
Tuesday, November 17, 2009
Monday, November 16, 2009
तुम्हारे लिए
गाव के छाया चित्र आपको क्या सोचने के लिए कहते है भोर की अंगड़ाई मोह पाश में बाधने के लिए बुला रही है बिना किसी राग द्वेष के तुम्हारी भूली बिसरी यादो के साथ आवाज दे रही है देखो तुम कहा भटक गए ,निर्मल मन अब कितना निर्मल रहा ,तुम ऐसे क्यो हो गए ,क्या पाने के जुगत में तुमने अपनी काया माया को इतना गिरा दिया या उठा लिया की अब वास्तविकता से कोषो दूर हो गए
घर लौटने की तैयारी नही करोंगे ,क्या घर नही लौटना है ,कोई हमेशा यहाँ नही रहा है तो फ़िर तुम क्या रहोंगे ,फ़िर भी ,कोई तैयारी नही ,तुम्हे याद होगा तुमने परिझाओ की माकूल तैयारिया की थी सो हमेशा पास होते रहे और हर ऐसी तैयारिया तुम करते रहे हो जिससे आज इस मुकाम तक सफलता पूर्वक पहुचे ,फ़िर घर लौटने की तैयारी क्या तुम नही करोंगे ,उसकी भी तो तैयारी करनी होगी ,कब करोंगे ,बिना तैयारी के क्या घर लौटने का इरादा है ,यदि ऐसा हो तो फ़िर कोई बात ही नही , अगर नही तो फ़िर शुरू करो घर लौटने की तैयारी देखो कितना आनंद आता है ,
जिंदगी के साथ साथ और जिंदगी के बाद भी
लोगो को 'बड़ा भ्रम है की जिंदगी के बाद भी क्या जिंदगी है ,कितनी सरल बात को भी लोग कितना कठिन बनाये हुए है ,हम घर से दस बजे आफिस जाते है और पांच बजे आफिस से घर वापस आते है तो क्या जीवन दस और पाच के बीच ही है क्या ? जीवन दस बजे के पहले और पांच बजे के बाद भी है इसी प्रकार जीवन जनम से पहले और म्रत्यु के बाद भी है ......................
आ अब लौट चले .......................................
घर लौटने की तैयारी नही करोंगे ,क्या घर नही लौटना है ,कोई हमेशा यहाँ नही रहा है तो फ़िर तुम क्या रहोंगे ,फ़िर भी ,कोई तैयारी नही ,तुम्हे याद होगा तुमने परिझाओ की माकूल तैयारिया की थी सो हमेशा पास होते रहे और हर ऐसी तैयारिया तुम करते रहे हो जिससे आज इस मुकाम तक सफलता पूर्वक पहुचे ,फ़िर घर लौटने की तैयारी क्या तुम नही करोंगे ,उसकी भी तो तैयारी करनी होगी ,कब करोंगे ,बिना तैयारी के क्या घर लौटने का इरादा है ,यदि ऐसा हो तो फ़िर कोई बात ही नही , अगर नही तो फ़िर शुरू करो घर लौटने की तैयारी देखो कितना आनंद आता है ,
जिंदगी के साथ साथ और जिंदगी के बाद भी
लोगो को 'बड़ा भ्रम है की जिंदगी के बाद भी क्या जिंदगी है ,कितनी सरल बात को भी लोग कितना कठिन बनाये हुए है ,हम घर से दस बजे आफिस जाते है और पांच बजे आफिस से घर वापस आते है तो क्या जीवन दस और पाच के बीच ही है क्या ? जीवन दस बजे के पहले और पांच बजे के बाद भी है इसी प्रकार जीवन जनम से पहले और म्रत्यु के बाद भी है ......................
आ अब लौट चले .......................................
Thursday, November 12, 2009
Wednesday, November 11, 2009
शुभ हो
कल रात से पानी बरस रहा है ,कब तक बरसेगा किसी को कुछ पता नही ,फयाना तूफान निकल गया साइड पोज दे कर ,उसके इस पोज से लोग कयास लगाते रहे तरह तरह के कोई कुछ तो कोई कुछ बके जा रहा है जितने लोग उतनी दुनिया उतने मायने उतने सूरज उतने चाँद अपना ,अपना सच ,अपना अपना झूठ लिए लोग जी रहे है ये मानते हुए की वे हमेशा जीवित ही रहेंगे ,हमेशा जीवित रहने का मुकालता पाले लोग और उनके काम भी उसी तरह के भूल जाते है की उन्हें भी जाना है ,वापस घर ,लेकिन वे परदेश को ही घर समझ बैठे है ,समझ का फेर ही तो सब कुछ है जो जागते है वो समझते है ,जो सोते है वो .................
वर्तमान ही जीवन है एक जगह पठने को मिला जीवन और कुछ नही , बस घर लौटने की यात्रा मात्र है
आ अब लौट चले ...........
किसी कवि सम्मलेन में कवि की ये पक्तिया कितना कुछ कहती है ............
प्रेम से तुम सुनो
और सुन कर गुणों
मन मिलाओगे तो ,मन से जुड़ जायेंगे
वरना हम है पखेरू बहुत दूर के
बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे
उड़ कर जायेंगे कहा ,घर ही आख़िर .................
घर वो जगह है जहा हम,आप ,सब बुरके उतार फेकते है ,पहुचते ही और अपने मूल स्वाभाव में आ जाते है ,बाहर हम कही कुछ तो कही कुछ बने ड्रामा करते रहते है अपने अपने रोल अदा करते ,जो रोल बेहतर करते है उनकी फ़िल्म सफल हो जाती है जो रोल बेहतर नही करते उनकी फ़िल्म असफल हो जाती है लेकिन लौटते दोनों है घर ,उसी घर में जहा से आए थे
कहा से आए थे और कहा घर है ,ये उन्ही को मालूम है जो मालूम करना चाहता है ,चाहने भर से कुछ नही होता ,चाहने को मूर्त रूप देना होता है और मूर्त रूप वाही दे पाते है जो पुरी तरह शत प्रतिशत चाहते है ,प्रशन बस प्रतिशत ,शत प्रतिशत का है
मन ,बेमन का है
मन मिलओंगे तो मन से मिल जायेंगे वरना हम है पखेरू
बहुत दूर के बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे ..............................
वर्तमान ही जीवन है एक जगह पठने को मिला जीवन और कुछ नही , बस घर लौटने की यात्रा मात्र है
आ अब लौट चले ...........
किसी कवि सम्मलेन में कवि की ये पक्तिया कितना कुछ कहती है ............
प्रेम से तुम सुनो
और सुन कर गुणों
मन मिलाओगे तो ,मन से जुड़ जायेंगे
वरना हम है पखेरू बहुत दूर के
बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे
उड़ कर जायेंगे कहा ,घर ही आख़िर .................
घर वो जगह है जहा हम,आप ,सब बुरके उतार फेकते है ,पहुचते ही और अपने मूल स्वाभाव में आ जाते है ,बाहर हम कही कुछ तो कही कुछ बने ड्रामा करते रहते है अपने अपने रोल अदा करते ,जो रोल बेहतर करते है उनकी फ़िल्म सफल हो जाती है जो रोल बेहतर नही करते उनकी फ़िल्म असफल हो जाती है लेकिन लौटते दोनों है घर ,उसी घर में जहा से आए थे
कहा से आए थे और कहा घर है ,ये उन्ही को मालूम है जो मालूम करना चाहता है ,चाहने भर से कुछ नही होता ,चाहने को मूर्त रूप देना होता है और मूर्त रूप वाही दे पाते है जो पुरी तरह शत प्रतिशत चाहते है ,प्रशन बस प्रतिशत ,शत प्रतिशत का है
मन ,बेमन का है
मन मिलओंगे तो मन से मिल जायेंगे वरना हम है पखेरू
बहुत दूर के बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे ..............................
Wednesday, November 4, 2009
भोर भई

भोर भई अब जाग मुशाफिर .......................
भोर कब होगी जीवन की ,जीवन भर क्या सोये सोये रहेंगे ,या फ़िर जागेंगे भी ? कब जागेंगे ,कुछ पल छिन आते है अनायाश जीवन में जो हमें ,तुम्हे जगाने की कोशिश करते है प्रयास करते है पल भर के लिए हम तुम जग भी जाते है ,पर फ़िर सो जाते है सोते सोते जीवन गुजार देते है जगे भी है तो केवल बाहर बाहर ,भीतर तो सोये ही रहते है कोई जगाये भी तो नही जागते
जीवन भर हम जागने का स्वांग किए भटकते रहते है ओरों को भी भटकाते रहते है अपने अपने दर्शन से प्रदर्शन से जीवन ऐसे जीते है की कभी मरेंगे ही नही दुसरे मरेंगे ,हम नही
हम जीने भर लिए अवतरित हुए है मरने के लिए नही
आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर ,कितनी बार सुना, सुन कर अनसुना किया ,और करते जा रहे है कब तक ,जब तक चले नही जायेंगे है ना? माया के मोह जाल का का बहाना लिए अपने को ख़ुद फ़साये घूम रहे है ,अरे तुम निकलने की कोशिश करो और ना निकल पाओ ये कैसे हो सकता है ,हम ख़ुद निकलना ही नही चाहते है जाल
janjaal से क्यो सही है ना ,और बहाना पर बहाना बनाये jate है
ये सब बहाने बह जायेंगे ,बह तो हम भी जायेंगे पर जब तक bahe नही है ,tab तक कुछ तो करे .......
gud खाए और gulgule से parhej करे ये bat कुछ jami नही
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