Wednesday, October 14, 2009

दिन फ़िर रहे है

राम खिलावन पिछले दिनों रावन मारने में बिजी रहे ,एन मोके में साला पानी बरस गया सो ससुरा जलने का नाम ही नही ले रहा था ,गिर अलग गया सो उठाए कौन ,राम लक्छ्मन और उनकी सेना सोफे में बैठी तमाशा देख रही थी , जनता जनार्दन ही ही कर हस रही थी अब क्या होगा लोगो ने दशहरा मैदान में लगी बल्लिया तोड़ तोड़ कर बरसते पानी में रावन को जलाने चल दिए और रावन था कि जलने का नाम नही ले रहा था राम खिलावन बोले जब ससुरा मरा नही तो जलेगा कैसे ? हर साल हम सब बंधू बांधव सहित रावन मारने का ड्रामा करते है और उसे जला जुलू कर ही सास लेते है मरा रावन अब सब ठीक हो जाएगा अत्याचार , व्यभिचार ,भ्रस्ताचार ,और भी जितने तरीके के चार अचार होते है ख़तम हो गए रावन के मरते ही ,जोर जोर से गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाते है सत्य कि जीत हुई और असत्य कि हार हुई
इन प्रतिको से हमने कुछ नही सीखा असत्य को हार साल मारते है फ़िर ससुरा कैसे जिन्दा हो जाता है मारते हो कि ड्रामा करते हो मारने का भइया राम खिलावन बोले
ये दुनिया ड्रामा ही तो है कुछ ड्रामा करके चले गए बाकि का ड्रामा हम कर रहे है अपना अपना रोल अदा कर रहे है ,हम तो झूठ मुठ का असत्य जलाते है हार साल सही सही का थोड़े ही अगर सही सही का जला देंगे तो अगले साल क्या जलायेगे ,अपने आप को क्या ?ये भी खूब रही ,राम खिलावन बोले
यही दस्तूर है दुनिया का ...................
हम कर क्या रहे है दूसरो को धोखा देते देते अपने आप को धोखा देना सीख लिया है हमने और अपने आप को बड़ा तीरंदाज समझते है
हम साठ साल के हो गए है सठिया गए है लगता है ,क्या थे क्या हो गए ,सुनहरे कल कि तरफ़ जाते हुए ,?
राम खिलावन सोच रहा है ड्रामा है सब------------- ड्रामा है