देखना क्यों नहीं चाहते , चाहना या न चाहना किसके बस में है ये है सब कुछ क्या कभी सोचा है या फुर्सत ही नहीं मिल रही सोचने की या फिर सोच कर, कर भी क्या लेंगे सोचना किसी धरातल में बीज बोने जैसा है जब बीज ही नहीं बोंगे तो फसल क्या होंगी
दूसरो के लहलहाते खेतो को देख मन कुछ देर के लिए विचलित तो होता है फिर हाथ पे हाथ धर कर रोना रोना कोई तुमसे सीखे हम सब के जीवन में सुख दुःख का माया जाल हमारा अपना बनाया हुआ है जो होने और न होने के बीच लटकता रहता है जीवन भर ,इस लटकन को तुम बलात उखाड़ फेक सकते हो बशर्ते दम हो दम का वहम नहीं ,वहम पाले पाले न जाने कितने लोग आये और चले गए कुछ जाने को तैयार है और अपने अपने सुख दुःख की गठरिया साथ लिए ,जितना कम हो सामान उतना सफ़र है आसन ये सब आपके लिए ही बोला लिखा गया है पठता मनन करता कौन है ? आप सुनते है गुनते है या फिर हर फिक्र को धुएं में उडाता चला गया ..............
थोड़ी देर में सुखी थोड़ी देर में दुखी छड़े तुष्टा छड़े रुष्टा रुष्टा तुष्टा छड़े छड़े ये है हम आप या आप अलग है ,हम सब जब बात करते है तो अपने आप को अलग कर के करते है ,जनता सोचती नहीं है ,जनता जानती नहीं है ये बोलने कहने में हम अपने आप को उस जनता जिसका हम जिक्र कर रहे है अपने आप को उसमे नहीं जोड़ते हम उस जनता से अलग है ऐसा सोचते है
शीशे के अलावा कभी अपने आपको देखा है? ,पानी की परछाई या छाया नहीं प्रतिकृति नहीं ,जो तुम हो ,तुम क्या हो कभी सोचा है ? कहोगे आदमी ,मानव ,जीव और पता नहीं क्या क्या कहोगे या कह सकते हो तुम्हारीबाते और तुम दोनों निराले हो ,नित नूतन हो इसलिए धन्य हो कभी टटोलना अपने आपको ,कभी तलाशना अपने आप को ,मिल जाओ तो बताना हमें नहीं तो अपने आप को की मिल गए जिसे ठूठ रहे थे ...........
जो करीब है उसे क्या तलाशना हम, जो दूर है उसे तलाशने में पूरी ताकत लगाये रहते है जो है उससे संतुष्ट नहीं जो नहीं है उसे पाने की उधेड़ बुन में सारा जीवन लगाये हुए है मिल भी जायेगा तो क्या करोंगे साथ ले जाओंगे ,जब कुछ ले कर नहीं आ सकते तो फिर ये कैसे सोच रखा है की ....................
पल पल हम घर की तरफ जा रहे है घर जाने में दुःख कैसा , कहते सुनते होंगे की समय बालू की तरह मुठी से निकलता जा रहा है ,निकल रहा है तो साध लो कूबत हो तो ...साध लेना तो बताना ..............
जो हो रहा है उसे होने दो जो नहीं हो रहा है उसे रहने दो ,फल पकेंगा तो पेठ में लगा नहीं रहेंगा ,गिरेगा ही ,जो मिटेगा वो बनेगा भी , तार जुड़े है दोनों और जिनका कोई और न झोर ......................
इसी तरह फिर कभी ....................
Sunday, February 21, 2010
सुख दुःख
सब के जीवन में सुख दुःख का आना जाना लगा रहता है मुझे ऐसा लगता है कि सुख दुःख ,जीवन में ,ऐसा होना चाहिए और ऐसा नहीं होना चाहिए के इर्द गिर्द घूमता है ये सुख दुःख भी किसे होता है हमें ? हमें से क्या मतलब है ,हम क्या है ,ये हाड़ मास का शरीर या फिर कुछ और ...............
जो कुछ भी दिखता है उसके अलावा भी बहुत कुछ है जो इन आखों से नहीं दिखता .दिखता भी है तो देखते नहीं
जो कुछ भी दिखता है उसके अलावा भी बहुत कुछ है जो इन आखों से नहीं दिखता .दिखता भी है तो देखते नहीं
Sunday, February 14, 2010
फागुन आया गाव में
फागुन आया गाव में , लोग रंग बिरंगे हो,
बिना किसी बात के ठिठौलिया कर रहे है और
गाव की गोरी टेसू के फूल की तरह शुर्ख लाल हो चली गेहू की बालियों की खुशबू माहौल को मादक बना दूर बैठे पीहर जाने को उतावली है
जरा गाव की तरफ आओ तो बिना भींगे रहोगे नहीं ,
जीवन में रंगों का अपना महत्व है बिना रंगों का जीवन भी क्या जीवन है
भदरंग जिंदगी जीते जीते मन भरा नहीं क्या अभी तुम्हारा की फागुन का नाम आते ही मुह बिचकाने लगे भूल गए वो बचपन के दिन जब सुबह से ही रंगों की पिचकारी लिए दौड़ते थे फुदकते थे और फिर रंग कर चिल्लाते थे होली है ..........होली है ...........वो गुझिया और मठरी रंगे हाथो से खाना भूल गए बड़े भुल्लकड़ हो यार तीस चालीस सालो में कितना बदल गए तुम वो पड़ोस की लड़की जिसके गालो में गुलाल मलना तुम अपना परम धर्म समझते थे कहा
है वो आज कल कुछ पता है तुम्हे ............?
सुनो ,इस ब्रम्हांड में जिंदगी के अलावा और कुछ नहीं है कपडे बदलने में तो तुम्हे कभी हिच्च नहीं होती है फिर मौत से क्यों हिच्च ............
रंगों का अपना संसार है अपने सपने है रंग भला किसे नहीं अच्छे लगते तुम्हे कैसे लगते है रंग ,रंगों में भी कौन सा रंग तुम्हे भाता है कुछ है या फिर बस यू ही भदरंग भदरंग छिता कसी ...........कर और सोच क्या रहे प्रेरणा प्रेरणा ,प्रेरणा प्रेरणा वे वो भी वो वो फग गद्ग दगड द्फ्द द्ग्फ्द फड द्ग्फ़ वो औरवो झ्फ्झ ह्फ्ज्द क्स्झ वेफर रर
केs लिए पड़ोस की जमीन बड़ी उपजाऊ होती है देख रेख भी ठीक रहती है ज्यादा भाग दौड़ की भी जरुरत नहीं होती , जब मन आया खेती देख ली
पड़ोस के लहलहाते खेत को देख दूसरो को भी प्रेरणा मिलती है ओर वो भी अपने पड़ोस की उसर जमीन को
उपजाऊ बनाने की जुगत में लग जाते और यदा कदा खेती भी लहलहाने लगती ,पड़ोस की जमीन जो प्रेम के लिए उपजाऊ होती
हम सब किस मिट्टी के बने है की जुड़ने की नाम ही नहीं लेते टूटने और तोड़ने में विश्वास रखते है जो आनद जुड़ने और जोड़ने में है वो तोड़ने और टूटने में नहीं ,होली जुड़ने और जोड़ने की त्यौहार है मस्ती और उमंग का उत्सव है
प्यार और उल्लास का दिन है जीवन का हर दिन होली हो हर शाम दिवाली हो ,त्योहारों को तारीखों में मत बंधो ,जीवन सरल है सहज है इसके रंगों में रंग जाओ सूरज को अपनी मर्जी से मत उगाओ नहीं उगेगा निराश हो जाओगे और निराश निराश मिट जाओगे ..... फागुन में रंग खेलो और रंगों लोगो को ,पड़ोस की वो लड़की अब कहा है जरा खोजने की कोशीश करो मिल जाये तो खबर करना ..............
Tuesday, February 2, 2010
छोटा सा गाव

मेरा गाव बहुत छोटा सा है, बिलकुल छोटा सा' लोग घर में नहीं दिलो में रहते है चाँद ,तारे ,सूरज ,पेड़ ,पौधे ,हरियाली , कुआ ,पानी ,पनघट ,पगडण्डी, गाय,गोबर ,गौधुली ,छाया ,धूप ,अमराई ,वो सब कुछ है वहा जो होना चाहिए प्रेम ,आदर, भावनाए ,सम्मान ,आतिथ्य
वहा आपको आपका खोया हुआ मन मिलेगा ,किसी झुरमुट से लिपटा ,आपको देख फिर आपके साथ हो लेगा ,
जिन्हें आप खोज रहे है वो भी मिल सकता है अगर नजरे हुई तो
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