Thursday, August 12, 2010

झेलो झेलो .............

शनिचर कहते है, झेलना, मानव स्वभाव यदि मानव दानव न बन जाये तो वह अपने इस स्वाभाव को जन्म से म्रत्यु तक निभाता है अपनी स्वार्थ सिद्दी के लिए झेलना लाजमी भी है जैसे पैदल चलना टहलना स्वास्थ के लिए इन लोगो से जो घूमते टहलते है उनसे धीरे से पूछो तो जोर से बताते है ,घुमने ,टहलने केलाभ ,वे लगे हाथ बता देते है गुण भी कोई खूसट न हुआतोशनिचर कहते है यदि कोई जीवन भर पैदल चले /घुमे तो उसे बबासीर भी हो सकता है कभी अलग से शनिचर इस नाजुक विषय पर एवररेडी टार्च से प्रकाश डालेंगे
खैर चर्चा हो रही है झेलने पर ,रामखिलावन खटिया में अपनी चिरपरिचित मुद्रा में उतान पड़े है शनिचर प्रकास डाल रहे है बगल में बलभद्र उकडू विराजमान है तीनो की तिकड़ी के अलावा चौथे आप है ,तो सुनिए शनिचर क्या कह रहे है ,दादा हम अपने स्वभाव को कैसे बदल सकते है आम के पेड़ में जामुन कहा लगती है ,जिसका जो स्वभाव है उसी के अनुसार वह जीवन भर एक्ट करता है फिर मर मुरा जाता है चना मुर्रा की तरह हमारे यहाँ मानव नाम के प्राणी की बेधड़क पैदावार है बिना खाद पानी के अच्छी फसल तैयार हो जाती है लोग बाग़ इस विषय पर एक दुसरे को मदद करते भी देखे गए है शनिचर कहते है की मानव ,जीवन भर अपना धर्म निभाता है और निभाते निभाते ,निकल लेता है उसकी जगह कुछ और लोग पैदा हो जाते है म्रत्यु के डर से जन्म नहीं रुकते ऐसा शनिचर का कहना है
भारत भूमी में झेलने की प्रथा ,परम्परा युगों युगों से अहिर्निश चली आ रही है , जिसे हम आज भी निभा रहे है निभा इस लिए रहे है की न निभाने का दम नही है ,न निभाए तो निपूर न जाये ऐसा शनिचर कहते है आगे कहते है की हमने दुसरे रीति रिवाज संस्कार ,सभ्यता हिंद महा सागर में बड़ी सी चट्टान में बांध कर डूबा दिए है झेलने भर की प्रथा लिए हम घूम रहे है
यदि झेलने को खेल के रूप में लिया जाये और उसे कामनवेल्थ /ओलम्पिक आदि में खेला जाये तो हमे स्वर्ण के नीचे कोई पदक नही मिल सकता यह ध्रुव सत्य है झेलने ,झेलवाने में हमारा कोई सानी इस धरा पर नही धरा है शनिचर बोले
झेलने के लिए हम सदा सदा से सदैव तैयार रहते है झेलने के कण हमारे शरीर में हिमोग्लोबीन की तरह रहते है झेलने का हमारा गौरवशाली इतिहास रहा है जिसे हमने मेंटेन कर रखा है इतिहास के पन्ने पलटो पल्ट्टू राम झेलने की गौरव गाथाओं से भरे पड़े है झेलने की हमारी विरासत जो हमें मिली है ज्यो की त्यों हम देश की नई फसल को सौपने का विचार रखते है
आज के परिपेक्ष में जनता ,नेता जी को झेल रही है ,नेता जनता को एक दुसरे को दोनों समयानुसार सुविधानुसार झेल रहे है जनता महगाई झेल रही है ,देखिये जब एक रुपिया का दस सेर घी मिलता था तब भी वो महगा लगता था और अब जब पांच सौ रूपया का एक किलो मिल रहा है तो भी झेल रहे है अग्रेजो को भी खूब झेला इस देश ने आजादी के पहले ,एक भोले भंडारी है भगवान शंकर ,विष ही झेल गए ,झेलने में अमरत्व के गुण छिपे है ऐसा भी शनिचर कहते है कुछ लोग इसी लिए भी जीवन भर एक दुसरे को झेलते रहते है अमर तो होते नहीं मर जरुर जाते है इस चक्कर में
स्कुल में लौड़े मास्टर को झेल रहे है मास्टर लौड़ो को ,ऑफिस में अफसर ,मुलाजिमो को ,मुलाजिम अफसर को .कौन किसे और क्यों झेल रहा है ,कब से झेल रहा है ,कब तक झेलेगा बीच में पटक तो नहीं देगा ये सब शोध के विषय है शनिचर कहते है चोर पुलिस के साथ साथ उसके डंडे को भी झेल रही है एक साथ दो दो को ,कभी कभी इस देश में एक साथ कियो को झेलना पड़ता है ये तो भला हो की हम सब इसके आदी है नही तो बैंड बज जाये हमारी सड़के चालीस चक्के वाले ट्रेलर को झेलती है जनता गड्डो वाली सडक को
इस देश में हम शोकिया खेल खेल में कभी बाढ़ तो कभी सूखा कभी भूकम्प को भी झेलते है पहले पुरखे कहते है की हम लोग अपने जमाने में प्लेग ,हैजा ,चेचक ,टीवी और न जाने क्या क्या झेलते रहे है ,मतलब झेलने की हमारी स्वस्थ परम्परा रही है जिसे हम ज्यो का त्यों निभा रहे है
झेलना शाश्वत है हम और हमारा देश झेलने में विश्व में अपना एक अलग स्थान रखता है और अपने स्थान से हिलता डुलता भी नही है ,गुरुत्वाकर्षण के सिधान्तो का पालन करता है इस देश में जो जितना बड़ा झेलू उसका कद भी उतना बड़ा ,व्यक्तित्व विकाश के लिए झेलुपन एक अनिवार्यता है ,बिना इस गुण के आप इस देश में कुछ नही कर सकते विकसित नही हो सकते ,विकसित नही होगे तो पीछे राह जायेंगे कोई पीछे रहना नही चाहता इस युग में ,चठ बैठ रहे है जीवन की मैराथन में एक दुसरे पर
शनिचर कहते है झेलने से शांती बनी रहती है शांती में ही विकाश होता है जो छिपा है उसे बाहर निकलना है जो ठका है उसे उघाड़ना है ,जो बिना झेलने के सम्भव नही है सो हम झेल रहे है ............झेलो झेलो ............