Wednesday, April 14, 2010
Monday, April 12, 2010
इस देश का यारो क्या कहना

रामखिलावन से बलभद्र रूबरू हो रहे थे ,दिशा मैदान जाते जाते रूक गए थे वे का हो बलभद्र कैसन रुक गया ,जिस लिए जा रहे थे का वो भी रुक गया का ?
अरे दादा अपनोऊ ,सकारे- सकारे .......
रामखिलावन कान माँ जनेऊ खोसे खासे एक हाथ में लोटिया लिए और दुसरे हाथ से मुखारी ,मुह में घुसेड़े ,बीच बीच में इधर उधर जहा जी चाहे थूकते खखारते दिसा कर दातून करते गृह ग्राम की ओर खरामा -खरामा ,लौट रहे थे तभी बलभद्र महाशय ,टहलते -टहलते उसी ओर जातेदिख गए और रुक गए बलभद्र रुके तो वो सब भी रुक गया जिस लिए वो जा रहे थे हाथ माँ लोटिया लै,दादा ,कोई कह रहा था सो सुना और जो सुना वो सुना रहे है
रामनिहोर कह रहे थे क्या गा रहे थे जोर जोर से .........".इस देश का यारो क्या कहना " ....ये देश है ......
क्या कहना का मतलब ........समझ में नहीं आ रहा है ,और इसी चक्कर में जो कुछ करने जा रहे थे सब रुक रुका गया
रामखिलावन बोले अरे ससुरे पहले हो हुआ लो नहीं तो यही कछनी में पोक- पाक दोगे तो अभी वही कहेगा कि इस बलभद्र का यारो क्या कहना
बलभद्र के सर के बहुत ऊपर से जहा ,पर दिखता नहीं था वहा से रामखिलावन का उक्त उदबोधन निकल गया और वो सुन समझ नहीं पाये कि रामखिलावन ने क्या कहा
खैर कोई बात नहीं ,कछनी बीच में दगा न दे जाये मात्र इस भय से बलभद्र भागते हुए ,कुछ झाड़ियो के पीछे उकडू बैठ गए ,कब तक ये वही बलभद्र जाने बलभद्र फारिक हो ,मौका ऐ बारदात से ऐसे निकल लिए ,जैसे कुछ किया ही न हो तभी उनके दिमाग में एक लल्लन टॉप आइडिया बिना पूछे पाछे घुस गया ,जो बहार निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था इस तरह की बकलोली बलभद्र के साथ अकसर हो जाती अब तक वे गर्भवती महिलाओ की तरह चलते चलते गाव के किनारे पहुच रहे थे तभी किसी ने एक डेला सनसनाते हुए उसी तरफ दनदना दिया जिस तरफ से रामखिलावन की सवारी गाव में प्रवेश का रही थी हद हो गयी इन ससुरे गाव वालो को कौन सुधारे ,मन में विचार आया की जब देश नहीं सुधरा तो इस इस ससुरे गाव की क्या बिसात कि सुधर जाये यह विचार जैसे आया था वैसे ही चला गया क्यों कि दिमाग में घुसा लल्लन टॉप आइडिया किसी और सोच विचार को ज्यादा देर टिकने नहीं दे रहा था वैसे भी बलभद्र के दिमाग में जगह कुछ कम ही बची थी क्यों कि अभी आधी से ज्यादा जगह वो ससुरा लल्लन टॉप आइडिया घेरे था शेष जगह पहले से भरे कबाड़ और उटपटागख्यालो ने घेर रखी थी
बलभद्र सोच रहे थे कि ये डेला जो अभी अभी स्कर्ट मिसाइल की तरह पास ही गिरा है अगर हमारे मुह माँ या इस नश्वर शरीर के किसी अंग में आ धमकता क्या होता अंग भंग तो तय था ऐसा उनका विचार बन रहा था विचारो का आना जाना .कुछ देर रुकना और फिर गंतब्य की तरफ निकल जाना कुछ विचार मॉल गाडियों की तरह कुछ ज्यादा देर भी रुके रहते जैसे अभी लल्लन टॉप आइडिया घुस कर नाहक रुका हुआ है सिगनल होने के इंतजार में जाने कब तक रुका रहे यह बलभद्र को भी नहीं मालूम था
अरे दादा अपनोऊ ,सकारे- सकारे .......
रामखिलावन कान माँ जनेऊ खोसे खासे एक हाथ में लोटिया लिए और दुसरे हाथ से मुखारी ,मुह में घुसेड़े ,बीच बीच में इधर उधर जहा जी चाहे थूकते खखारते दिसा कर दातून करते गृह ग्राम की ओर खरामा -खरामा ,लौट रहे थे तभी बलभद्र महाशय ,टहलते -टहलते उसी ओर जातेदिख गए और रुक गए बलभद्र रुके तो वो सब भी रुक गया जिस लिए वो जा रहे थे हाथ माँ लोटिया लै,दादा ,कोई कह रहा था सो सुना और जो सुना वो सुना रहे है
रामनिहोर कह रहे थे क्या गा रहे थे जोर जोर से .........".इस देश का यारो क्या कहना " ....ये देश है ......
क्या कहना का मतलब ........समझ में नहीं आ रहा है ,और इसी चक्कर में जो कुछ करने जा रहे थे सब रुक रुका गया
रामखिलावन बोले अरे ससुरे पहले हो हुआ लो नहीं तो यही कछनी में पोक- पाक दोगे तो अभी वही कहेगा कि इस बलभद्र का यारो क्या कहना
बलभद्र के सर के बहुत ऊपर से जहा ,पर दिखता नहीं था वहा से रामखिलावन का उक्त उदबोधन निकल गया और वो सुन समझ नहीं पाये कि रामखिलावन ने क्या कहा
खैर कोई बात नहीं ,कछनी बीच में दगा न दे जाये मात्र इस भय से बलभद्र भागते हुए ,कुछ झाड़ियो के पीछे उकडू बैठ गए ,कब तक ये वही बलभद्र जाने बलभद्र फारिक हो ,मौका ऐ बारदात से ऐसे निकल लिए ,जैसे कुछ किया ही न हो तभी उनके दिमाग में एक लल्लन टॉप आइडिया बिना पूछे पाछे घुस गया ,जो बहार निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था इस तरह की बकलोली बलभद्र के साथ अकसर हो जाती अब तक वे गर्भवती महिलाओ की तरह चलते चलते गाव के किनारे पहुच रहे थे तभी किसी ने एक डेला सनसनाते हुए उसी तरफ दनदना दिया जिस तरफ से रामखिलावन की सवारी गाव में प्रवेश का रही थी हद हो गयी इन ससुरे गाव वालो को कौन सुधारे ,मन में विचार आया की जब देश नहीं सुधरा तो इस इस ससुरे गाव की क्या बिसात कि सुधर जाये यह विचार जैसे आया था वैसे ही चला गया क्यों कि दिमाग में घुसा लल्लन टॉप आइडिया किसी और सोच विचार को ज्यादा देर टिकने नहीं दे रहा था वैसे भी बलभद्र के दिमाग में जगह कुछ कम ही बची थी क्यों कि अभी आधी से ज्यादा जगह वो ससुरा लल्लन टॉप आइडिया घेरे था शेष जगह पहले से भरे कबाड़ और उटपटागख्यालो ने घेर रखी थी
बलभद्र सोच रहे थे कि ये डेला जो अभी अभी स्कर्ट मिसाइल की तरह पास ही गिरा है अगर हमारे मुह माँ या इस नश्वर शरीर के किसी अंग में आ धमकता क्या होता अंग भंग तो तय था ऐसा उनका विचार बन रहा था विचारो का आना जाना .कुछ देर रुकना और फिर गंतब्य की तरफ निकल जाना कुछ विचार मॉल गाडियों की तरह कुछ ज्यादा देर भी रुके रहते जैसे अभी लल्लन टॉप आइडिया घुस कर नाहक रुका हुआ है सिगनल होने के इंतजार में जाने कब तक रुका रहे यह बलभद्र को भी नहीं मालूम था
खैर कुछ देर वे वही खड़े रहे जहा स्कर्ट मिसाइल गिरी थी फिर वे उस तरफ जिस तरफ से देला जो स्कर्ट मिसाइल की तरह आया था देखने लगे की शायद इसे दागने वाला दिख जाये पर कोई दिखा नहीं ,वैसे भी बलभद्र के पास कोई दूरबीन तो थी नहीं कि देख सके कि कौन महा मानव इस राष्ट्र को महा राष्ट्र बनाने में तल्लीनता से लगा हुआ है वह शक्ती ईश्वर की तरह अद्रश्य ही बनी रही जिसने डेला मारा था अब बलभद्र को अपनी दूर द्रष्टी की कमी पर ग्लानी हुई जो स्वाभाविक थी
दिन चठ आया था ,सोच बलभद्र घर की ओर बठ लिए ,उन्हें नहा -खोर के उस टापों-टाप आइडिया के बारे में दादा रामखिलावन से सलाह मशविरा करना था जो उनके आज के apointment में सबसे पहले था
दादा रामखिलावन लाखौरीबाग में पडी खटिया में परे थे जिसकी अचमाइन झुलझाल के खटिया को खटिया कम हैमर बनाये हुए थी दादा एक में ही दोनों की मजा ले रहे थे ,मजा लेते लेते मंद मंद मुस्का भी रहे थे शायद उन्हें लखौरी बाग में गुजारे जवानी के दिन याद आ रहे हो वैसे दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता था कि यही सही है ,सत्य है वे क्या और क्यों सोच रहे है और क्यों मुस्का रहे है यह उनका पूर्णत गोपनीय मामला था वैसे भी दादा रामखिलावन अपने गोपनीय मामलो में दखलंदाजी बर्दास्त भी नहीं करते थे
बलभद्र दवे पाँव खटिया तक पहुच ,प्रातः कालीन स्मरणीय दादा रामखिलावन के पाँव छूने को झुके ही थे कि पाँव छूते ही ,रामखिलावन चौके ,जैसे कोई कनखजूरा घुसपैठ कर रहा हो उनकी अधखुली परदनी में उन्होंने बिना देखे पैर झटका जो बलभद्र को बिसात कस के लगी और वे बिलबिला गए रामखिलावन ने अपने मुखाग्र बिंदु से पैर झटकते समय शुद्ध गालियों की बैउझार भी मारी जिससे भीगे बिना बलभद्र नहीं रह पाए अरे बलभद्र तुम हो हम जानी ससुरा कनखजूरा घुसा जा रहा है बेरोक टोक और न जाने कहा जा कर रुकता कही राजधानी तक पहुच जाता तो कबाड़ा ही हो जाता ,खैर कैसे हो की खबर लाये हो देश ,दुनिया की ?
बलभद्र अपना सर सहला रहे थे जहा पर अभी अभी अप्रत्याशीत लात घली थी का थथोल रहे हो
बलभद्र ,सकारे सकारे ...................
सकारे सकारे फराके
से आने के बाद उनका दिमाग काम नहीं कर रहा था सो बोले दादा जौन लात घली है पिराय
रही है अब बाते काल्ह
होहिये ..................................
बलभद्र
Friday, April 9, 2010
रामखिलावन उवाच

सरकार की जय हो ,रामखिलावन उवाच
बलभद्र चौक गए
दादा सरकार दिखाओ ,जिसकी जय बोल रहे हो
सब कुछ इन आखो से नहीं दिखता है
तो क्या दो चार तरह की आखे होती है ,बलभद्र बोले
हे वत्स ,तुम क्या जानना चाहते हो ?
मै सरकार को देखना चाहता हूँ
इसके लिए तो तुम्हे संजय की आखो से देखना होगा संजय की तरह आखे होनी अनियार्य hai
अब हम संजय की आखे कहा से लाये ?
लाओ और देखो सरकार को ,इसके अलावा कोई चारा नहीं है वत्स
रामखिलावन संत की मुद्रा में बोले और शांत हो पालथी मारे बैठे रहे अगले प्रशन की प्रतिझा में
बलभद्र बोले अच्छा ये ही बता दो की सरकार रहती कहा है ?
सरकार सब जगह व्याप्त है और नाडा राजधानी में gada रहता है
कैसे ?जरा विस्तार से समझाए प्रभु ,बलभद्र , विनती करने की मुद्रा में आ गए और उसी तरह बने रहने में ही भलाई समझी ये सोचा की शायद मुद्रा से ही प्रभावित हो कर ,प्रभु कुछ सही सही उगले और हम चाट ले
सुनो वत्स ,तुमने कभी हवा देखी है
बलभद्र ने कभी हवा देखी हो तो बताये , चुप और अचकचाए से शांत और गंभीर हो चले
तभी बलभद्र की जाघिये में कनखजूरा अप्रत्याशित रूप से पिल पड़ा ,बलभद्र हडबडा गए ,सारा ज्ञान और सरकार जाघिये में घूसा जान पड़ रहा था बलभद्र ,जाघिये का नाडा खोलने को आतुर दिखे तभी उन्हें याद आया कि नाडा खोलने से कही सरकार नाराज न हो जाये जो जाघिये में घुसी हुई है या फिर नाडा खुलते ही सरकार नदारत हो जाये जिसे देखने को मन ब्याकुल हो चला था ,बलभद्र को इस असमंजस में देख ,कनखजूरे को मौका मिला और उसने बलभद्र को दे मस्का ,अब बलभद्र बिलबिला उठे भाड़ में जाये सरकार यहा तो अपनी सरकार लफड़े में पडी है उसे बचाए कि जो दिख नहीं रही है उस सरकार को देखने के चक्कर में जो दिख रहा है उसे न देखे ये कहा कि बुधिमत्ता है ,बलभद्र के ज्ञान चकछुओ ने उन्हें धोखा नहीं दिया और वे कर्म कांड में व्यस्त हो गए तब तक ,व्यस्त रहे जब तक उन्होंने आतंकी कनखजूरे को शहीद नहीं कर दिया
रामखिलावन बिना संतुलन खोये बलभद्र की सारी रामलीला देख रहे थे
इस बीच बलभद्र फारिंग भी हो आये ,मूत तो तभी दिया था जब वे कनखजूरे के आगोश में थे
बहरहाल अब जब सब सामान्य हो चला ,,बलभद्र बोले ,
हे प्रभु , वो सरकार तो न दिखी ,पर अपनी सरकार जरूर अल्पमत आ गयी थी
रामखिलावन अपने आसन से ,बिना हिले डुले बोले हे वत्स ... तुम नाहक चिंतित हो रहे हो
सुनो जिस तरह वायु नहीं दिखती केवल महसूस होती है उसी तरह सरकार nahee दिखती नहीं सिर्फ महसूस होती है
वायु जब चलती है तो क्या दिखती है
नहीं ,बालक बलभद्र बोले और फिर सन्न हो गए
हे वत्स ,और सुनो , सरकार साईकिल नहीं है कि उसे चलते हुए देखा जा सके कि ये चली ,वो चली , मै चली .मै चली देखो प्यार की गली..................... चलती तो वो चीज है जिसके पाँव होते है ,पहिये होते है ,सरकार के पाँव वाव नहीं होते और न ही पहिए होते है कि ,जहा चाहो वहा घुमा दिया ,ख़बरदार ऐसा सोचना भी गुनाह है कि सरकार तुम जैसे अइरे गयिरे के चक्कर में नहीं पड़ती है वत्स
सरकार ,सरकार है जब दिल किया चली ,जब दिल किया बैठ गयी अब उठाओ तो जाने ,कभी कभी तो सरकार बैठे- बैठे पसर भी जाती है और तो और कभी कभी ससुरी सरकार पसरे पसरे सो भी जाती है बलभद्र जिज्ञाशु और रामखिलावन के प्रवचन से अविभूत हो सब सुन रहे थे और सुनाने वाले सुना रहे थे
हे वत्स तू अपनी जिज्ञासा शांत कर और सरकार को देखने के चक्कर में ये जीवन नष्ट मत कर
सरकार ,सरकती हुई कभी न कभी तुझे दर्शन अवश्य देगी तब तक
घर चल, नल पर ,जल भर .........................................
Sunday, April 4, 2010
प्रेम व्रेम कर कुरा लो .........
रामखिलावन ,बलभद्र को समझा रहे थे ,
बेटा ,प्रेम के लिए पड़ोस की जमीन बड़ी उपजाऊ होती है
निगरानी भी बनी रहती है
कोई आवारा जानवर तो नहीं घुस रहा है , तुम्हारी जमीन में यदि घुसा या घुसने की कोशीश भी करता दिख जाता है तो ,फसल ख़राब करने या चरने के पहले ही तुम उसे दे ,धमकते हो और वो मिमियाते ,दोनों टांगो के बीच दूम दबाये ,दबी में खिसक लेता है ऐसे जैसे गलती से माता के दरबार में मथा टेकने जा पंहुचा था ,मनौती पूरी हो गयी समझ कर रोट बताशा और चठाता है दूसरी बार उधर देखना भी गुनाह समझाता है ,सोटाई जो इतनी घलती है ,सब प्रेम व्रेम धरा रह जाता है बस सेकाई भर याद रहती है
भैया बलभद्र वैसे तो तुम प्रेम व्रेम के फ्रेम में अपने को न जड़ लेना नहीं तो जड़े ही रह जाओगे ,खड़े भी न हो पाओगे
फिर न कहना की दादा अब का करी , अंडा करी में बस, अंडा की तरह लहराओगे ,छिलके उतार के
बलभद्र ,रामखिलावन का प्रेम के बारे में उनका व्याख्यान अनमने मन से सुन रहे थे क्योकि मन तो दे आये थे जहा देना था ,तन था जो और तनतना और रहा था ,रामखिलावन की रामलीला देख कर
बलभद्र को रामखिलावन , रावन से कम नहीं लग रहा था इस वक्त ,रामखिलावन ,बलभद्र को फूटी आँख नही सोहा रहे थे
प्रेम में टोका टाकी वर्जित होना चाहिए ऐसा बलभद्र का मानना था
प्रेम के बारे में बलभद्र की अलग फिलाशफी थी ,जैसे प्रेम कभी नहीं मरता , चाहे खुद मर जाये
प्रेम कही भी फसफासा सकता है ये जरूरी नहीं की प्रेम केवल पड़ोस में ही किया जाये ,ये बात गले उतरती है,ठीक भी लगती है , कि प्रेम के लिए पड़ोस की जमीन बड़ी उपजाऊ होती है लेकिन अब तो नई नई तकनीके आ गयी है ,नए नए बीज आ गए है ,हाईब्रीड बीज आ गए है बाजार में ,खादे ,तरह तरह की आ गयी है ,और ये रामखिलावन है कि ,लगे है अभी भी गोबर की खाद में फसल उगाने ,खुद मरेंगे और दूसरो को भी मरवाएंगे
प्रेम के बारे में बलभद्र का दर्शन बड़ा विकट था , जो केवल निकट से ही समझा जा सकता था
बलभद्र का यह कहना और सोचना था कि ,प्रेम केवल निकट से ही ,निकट में ही किया जा सकता है क्योकि ,दूर के ठोल, सुहावने भर दिखते है , होते नहीं है
प्रेम के बारे में उनके विचार बड़े मौलिक तो थे ही साथ ही साथ वो भयंकर सुन्दर भी थे वे प्रेम के वर्तमान स्वरुप में ही विश्वाश रखते थे भूत काल के प्रेम को वे भूल जाने को कहते और भविष्य काल के प्रेम में उनका कतई विश्वास नहीं था
उनका यह भी मत था कि जब भी मौका लगे ,या सधे ,प्रेम व्रेम कर कुरा लो , नहीं तो कही मरमूरा गए तो बस एक बंगला बने न्यारा भर रह जायेगा जो कभी नहीं बनता
बेटा ,प्रेम के लिए पड़ोस की जमीन बड़ी उपजाऊ होती है
निगरानी भी बनी रहती है
कोई आवारा जानवर तो नहीं घुस रहा है , तुम्हारी जमीन में यदि घुसा या घुसने की कोशीश भी करता दिख जाता है तो ,फसल ख़राब करने या चरने के पहले ही तुम उसे दे ,धमकते हो और वो मिमियाते ,दोनों टांगो के बीच दूम दबाये ,दबी में खिसक लेता है ऐसे जैसे गलती से माता के दरबार में मथा टेकने जा पंहुचा था ,मनौती पूरी हो गयी समझ कर रोट बताशा और चठाता है दूसरी बार उधर देखना भी गुनाह समझाता है ,सोटाई जो इतनी घलती है ,सब प्रेम व्रेम धरा रह जाता है बस सेकाई भर याद रहती है
भैया बलभद्र वैसे तो तुम प्रेम व्रेम के फ्रेम में अपने को न जड़ लेना नहीं तो जड़े ही रह जाओगे ,खड़े भी न हो पाओगे
फिर न कहना की दादा अब का करी , अंडा करी में बस, अंडा की तरह लहराओगे ,छिलके उतार के
बलभद्र ,रामखिलावन का प्रेम के बारे में उनका व्याख्यान अनमने मन से सुन रहे थे क्योकि मन तो दे आये थे जहा देना था ,तन था जो और तनतना और रहा था ,रामखिलावन की रामलीला देख कर
बलभद्र को रामखिलावन , रावन से कम नहीं लग रहा था इस वक्त ,रामखिलावन ,बलभद्र को फूटी आँख नही सोहा रहे थे
प्रेम में टोका टाकी वर्जित होना चाहिए ऐसा बलभद्र का मानना था
प्रेम के बारे में बलभद्र की अलग फिलाशफी थी ,जैसे प्रेम कभी नहीं मरता , चाहे खुद मर जाये
प्रेम कही भी फसफासा सकता है ये जरूरी नहीं की प्रेम केवल पड़ोस में ही किया जाये ,ये बात गले उतरती है,ठीक भी लगती है , कि प्रेम के लिए पड़ोस की जमीन बड़ी उपजाऊ होती है लेकिन अब तो नई नई तकनीके आ गयी है ,नए नए बीज आ गए है ,हाईब्रीड बीज आ गए है बाजार में ,खादे ,तरह तरह की आ गयी है ,और ये रामखिलावन है कि ,लगे है अभी भी गोबर की खाद में फसल उगाने ,खुद मरेंगे और दूसरो को भी मरवाएंगे
प्रेम के बारे में बलभद्र का दर्शन बड़ा विकट था , जो केवल निकट से ही समझा जा सकता था
बलभद्र का यह कहना और सोचना था कि ,प्रेम केवल निकट से ही ,निकट में ही किया जा सकता है क्योकि ,दूर के ठोल, सुहावने भर दिखते है , होते नहीं है
प्रेम के बारे में उनके विचार बड़े मौलिक तो थे ही साथ ही साथ वो भयंकर सुन्दर भी थे वे प्रेम के वर्तमान स्वरुप में ही विश्वाश रखते थे भूत काल के प्रेम को वे भूल जाने को कहते और भविष्य काल के प्रेम में उनका कतई विश्वास नहीं था
उनका यह भी मत था कि जब भी मौका लगे ,या सधे ,प्रेम व्रेम कर कुरा लो , नहीं तो कही मरमूरा गए तो बस एक बंगला बने न्यारा भर रह जायेगा जो कभी नहीं बनता
Friday, April 2, 2010
रिश्ते मर गए है
रामखिलावन मन, ओरमाये खटिया पे उतान पड़े थे
बलभद्र लोटन कबूतर की तरह जगह जगह का स्वाद लेत -देत ,उठते -गिरते,धम्म से रामखिलावन की ,खटिया के पास आ धमके और रामखिलावन के मन में आ जा रहे
विचारो में खलल पैदा कर दी ,रामखिलावन के मुह से कोई शुद्ध देशी गाली निकलने ही वाली थी की अचानक रुक गयी क्यों रुक गयी ये उन्हें भी नहीं मालूम पड़ सका वे स्तभ्य से रह भर गए जैसे देशी कट्टे से कारतूस निकने के पहले चलते ही किच्च बोल दे और धरे के धरे रह जाये इस बीच दुश्मन अटैक कर दे ,सो अलग मर मुरा जाये तो कोई बड़ी बात नहीं
रिश्ते मर गए है हम जिन्दा है क्यों जिन्दा है मौत नहीं आई कब आयेगी , पता नहीं इसे छोड़ , सब मालूम है ,कुछ भी पूछा लो पूरब- पश्चिम ,उतर-दखिन ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश सब जानते है भैया ,पड़ोस की खबर नहीं होनालूलू के बारे में जानते है खुद को छोड़ सब को जानते है भैया ,बोलो क्या उखाड़ लोगे
रिश्ते बनते ही है , टूटने के लिए ,जैसे हम- तुम ,रिश्ते जिए जाते है जीने के लिए हम-तुम मरे जा रहे है जीने के लिए ,लगता है कि कुछ अंतर है इबारत में
रिश्ते बनते है तो निभाए भी जाते है जो नहीं निभाते वो रिश्ते नहीं स्वार्थ है ,रिश्ते स्वार्थी नहीं होते हम-तुम स्वार्थी होते है ,जैसे हम -तुम होते है वैसे ही हमारे रिश्ते हो जाते है
रामखिलावन यही सब सोच रहे थे कि सब गुड -गोबर हो गया ,बलभद्र आ गया
नहीं दादा बोलो बोलो सुने तो रिश्ते क्या से क्या हो गए क्यों मर रहे है जब कि हम जिन्दा है
चिंतन और चिता एक साथ भला कैसे हो सकते है ,जहा चिंतन है वह चिता नहीं हो सकती और जहा चिता है वहा चिंतन कैसे हो सकता है ,हा समसान वैराग्य से सनसनाये वैरागी ,मनीषी जरूर मिल जाते है अड़गम बगड़म करते उन्ही को हम पहुचे हुए मान लेते है जानते कुछ नहीं बस मान लेते है ,कौन सर खपाए जानने के लिए मान लो ,मानाने में क्या बिगड़ता है ,हम तो शूरू से माने बैठे है माना कि अ ब स एक त्रिभुज हैहै, भैया अब क्या कर लोगे क्या उखाड़ लोगे न भी हो तो
रिश्ते कोई दाग नहीं है कि सर्फ़ एक्सल से धो लिया और चल दिए ,पेट का दर्द नहीं है कि पुदिन हरा पिया और सब ठीक हो गया ,इनो पियो और जियो
क्या बात है ,कुछ रिश्ते खुद बनते है कुछ बनाये जाते है जो खुद बनते है उसमे खुदा की मर्जी होती है और जो खुद बनाये जाते है उसमे खुद की मर्जी होती है मर्जी का अन्तर
हमें कहा से कहा पहुचाता है क्या क्या कराता है ये तो आप को भी मालूम होगा कि बताना होगा ? नहीं ...........बताये ..........अरे का कर रहे हो पोल न खुलवाओ ,खुल जायेगी तो का होगा रामखिलावन बोले
बलभद्र बोले जाने दो दादा जाने दो अ ब स एक त्रिभुज है
कहा गयी वो नानी की कहानिया ,नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए बाकि जो बचा था काले चोर ले गए .........................
घर बड़े हो गए है दिल छोटे हो गए हैओहदा बड़ा हो गया है ,सोच छोटी हो गयी है अपने लिए दयालु दूसरो के लिए मर्यादित हो गए है बोलो बलभद्र कुछ तुम भी बोलो ......
का बोले बोलने को अब बचा ही का है
रिश्ते सस्ते हो गए है
रिश्ते किस्से हो गए है
रिश्ते मर गए है .................
बलभद्र लोटन कबूतर की तरह जगह जगह का स्वाद लेत -देत ,उठते -गिरते,धम्म से रामखिलावन की ,खटिया के पास आ धमके और रामखिलावन के मन में आ जा रहे
विचारो में खलल पैदा कर दी ,रामखिलावन के मुह से कोई शुद्ध देशी गाली निकलने ही वाली थी की अचानक रुक गयी क्यों रुक गयी ये उन्हें भी नहीं मालूम पड़ सका वे स्तभ्य से रह भर गए जैसे देशी कट्टे से कारतूस निकने के पहले चलते ही किच्च बोल दे और धरे के धरे रह जाये इस बीच दुश्मन अटैक कर दे ,सो अलग मर मुरा जाये तो कोई बड़ी बात नहीं
रिश्ते मर गए है हम जिन्दा है क्यों जिन्दा है मौत नहीं आई कब आयेगी , पता नहीं इसे छोड़ , सब मालूम है ,कुछ भी पूछा लो पूरब- पश्चिम ,उतर-दखिन ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश सब जानते है भैया ,पड़ोस की खबर नहीं होनालूलू के बारे में जानते है खुद को छोड़ सब को जानते है भैया ,बोलो क्या उखाड़ लोगे
रिश्ते बनते ही है , टूटने के लिए ,जैसे हम- तुम ,रिश्ते जिए जाते है जीने के लिए हम-तुम मरे जा रहे है जीने के लिए ,लगता है कि कुछ अंतर है इबारत में
रिश्ते बनते है तो निभाए भी जाते है जो नहीं निभाते वो रिश्ते नहीं स्वार्थ है ,रिश्ते स्वार्थी नहीं होते हम-तुम स्वार्थी होते है ,जैसे हम -तुम होते है वैसे ही हमारे रिश्ते हो जाते है
रामखिलावन यही सब सोच रहे थे कि सब गुड -गोबर हो गया ,बलभद्र आ गया
नहीं दादा बोलो बोलो सुने तो रिश्ते क्या से क्या हो गए क्यों मर रहे है जब कि हम जिन्दा है
चिंतन और चिता एक साथ भला कैसे हो सकते है ,जहा चिंतन है वह चिता नहीं हो सकती और जहा चिता है वहा चिंतन कैसे हो सकता है ,हा समसान वैराग्य से सनसनाये वैरागी ,मनीषी जरूर मिल जाते है अड़गम बगड़म करते उन्ही को हम पहुचे हुए मान लेते है जानते कुछ नहीं बस मान लेते है ,कौन सर खपाए जानने के लिए मान लो ,मानाने में क्या बिगड़ता है ,हम तो शूरू से माने बैठे है माना कि अ ब स एक त्रिभुज हैहै, भैया अब क्या कर लोगे क्या उखाड़ लोगे न भी हो तो
रिश्ते कोई दाग नहीं है कि सर्फ़ एक्सल से धो लिया और चल दिए ,पेट का दर्द नहीं है कि पुदिन हरा पिया और सब ठीक हो गया ,इनो पियो और जियो
क्या बात है ,कुछ रिश्ते खुद बनते है कुछ बनाये जाते है जो खुद बनते है उसमे खुदा की मर्जी होती है और जो खुद बनाये जाते है उसमे खुद की मर्जी होती है मर्जी का अन्तर
हमें कहा से कहा पहुचाता है क्या क्या कराता है ये तो आप को भी मालूम होगा कि बताना होगा ? नहीं ...........बताये ..........अरे का कर रहे हो पोल न खुलवाओ ,खुल जायेगी तो का होगा रामखिलावन बोले
बलभद्र बोले जाने दो दादा जाने दो अ ब स एक त्रिभुज है
कहा गयी वो नानी की कहानिया ,नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए बाकि जो बचा था काले चोर ले गए .........................
घर बड़े हो गए है दिल छोटे हो गए हैओहदा बड़ा हो गया है ,सोच छोटी हो गयी है अपने लिए दयालु दूसरो के लिए मर्यादित हो गए है बोलो बलभद्र कुछ तुम भी बोलो ......
का बोले बोलने को अब बचा ही का है
रिश्ते सस्ते हो गए है
रिश्ते किस्से हो गए है
रिश्ते मर गए है .................
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