
राम खिलावन चुप चाप परे है ,खटिया में ,और चिंतन जारी है
रहिमन चुप हो बैठिये देख दिनन के फेर
अच्छे दिन जब आयेगे एको लगे न देर
राम खिलावन दिनों के फेर में बदलाहट देख ,रहीम की बात याद कर चिंतन कर रहे है की बिना ,अनुभव के तो रहीम दादा ने ये लिखा न होगा ,उनके भी दिन फिरे होगे जैसे घूर के फिरते है ,घूर पड़ा रहता है ,चुप चाप, लोग और घूर उसी घूर में डालते रहते है ,घूर में घूर नही डालेंगे तो किसमे डालेंगे ? तुम्हारे ऊपर फेके ,क्या ?
फेक दो ,हम भी घूर से क्या कम है ,लेकिनयाद रखना , घूर के भी दिन फिरते है बोलो क्या इरादा है ?अभी तो फेकेगे ही फ़िर की फ़िर देखि जायेगी
हम सब एक दुसरे के ऊपर क्या नीचे से भी घूर फेके जा रहे है अहिर्निश आस पास जो है सो है ही ,दूर से दूर बैठे जान और अनजान लोंगो पर भी घूर फेकने में पूरी ताकत लगाये रहते है पूरी उर्जा को हम दुसरे की बुराई देखने में ही झोके रहते है ,दुसरे की अच्छाई देखने में हमारी आँखों को मोतिया बिन्दु न हो जाए इस डर से देखते ही नही बलभद्र यही सोचता है और इलाके भर के लोगो के बारे में उसे वो हर बात पत्ता है जो उन्हें ख़ुद नही मालूम ,लोग
अपने बारे में सही सही पत्ता लगाने बलभद्र के पास आते है और बलभद्र उन्हें उनके बारे में वो सभी बाते दिल खोल कर बताते जो व्यक्ति विशेस को भी नही पत्ता होता और वह अपने बारे में इतनी सारी बाते जान कर , वो हट प्रद हो जाते,अचकचिया जाते किम कर्तव्य की भूमिका निभाने लगते और इस रोल को वे बखूभी निभाते निभाते घर पहुचते ,और मुह ओरमा के चित हो कर ,खटिया में धस जाते ,और धसे धसे कब सो जाते उन्हें ख़ुद पत्ता नही लगता जैसे उन्हें ख़ुद के बारे में पत्ता नही होता ,खैर फ़िर उनकी दयामयी पत्नी यानि की अर्धांगनी ,उस बेसुरे को जगाती ,जो बेसुध होते ,सुध में आते और फ़िर किग्न्कोंग की तरह अपने कर्तव्य शुरू कर देते
बलभद्र के पास सब का ईन्शाय्क्लूपिदिया है आप का भी है ...........................अपने बारे में यदि जानना हो तो ,आप बलभद्र से संपर्क कर सकते है
खैर ,मोतिया बिन्दु के डर से डरे नही ,कुछ नही होगा ,जब होना होगा तब आप रोक भी नही सकते ,हा ये बात जरुर है की यदि आप दूसरो की अच्छैया देखना सुरू कर देंगे तो निश्चित है की आपको मोतिया बिन्दु का प्रकोप नही होगा ,ये सब आप पर निर्भर करता है की आप क्या चाहते है ,घूर के दिन भी फिरते है ,आप के भी फिरेंगे ,हा घूर फिकवाते रहे आप ,अपने आप पर,पर उनका क्या होगा जो घूर फेक रहे है और फेके जा रहे है बिना रोक टोक ,
राम खिलावन का चिंतन यही है
निदक नियरे रखिये आगन कुटी छवाए ,बिन पानी साबुन बिना निर्मल होय सहाय
राम खिलावन के चिंतन से आप कितना सहमत है ये जरुरी नही है पर राम खिलावन का चिंतन जारी है साथ ही बलभद्र का भी .....................................
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