Wednesday, November 11, 2009

शुभ हो

कल रात से पानी बरस रहा है ,कब तक बरसेगा किसी को कुछ पता नही ,फयाना तूफान निकल गया साइड पोज दे कर ,उसके इस पोज से लोग कयास लगाते रहे तरह तरह के कोई कुछ तो कोई कुछ बके जा रहा है जितने लोग उतनी दुनिया उतने मायने उतने सूरज उतने चाँद अपना ,अपना सच ,अपना अपना झूठ लिए लोग जी रहे है ये मानते हुए की वे हमेशा जीवित ही रहेंगे ,हमेशा जीवित रहने का मुकालता पाले लोग और उनके काम भी उसी तरह के भूल जाते है की उन्हें भी जाना है ,वापस घर ,लेकिन वे परदेश को ही घर समझ बैठे है ,समझ का फेर ही तो सब कुछ है जो जागते है वो समझते है ,जो सोते है वो .................
वर्तमान ही जीवन है एक जगह पठने को मिला जीवन और कुछ नही , बस घर लौटने की यात्रा मात्र है
आ अब लौट चले ...........
किसी कवि सम्मलेन में कवि की ये पक्तिया कितना कुछ कहती है ............
प्रेम से तुम सुनो
और सुन कर गुणों
मन मिलाओगे तो ,मन से जुड़ जायेंगे
वरना हम है पखेरू बहुत दूर के
बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे
उड़ कर जायेंगे कहा ,घर ही आख़िर .................
घर वो जगह है जहा हम,आप ,सब बुरके उतार फेकते है ,पहुचते ही और अपने मूल स्वाभाव में आ जाते है ,बाहर हम कही कुछ तो कही कुछ बने ड्रामा करते रहते है अपने अपने रोल अदा करते ,जो रोल बेहतर करते है उनकी फ़िल्म सफल हो जाती है जो रोल बेहतर नही करते उनकी फ़िल्म असफल हो जाती है लेकिन लौटते दोनों है घर ,उसी घर में जहा से आए थे
कहा से आए थे और कहा घर है ,ये उन्ही को मालूम है जो मालूम करना चाहता है ,चाहने भर से कुछ नही होता ,चाहने को मूर्त रूप देना होता है और मूर्त रूप वाही दे पाते है जो पुरी तरह शत प्रतिशत चाहते है ,प्रशन बस प्रतिशत ,शत प्रतिशत का है
मन ,बेमन का है
मन मिलओंगे तो मन से मिल जायेंगे वरना हम है पखेरू
बहुत दूर के बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे ..............................



भोर भई