Wednesday, May 13, 2009
कहा गए वो संस्कार
आज याद आए पुराने दिन याद आए घर छोटा था पर जगह बहुत थी पत्ता नही कहा कहा से लोग आते और रुकते सारा घर भाभी ',दद्दा सब का स्वागत खाने पीने की जरूरतों का ध्यान रखते आतिथि होते अपनापन होता अपने होते आज घर बड़े बड़े है पर जगह छोटी हो गई है जगह ईट गारे से नही बनती और न ही घर , घर बनता है संस्कारो से , कहा गए वो संस्कार ,जब की हम लोग है उन्ही घरो से ,बड़ी बड़ी बाते करते नही अघाते दूसरो पर थोस निकलना हमारा प्रिय विषय है चर्चा के प्राण है छोटा सा जीवन फ़िर क्यो इतनी भाग दोड़ कहा जाओगे भाग के क्या छूना चाहते हो क्या पाना चाहते हो जो है उसे तो जी नही रहे जो है वही बहुत है अपनों की सीमा में कब तक बधे रहोगे कभी बाहर निकल कर के तो देखो ,
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