Saturday, March 27, 2010

लिव -इन रिलेशनशिप

राम खिलावन बोले कहो बलभद्र, का खबर है |

खबर ,असरदार है| खबर, ख़बरदार है, भैया | बलभद्र बोले |

और मजेदार भी है, का ? रामखिलावन बोले |

मजेदार और ख़बरदार में बड़ा अंतर होता है दादा, बलभंद्र बोले |

, सुना नहीं ...........|

खबर है लिव -इन रिलेशनशिप के बारे में विचार विमर्श चल रहा है|

पूरा देश आज कल इसी बहस में जा फसा है |

ये फसा फसौअल का खेल तो हम लोग पता नहीं कब से खेल रहे है ,बलभद्र, तुम्हे नहीं मालूम ,रामखिलावन बोले |

लिव -इन रिलेशनशिप का, फसा फसौअल का खेल है का ? तुम हु, रामखिलावन दादा कहा की बात कहा धर देते हो| इधर सारा देश भिड़ा हुआ है सही और गलत के चक्कर मा सर्वे फर्वे भी हो रहे है जगह जगह बहस झिडी है ,समाज सेवी नाम का जीव जो बहुत दिनों से दिख नहीं रहा था झोला लटकाए निकल पड़े है दाडी तोवे रखे ही रहते है क्यों की मौके बेमौके निकलना ही पड़ता है उन्हें| गोया की समाज इधर उधर चल निकल जाये गदहे में चढ़ के ,की फिर मिले ही न| समाज को और अपनी प्यारी प्यारी सभ्यता को संभाल कर रखना इन्ही दाडीधारियों का कम है |

दादा ,तुमहू लगे हो इहा उहा करने में ,बात का बतंगड़ बनाना कोई तुमसे सीखे |

तिल को ताड़ और ताड़ को तिल बनाना तो भैया हमारा पुराना धंधा है और देखते नहीं हो ,हम सब कर क्या रहे है ,हमारी गलती है तो तिल, तुम्हारी है तो ताड़ ये खेल तो हम सब बखूबी खेलते रहते है और इसी में जिंदगी गुजार देते है |

सुनो बलभद्र ,

एक बार किसी खिसनिपोर ने , नहीं बड़े ज्ञानी ने पंडित रामकिंकर जी से पूछा की बताये हम में और राम में क्या अंतर है ? राम किंकर जी महराज बोले -भैया कोई अंतर नहीं बस इतना अंतर है कि, हम अपने लिए दयालु है, और दुसरे के लिए मर्यादित ,भगवान राम अपने लिए मर्यादित थे और दुसरे के लिए दयालु |

कहो कैसी रही ? रामखिलावन बोले |

अब बलभद्र का खा के बोले |सन्न रह गए |

सनसनाते हुए, थोड़ी देर बाद जब बलभद्र परालोक से धरालोक में अवतरित हुए तो फिर लिव -इन रिलेसनशिप का भूत उन पर चठ गया, लोटन कबूतर कि तरह |

जो फिर उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था |

का हो देवी चठी है का कि अभुआ रहे हो ......|रामखिलावन बोले |

बलभद्र सोच रहे थे कि का बताये अर्थ का अनर्थ करने में तो दादा, विशारद पास किये है ,हम तो संवाद करने निकल थे इहा तो लगता है लिव -इन रिलेशनशिप के चक्कर मा वाद विवाद होई जई...| लिव-इन रिलेशनशिप होने के पहले ही भिड भिड़ा जाये और तो और कही पिटपिटा जाये ..खबर ,ख़बरदार तो है पर असरदार भी है ऐसा बलभद्र को जान पड़ा|

बलभद्र के दिमाकी आगन में विचारो कि धमाचौकड़ी मची हुई थी कोई कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था| एक विचार दुसरे विचार को दिए मार रहा था कि दूसरी तरफ एक विचार दुसरे विचार को लिंगी फ़साने कि जुगाड़ में लगा था |

तभी एक हट्टे कट्टे विचार ने एक दुबले से विचार को जो किनारे बैठा लिव -इन रिलेशनशिप के बारे में अपना लघुशोध प्रबंध पठने के लिए उठा ही था कि ,उसने लतियाते हुए उसके कागज पत्तर फाड़ फ़ूड दिए वो बेचारा घिघियाते हुए ही बैठ गया जहा से उसने उठने कि कोशिश की थी |

बड़ा घमासान मचा हुआ था बलभद्र को ऐसा लग रहा था कि यह घमासान कही शमशान में बदल जाये |

बलभद्र का सर भन्न भन्न भन्नाने लगा , उसे ऐसा लग रहा था कि कोई उसे एक नहीं दो ठो सेरिडान

दे दे ....भाड़ में जाये ये लिव -इन रिलेशनशिप का चोचला ..............|अभी जैसा चल रहा है ठीक है ,फिर सके दिमाग में ख्याल आया कि नहीं परिवर्तन ही उन्नति है भैया चलने दो चलने दो ..........|

रामखिलावन बोले भैया बलभद्र का सोच विचार में पड़ गए हो ऐसा सोचने लायक , विचार तो नहीं है कि तुम धाय धाय सोचे जा रहे हो |

अरे सोचने से भी कभी कुछ होता है ,करना पड़ता है तभी कुछ होता है ,तुम कैसे हुए तुम्हे मालूम है का सोचने से हुए हो नहीं भैया रजा .कुछ करना पड़ता है

करो या मरो गाँधी जी का नारा भूल गए का, इतना हरबी | अभी तो सोच विचार चल रहा है ये विचार भी कुछ कम नहीं है ससुरा ,चलते चलते कहा और कब बैठ जाये सोच के साथ किसे पता और का ये पता लगाने देता है ससुरा वो तोतब पता चलता है जब वो बैठ जाता है |पता नहीं कितने सोच, विचार के साथ चले और मील दो मील chal

kar baithh गए कि फिर उठे ही नहीं अभी भी बैठे बैठे पगुरा रहे है|

चिंता छोडो सुख से जियो ,दुःख से भी जीना कोई जीना है भैया ,बस जिए जा रहे हो ,कुछ पत्ता वत्ता है नहीं लगे हो सामाजिक अध्ययन में ............|

रामखिलावन कि इन दार्शनिक बातो को सुन बलभद्र को अपनी नीचता पर क्रोध आया और वह ग्लानी से लबलबा गया ,जब बलभद्र ने देखा कि उसकी ग्लानी लबलबा कर नीचे उसकी नीचता की तरह गिर रही है तो वो हैरान हो गया उसे लगा कि उसे लिव -इन रिलेशनशिप के बारे में ऐसा वैसा नहीं सोचना चाहिए ,उसे वैसा ही सोचना चाहिए जैसा सब सोचा रहे है |

तभी रामखिलावन बोले भैया बलभद्र का सोच रहे कुछ सोचने जैसा तो नहीं है ......................|लेकिन तुम्हारा बड़ा मन तो सोचो ..........सोचो सोचो ........सोच लो तो फुरसत में हमहू का बताना |