Wednesday, July 22, 2009

अपने अपने सच

सच और झूठ ,अपने अपने होते है तुम्हारा सच मेरा सच नही हो सकता है न मेरा झूठ तुम्हारा झूठ हो सकता है
इस बड़ी दुनिया में अरबो खरबों छोटी छोटी दुनिया है ,तुम्हारी दुनिया ,मेरी दुनिया ,उसकी दुनिया ,हम सब चेते ,
अपनी दुनिया को ही सवारने में उर्जा लगाये दुसरे की दुनिया के मीन मेख न निकाले जिसमे हमारी मास्टरी है
प्रकृति के संकेतो को जाने माने और चल दे उसी रह पर सब कुछ आपका है क्यो की आप प्रकृति की ही तो संतान है मानो तो सही ,हम बाते भर करते है मानते कहा है मत मानो बिना जाने ,जानने की कोशिश करो और जब जान
लो तभी मानो मानो तो फ़िर मानो देखो फ़िर क्या से क्या होता है संकेतो को पठना सीखे जैसे हम माइल स्टोन
में लिखे बने संकेतो को समझ समझ कर लम्बी लम्बी दूरिया तय कर लेते है मान चित्र के संकेतो के सहारे ,कहा से कहा पहुच जाते है
शरीर भी संकेत देता है जो समझते है वे समझदार है जो नही समझते ये कुछ ज्यादा ही समझदार है ,फ़िर उन्हें समय समझाता है ,समय सब को समझाता है क्या ऐसा नही हो सकता की हम समय को समझ ले संकेतो को समझ ले तो सारी समस्या ही ख़तम हो जाए अमन चैन आ जाए जीवन में बसंत आ जाए जीवन में पर जोर जबरजस्ती से कोई मन माफिक मौसम जीवन में नही उतरते है , नही आते है मौसम का अपना मिजाज है
मौसम किसी का गुलाम नही है आपके जीवन का मौसम कैसा है ? कभी मौसम बदले भी या उही बेमौसम बरसात
सा जीवन कट गया या कट रहा है कुछ कटता कूट ता नही है बस नजरो का फेर है ,जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी
हम अपनी मूरत देखे ,कभी देखि है ,कबीर ने देखि थी ,बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलाया कोय जो दिल खोजा आपना मुझसा मिला न कोय और आप खोजते है तो आप से बेहतर कोई है नही सारी दुनिया बदतर है आप भर है जो सब जानते है अच्छा बुरा है यही बात या फ़िर कुछ और भी है आपके दिल में ,आपका दिल ,दिल नही दरिया है
पता नही क्या क्या भरा है ये तो आप से भेहातर कौंन जानेगा है ना
उतार फेके बुर्को को खुली हवा में सास ले देखे सच क्या है कब तक मुह छिपाए छिपाए जीवन जियेंगे लाखो करोडो शुक्रानुओ को हराने के बाद एक सफल शुक्राणु से आपका जन्म हुआ है विजेता के रूप में और जीवन जी रहे है पराजित की तरह जी रहे है या जिंदगी जी रहे है ये तो आप को तय करना है
कुछ कहते है जिंदगी कट रही है ,वो ये नही जानते की ख़ुद कट रहे है टुकड़े हो हो कर अपना अपना सच है अपना अपना झूठ शेष फ़िर कभी .........................................