
रामखिलावन से बलभद्र रूबरू हो रहे थे ,दिशा मैदान जाते जाते रूक गए थे वे का हो बलभद्र कैसन रुक गया ,जिस लिए जा रहे थे का वो भी रुक गया का ?
अरे दादा अपनोऊ ,सकारे- सकारे .......
रामखिलावन कान माँ जनेऊ खोसे खासे एक हाथ में लोटिया लिए और दुसरे हाथ से मुखारी ,मुह में घुसेड़े ,बीच बीच में इधर उधर जहा जी चाहे थूकते खखारते दिसा कर दातून करते गृह ग्राम की ओर खरामा -खरामा ,लौट रहे थे तभी बलभद्र महाशय ,टहलते -टहलते उसी ओर जातेदिख गए और रुक गए बलभद्र रुके तो वो सब भी रुक गया जिस लिए वो जा रहे थे हाथ माँ लोटिया लै,दादा ,कोई कह रहा था सो सुना और जो सुना वो सुना रहे है
रामनिहोर कह रहे थे क्या गा रहे थे जोर जोर से .........".इस देश का यारो क्या कहना " ....ये देश है ......
क्या कहना का मतलब ........समझ में नहीं आ रहा है ,और इसी चक्कर में जो कुछ करने जा रहे थे सब रुक रुका गया
रामखिलावन बोले अरे ससुरे पहले हो हुआ लो नहीं तो यही कछनी में पोक- पाक दोगे तो अभी वही कहेगा कि इस बलभद्र का यारो क्या कहना
बलभद्र के सर के बहुत ऊपर से जहा ,पर दिखता नहीं था वहा से रामखिलावन का उक्त उदबोधन निकल गया और वो सुन समझ नहीं पाये कि रामखिलावन ने क्या कहा
खैर कोई बात नहीं ,कछनी बीच में दगा न दे जाये मात्र इस भय से बलभद्र भागते हुए ,कुछ झाड़ियो के पीछे उकडू बैठ गए ,कब तक ये वही बलभद्र जाने बलभद्र फारिक हो ,मौका ऐ बारदात से ऐसे निकल लिए ,जैसे कुछ किया ही न हो तभी उनके दिमाग में एक लल्लन टॉप आइडिया बिना पूछे पाछे घुस गया ,जो बहार निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था इस तरह की बकलोली बलभद्र के साथ अकसर हो जाती अब तक वे गर्भवती महिलाओ की तरह चलते चलते गाव के किनारे पहुच रहे थे तभी किसी ने एक डेला सनसनाते हुए उसी तरफ दनदना दिया जिस तरफ से रामखिलावन की सवारी गाव में प्रवेश का रही थी हद हो गयी इन ससुरे गाव वालो को कौन सुधारे ,मन में विचार आया की जब देश नहीं सुधरा तो इस इस ससुरे गाव की क्या बिसात कि सुधर जाये यह विचार जैसे आया था वैसे ही चला गया क्यों कि दिमाग में घुसा लल्लन टॉप आइडिया किसी और सोच विचार को ज्यादा देर टिकने नहीं दे रहा था वैसे भी बलभद्र के दिमाग में जगह कुछ कम ही बची थी क्यों कि अभी आधी से ज्यादा जगह वो ससुरा लल्लन टॉप आइडिया घेरे था शेष जगह पहले से भरे कबाड़ और उटपटागख्यालो ने घेर रखी थी
बलभद्र सोच रहे थे कि ये डेला जो अभी अभी स्कर्ट मिसाइल की तरह पास ही गिरा है अगर हमारे मुह माँ या इस नश्वर शरीर के किसी अंग में आ धमकता क्या होता अंग भंग तो तय था ऐसा उनका विचार बन रहा था विचारो का आना जाना .कुछ देर रुकना और फिर गंतब्य की तरफ निकल जाना कुछ विचार मॉल गाडियों की तरह कुछ ज्यादा देर भी रुके रहते जैसे अभी लल्लन टॉप आइडिया घुस कर नाहक रुका हुआ है सिगनल होने के इंतजार में जाने कब तक रुका रहे यह बलभद्र को भी नहीं मालूम था
अरे दादा अपनोऊ ,सकारे- सकारे .......
रामखिलावन कान माँ जनेऊ खोसे खासे एक हाथ में लोटिया लिए और दुसरे हाथ से मुखारी ,मुह में घुसेड़े ,बीच बीच में इधर उधर जहा जी चाहे थूकते खखारते दिसा कर दातून करते गृह ग्राम की ओर खरामा -खरामा ,लौट रहे थे तभी बलभद्र महाशय ,टहलते -टहलते उसी ओर जातेदिख गए और रुक गए बलभद्र रुके तो वो सब भी रुक गया जिस लिए वो जा रहे थे हाथ माँ लोटिया लै,दादा ,कोई कह रहा था सो सुना और जो सुना वो सुना रहे है
रामनिहोर कह रहे थे क्या गा रहे थे जोर जोर से .........".इस देश का यारो क्या कहना " ....ये देश है ......
क्या कहना का मतलब ........समझ में नहीं आ रहा है ,और इसी चक्कर में जो कुछ करने जा रहे थे सब रुक रुका गया
रामखिलावन बोले अरे ससुरे पहले हो हुआ लो नहीं तो यही कछनी में पोक- पाक दोगे तो अभी वही कहेगा कि इस बलभद्र का यारो क्या कहना
बलभद्र के सर के बहुत ऊपर से जहा ,पर दिखता नहीं था वहा से रामखिलावन का उक्त उदबोधन निकल गया और वो सुन समझ नहीं पाये कि रामखिलावन ने क्या कहा
खैर कोई बात नहीं ,कछनी बीच में दगा न दे जाये मात्र इस भय से बलभद्र भागते हुए ,कुछ झाड़ियो के पीछे उकडू बैठ गए ,कब तक ये वही बलभद्र जाने बलभद्र फारिक हो ,मौका ऐ बारदात से ऐसे निकल लिए ,जैसे कुछ किया ही न हो तभी उनके दिमाग में एक लल्लन टॉप आइडिया बिना पूछे पाछे घुस गया ,जो बहार निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था इस तरह की बकलोली बलभद्र के साथ अकसर हो जाती अब तक वे गर्भवती महिलाओ की तरह चलते चलते गाव के किनारे पहुच रहे थे तभी किसी ने एक डेला सनसनाते हुए उसी तरफ दनदना दिया जिस तरफ से रामखिलावन की सवारी गाव में प्रवेश का रही थी हद हो गयी इन ससुरे गाव वालो को कौन सुधारे ,मन में विचार आया की जब देश नहीं सुधरा तो इस इस ससुरे गाव की क्या बिसात कि सुधर जाये यह विचार जैसे आया था वैसे ही चला गया क्यों कि दिमाग में घुसा लल्लन टॉप आइडिया किसी और सोच विचार को ज्यादा देर टिकने नहीं दे रहा था वैसे भी बलभद्र के दिमाग में जगह कुछ कम ही बची थी क्यों कि अभी आधी से ज्यादा जगह वो ससुरा लल्लन टॉप आइडिया घेरे था शेष जगह पहले से भरे कबाड़ और उटपटागख्यालो ने घेर रखी थी
बलभद्र सोच रहे थे कि ये डेला जो अभी अभी स्कर्ट मिसाइल की तरह पास ही गिरा है अगर हमारे मुह माँ या इस नश्वर शरीर के किसी अंग में आ धमकता क्या होता अंग भंग तो तय था ऐसा उनका विचार बन रहा था विचारो का आना जाना .कुछ देर रुकना और फिर गंतब्य की तरफ निकल जाना कुछ विचार मॉल गाडियों की तरह कुछ ज्यादा देर भी रुके रहते जैसे अभी लल्लन टॉप आइडिया घुस कर नाहक रुका हुआ है सिगनल होने के इंतजार में जाने कब तक रुका रहे यह बलभद्र को भी नहीं मालूम था
खैर कुछ देर वे वही खड़े रहे जहा स्कर्ट मिसाइल गिरी थी फिर वे उस तरफ जिस तरफ से देला जो स्कर्ट मिसाइल की तरह आया था देखने लगे की शायद इसे दागने वाला दिख जाये पर कोई दिखा नहीं ,वैसे भी बलभद्र के पास कोई दूरबीन तो थी नहीं कि देख सके कि कौन महा मानव इस राष्ट्र को महा राष्ट्र बनाने में तल्लीनता से लगा हुआ है वह शक्ती ईश्वर की तरह अद्रश्य ही बनी रही जिसने डेला मारा था अब बलभद्र को अपनी दूर द्रष्टी की कमी पर ग्लानी हुई जो स्वाभाविक थी
दिन चठ आया था ,सोच बलभद्र घर की ओर बठ लिए ,उन्हें नहा -खोर के उस टापों-टाप आइडिया के बारे में दादा रामखिलावन से सलाह मशविरा करना था जो उनके आज के apointment में सबसे पहले था
दादा रामखिलावन लाखौरीबाग में पडी खटिया में परे थे जिसकी अचमाइन झुलझाल के खटिया को खटिया कम हैमर बनाये हुए थी दादा एक में ही दोनों की मजा ले रहे थे ,मजा लेते लेते मंद मंद मुस्का भी रहे थे शायद उन्हें लखौरी बाग में गुजारे जवानी के दिन याद आ रहे हो वैसे दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता था कि यही सही है ,सत्य है वे क्या और क्यों सोच रहे है और क्यों मुस्का रहे है यह उनका पूर्णत गोपनीय मामला था वैसे भी दादा रामखिलावन अपने गोपनीय मामलो में दखलंदाजी बर्दास्त भी नहीं करते थे
बलभद्र दवे पाँव खटिया तक पहुच ,प्रातः कालीन स्मरणीय दादा रामखिलावन के पाँव छूने को झुके ही थे कि पाँव छूते ही ,रामखिलावन चौके ,जैसे कोई कनखजूरा घुसपैठ कर रहा हो उनकी अधखुली परदनी में उन्होंने बिना देखे पैर झटका जो बलभद्र को बिसात कस के लगी और वे बिलबिला गए रामखिलावन ने अपने मुखाग्र बिंदु से पैर झटकते समय शुद्ध गालियों की बैउझार भी मारी जिससे भीगे बिना बलभद्र नहीं रह पाए अरे बलभद्र तुम हो हम जानी ससुरा कनखजूरा घुसा जा रहा है बेरोक टोक और न जाने कहा जा कर रुकता कही राजधानी तक पहुच जाता तो कबाड़ा ही हो जाता ,खैर कैसे हो की खबर लाये हो देश ,दुनिया की ?
बलभद्र अपना सर सहला रहे थे जहा पर अभी अभी अप्रत्याशीत लात घली थी का थथोल रहे हो
बलभद्र ,सकारे सकारे ...................
सकारे सकारे फराके
से आने के बाद उनका दिमाग काम नहीं कर रहा था सो बोले दादा जौन लात घली है पिराय
रही है अब बाते काल्ह
होहिये ..................................
बलभद्र