Thursday, January 28, 2010
Tuesday, January 19, 2010
कहो कैसे हो
कैसे है आप और आपके अपने ,अपनापन बनाये रखे यही है बिंदु जो जोड़े रहता है माला में मोतियों को धागा ही एक दुसरे को आपस में पिरोये रहता है ,लेकिन दिखता नहीं है ,मोती भर एक दुसरे के साथ गुथे दिखाई देते है ,माला से धागा टूट जाये तो सारे मोती बिखर जाते है ,मोती तो अलग अलग है ही साथ रखने की काम तो धागा करता है ,हम सब अलग अलग तो है ही एक साथ पिरोने की काम अपनापन रूपी धागा ही करता है ,अपनापन रूपी धागा टूटने न पाए नहीं तो सब बिखर जायेंगे ,बिखरे की, ख़तम खेल ,गयी भैस पानी में फिर भैस को पानी से निकालना सब के बस की बात नहीं ,चरवाहा ही निकाल पायेगा वो भी निपुण और जो भैसों के स्वभाव से परिचित हो अपना हो अपनापन हो ,फिर वही अपनापन
अपनेपन की डोर ,तार जुड़े है दोनों और जिनका कोई ओर न छोर
यदि मै उसको अपना कहता तो फिर कौन तुम्हारा होगा
क्या मुझको क्या तुम्हे मिलेगा यदि उसका बटवारा होगा
जो मेरा है वही तुम्हारा बोलो अब क्या प्रशन शेष है
मत जीवन की करो कल्पना देखो कितनी सास शेष है
गत तो गत है आगत को मै देखा देखा रहा टकटकी लगाये
किसी तरह यदि दिन बिता तो देखो कितनी रात शेष है .......
मत जीवन की करो कल्पना देखो कितनी सास शेष है .............
बची हुई सासे कितनी है न तुम्हे मालूम है न हमें
फिर ............
अपनेपन की डोर ,तार जुड़े है दोनों और जिनका कोई ओर न छोर
यदि मै उसको अपना कहता तो फिर कौन तुम्हारा होगा
क्या मुझको क्या तुम्हे मिलेगा यदि उसका बटवारा होगा
जो मेरा है वही तुम्हारा बोलो अब क्या प्रशन शेष है
मत जीवन की करो कल्पना देखो कितनी सास शेष है
गत तो गत है आगत को मै देखा देखा रहा टकटकी लगाये
किसी तरह यदि दिन बिता तो देखो कितनी रात शेष है .......
मत जीवन की करो कल्पना देखो कितनी सास शेष है .............
बची हुई सासे कितनी है न तुम्हे मालूम है न हमें
फिर ............
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