Monday, November 16, 2009

तुम्हारे लिए

गाव के छाया चित्र आपको क्या सोचने के लिए कहते है भोर की अंगड़ाई मोह पाश में बाधने के लिए बुला रही है बिना किसी राग द्वेष के तुम्हारी भूली बिसरी यादो के साथ आवाज दे रही है देखो तुम कहा भटक गए ,निर्मल मन अब कितना निर्मल रहा ,तुम ऐसे क्यो हो गए ,क्या पाने के जुगत में तुमने अपनी काया माया को इतना गिरा दिया या उठा लिया की अब वास्तविकता से कोषो दूर हो गए
घर लौटने की तैयारी नही करोंगे ,क्या घर नही लौटना है ,कोई हमेशा यहाँ नही रहा है तो फ़िर तुम क्या रहोंगे ,फ़िर भी ,कोई तैयारी नही ,तुम्हे याद होगा तुमने परिझाओ की माकूल तैयारिया की थी सो हमेशा पास होते रहे और हर ऐसी तैयारिया तुम करते रहे हो जिससे आज इस मुकाम तक सफलता पूर्वक पहुचे ,फ़िर घर लौटने की तैयारी क्या तुम नही करोंगे ,उसकी भी तो तैयारी करनी होगी ,कब करोंगे ,बिना तैयारी के क्या घर लौटने का इरादा है ,यदि ऐसा हो तो फ़िर कोई बात ही नही , अगर नही तो फ़िर शुरू करो घर लौटने की तैयारी देखो कितना आनंद आता है ,
जिंदगी के साथ साथ और जिंदगी के बाद भी
लोगो को 'बड़ा भ्रम है की जिंदगी के बाद भी क्या जिंदगी है ,कितनी सरल बात को भी लोग कितना कठिन बनाये हुए है ,हम घर से दस बजे आफिस जाते है और पांच बजे आफिस से घर वापस आते है तो क्या जीवन दस और पाच के बीच ही है क्या ? जीवन दस बजे के पहले और पांच बजे के बाद भी है इसी प्रकार जीवन जनम से पहले और म्रत्यु के बाद भी है ......................
आ अब लौट चले .......................................

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