को आतुर चले आये ।
भिडम भाड़ ,एक दुसरे को लोग  कचरे जा रहे है पर बढे  जा रहे है पुन्य लूटने  के चक्कर में कुछ लोग पहले ही  लुट चुके है लुटे लुटाये लोग अपनी अलग पंक्ति बनाये  हाथ जोड़े एक दरोगा के सामने कुछ फरियाद करने की मुद्रा में भयभीत से खड़े है ,दरोगा  के चक्कर में  सारे  मंत्र ,तंत्र भूल भाल गए है  बस दरोगा कृपानिधान से लग रहे है   जो अपने हाथ में लिए डंडे को चक्र सुदर्शन सा घुमा रहे है , भोले भाले  भगवान  के भोले भाले  भक्त सन्निपात  से ग्रसित दिख रहे है  ,एफ आई आर लिखने की नही बन रही थी सो नाम पता लिख लूटे लुटाये भक्तो को एक एक कर किनारे कर दिया गया जाओ भईया अब अगले कुम्भ में न दिखाना ,पुन्य कमाने के चक्कर में ये सभी शुन्य हो गए थे ,रामखिलावन धन्य हो गए प्रभु की महिमा देख कर ,लोग पभु की महिमा भर देख पाते है जीवन भर पर प्रभु को नहीं देख पाते , बलभद्र कहते है दादा हम जब जादू  देखते है तो जादूगर को भी देख पाते  है पर प्रभु की माया तो देखते है लेकिन  प्रभु को क्यों नहीं .....इस  यक्ष प्रश्न ने  रामखिलावन को धर दबोचा और वे धरे रह गए का बोलते ,इस पाखण्डी संसार में जहा खंड खंड पाखंड है और हम सब भी उसी में रचे बसे है क्या कहे और क्या करे कुम्भ में भी वही सब हो रहा है जो इस संसार में हो रहा है ,कुम्भ संसार से बाहर नहीं है और न ही सन्यासी ,यहाँ भी वही छल प्रपंच है जो संसार में व्याप्त है एक एक से बढ़ कर आये है छलिया तरह तरह के नट है शठ है लूट  है लुटेरे है राम नाम की लूट  है लूट सके तो लूट अंत काल  पछतायेगा जब प्राण जायेंगे छूट  ...........

Tuesday, February 12, 2013

विकास की गंगा ,रामखिलावन , भागीरथ की तरह लाना और  बहाना चाहते थे पर वो  थी कि सीधी सीधी  बहने को तैयार नहीं थी ,टेढ़ी मेढ़ी जितना चाहो बहा लो ,बलभद्र ने भी बताया कि दादा गंगा को देखो न कहा सीधी सीधी बहती है वह भी तो टेढ़ी मेढ़ी बहती है तुम लगे हो नाहक पसीना बहाने में जब गंगा टेढ़ी मेढ़ी बहती है तो विकास भी टेढ़ा मेढ़ा  होगा यह बात राम खिलावन के मन में घुस गयी और वे शांत हो गये इस देश में हर चीज टेढ़ी मेढ़ी ही होगी ।
तभी तो विकाश भी सीधा सीधा नही होता ,कोई काम भी आज सीधे तरीके से नहीं होता चाहे राशन कार्ड बनवाना हो या वोटर लिस्ट में नाम लिखना हो स्कुल में एडमिशन हो या गैस की टंकी लेनी हो ,इस देश में तिकड़म अनिवार्यता है दस प्रश्नों में पांच  प्रश्न करने है किन्तु प्रथम प्रश्न अनिवार्य है साफ सफाई के दो अंक प्रथक से मिलेगे ,ऐसा ही है सब कुछ ऐसे नेक विचार से बलभद्र ने अपने स्वयं - भू देव राम खिलावन को बताया , जिससे रामखिलावन हद्प्रद  हो गये ।
रामखिलावन हदप्रद  थे पर बलभद्र सोच रहे थे कि वे गदगद है उसकी बात सुन कर पर रामखिलावन की कुछ कुछ गंभीर मुद्रा देख बालक बलभद्र मासूम हो गए कुछ देर माहोल शांत ही बना रहा और आगे भी बना रहता लेकिन एक कनखजूरे ने सारे माहौल को बरबाद कर दिया ससुरा रामखिलावन की कछनी में घुसा जा रहा था ,ये तो भला हो कि संत ने अपनी समाधी तोड़ी नहीं तो ...पता नहीं क्या क्या टूटता ।
टुटा तो रामखिलावन का मन है इस विकास को देख कर ,टूटे मन को लिए वे देश में भटक रहे है उन्हें अपना देश ही परदेश सा दिखने लगा है ,अपनों के बीच ही पराये से हो गए है लोग बाग  है कि प्यास बुझने  के बाद कुए की तरफ पीठ कर लेते है ,नदी पार कर लेने के बाद कौन नाव को लिए शहर- शहर घुमाता है .................. 
 

Monday, February 11, 2013

ramkhilvn


साल भर , रामखिलावन नदारत रहे ,कहा रहे गोपनीय है , शायद उन्हें खुद ही नही मालूम की वो कहा रहे ,भटकते रहे जैसे सब भटक रहे है कोई भक्ति में कोई शक्ति में । इस बीच उन्होंने खुरदुरी दाड़ी  जरुर बढ़ा  ली है जिसे वो कभी कभी यु ही खजुआ लेते है ,बलभद्र का सोचना दूसरा है वो कहता है शायद जुए पड़े हो ,बेहरहाल खजुआने के बाद वो सकून महसूस करते देखे गए है ऐसे जैसे किसी राष्ट्रीय समस्या का निदान हो गया हो ।
 बहुत दिनों बाद गांव पहुचने से उनकी आव भगत भी काफी हो रही है , भीड़ में किसी गुलछर्रे ने पीछे से उनकी कछनी खोलने का प्रयास किया पर सफल नही हो सका बलभद्र ने धर- धमका दो लाते अलग से दी , ससुरे जीने नही देगे , पता चला घुनघुटी था ,रामबहोर का लौड़ा ...बस यही रह गया है खुलने खुलाने का खेल इस देश में ,संसद से ले कर गांव गलियों तक इसी में व्यस्त है सब ,विकास हो रहा है सुनहरा विकास चौतरफा विकास पर उसमे हम कही नजर नहीं आते ।
विकास एक प्रक्रिया है जो धीरे धीरे होती है कभी कभी तेजी से भी विकास हो जाता है जैसे कुछ रेले पैसेन्जर होती है और कुछ मेल ,सुपर फ़ास्ट ,दुरानातो जो हर जगह नहीं रूकती निर्धारित जगहों पर ही रूकती है इसी तरह विकास भी वही वही   बहुत तेज होता है और ज्यादा तर  जगहों पर  पैसंजर की तरह कही कही तो बिलकुल भी नहीं होता ,विकास के लिए पटरी होना ,पटरी खाना अनिवार्यता है पटरी नहीं बैठी तो विकास कहा से होगा ससुरो इत्ती  सी बात समझ में आती नहीं ,चले विकास करने , तालाब खुदा नहीं की हो गए नंगे नहाने के लिए ।
देश कोई रबर का छल्ला तो है नहीं कि  खीचा और विकास हो गया विकास की नीतिया होती है नियम कानूनों से विकास होता है ,विकास राम निहोर का नाती नहीं  और न ही राम दुलारी की बिटिया क़ि ,पूनम 
के चाँद की तरह विकसित हो जाये । 
 राम खिलावन पिछले सालो में देश के विकास को ले कर चिंतित है चिंता में डूबे है अभी अभी उतराए है सो चल दिए अपने गांव की तरफ और यहाँ है कि गांव के लुच्चे उनकी कछनी खोलने में उतारू है कैसे हो विकास और  किसका हो किसका न हो ये सब बाते रामखिलावन के मन में गोता  खा रही है  उन्होंने बलभद्र को लिया और अमराई की तरफ निकल गये .......

Monday, May 14, 2012

 राम राम