Thursday, July 29, 2010

क्या कहे ...........

जिन्हें मालूम नही है वे कहे जा रहे है और जिन्हें मालूम है या मालूम हो गया है वे चुप्पी साध लेते है |बकबक करने वालो की तादात देखे तो , कैसे बठती चली जा रही है | चारो तरफ ज्ञानियों की फौज जमी हुई है| बिना ज्ञान बघारे उन्हें नीद नही आती ,कब्ज हो जाये तो उसे भी लिए ज्ञान बाटने निकल पड़ते है गलियों गलियों | किसे सुधार रहे है |खुद क्या है |उस तरफ ध्यान नही है ये मनोदशा किसकी है और किसकी नहीं है ये शोध की विषय है |

घर -परिवार ,गाव ,कस्बा ,देश प्रदेश कहा कहा की बात करे ,नेता देश सुधारने में लगे है खुद बिगड़ जाये कोई हर्ज नही देश सुधार कर ही मानेगे |

कहने से कुछ होता है ,कुछ नही, बहुत कुछ होता है ,तुलसीदास की पत्नी ने ही उनसे कुछ कहा था जिससे वे रामभक्त हो गए ,कालिदास को भी ऐसे ही कुछ संकेत विध्योत्मा ने ही दिए थे ,पर क्या अब ऐसे कहने और सुनने वाले है ?

बात बात पर खुद को सही और दुसरे को गलत सिद्ध करने वाले हम और आप कभी अपना भी गिरेवान झांक कर देखते है ? कितनी तेजी से हम और हमारा देश उस दिशा की तरफ चल निकला है जिधर सम्मान नही है आदर ,सम्मान ,प्रतिष्ठा ,अपनापन ,प्रेम -व्यवहार ,तीज -त्यौहार ,नाते -रिश्ते ,भाषा -परिधान ,कला -संस्कृति , तान -बाणखान -पान ,पता नही सब कुछ बदला बदला सा है , मुझे तो ऐसे ही दिखता है हो सकता है मोतियाबिंद हो ,पर हो सकता ,आपको सही सही दिखता हो ?

परिवर्तन ही उन्नति है ,ऐसा शनिचर का कहना है ,आपका भी है या नहीं ,पता नहीं ,पर कैसा परिवर्तन ? आज लिया निर्णय कल सही होगा दावा नहीं कर सकते ,पर जब लेते है तो यह मन कर ही लेते है की सही निर्णय ही ले रहे है |वो आगे जा कर गलत साबित हो तो हम क्या करे ,सब कुछ अच्छे अच्छे के लिए तो करते है ,कौन गलत निर्णय लेता है वो तो समय है जो सही को गलत और गलत को सही साबित कर देता है फिर हम क्यों अपनी उर्जा दुसरे को गलत और अपने को सही लगाने में खर्च कर रहे है ?

शनिचर एक प्रार्थना गाते नहीं अघाते ,अब सौप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथो में ,है जीत तुम्हारे हाथो में और हार तुम्हारे हाथो में ......गुनगुनाते रहते है | सब की मालिक एक है तो फिर हम क्यों मालिक की रोल अदा करने में सर्री शक्ति भिडाये हुए है ,जब कुछ ले कर जाना नही है तो फिर इतनी माथा पच्ची क्यों काहे के लिए ,कहते है शांति नहीं रही ,अरे कहा से रहे और क्यों रहे ,उसे रहने के लिए जगह भी छोड़ी है की वह रहे ,हम फुल है जो नहीं है वो जुगाड़ में है फुल होने की ,मौका तलाश रहे है ,मौके का लाभ उठाने में भी हमारा कोई सानी नही ,फिर क्यों दुखी होते है हम | दुसरे के सुख को देख कर भी हम दुखी हो जाते है , सुख केवल अपने तक सियामित कर रखे है हमने ,जैसे ही तुम्हे सुखी देखते है दुखी हो जाते है हम | क्या करे दुसरे को देखना बंद कर दे .....|

जीवन गुजर रहा है और हम भी गुजर रहे है ,आम के पेड़ में आम ही फलते है सब ज्ञान हमें है बात यह नही है बात यह है की हम पाखंडी है मन से वचन से और कर्म से एक नहीं है ,मुह में राम बगल में छुरी कहावत आज बेतहासा फल- फूल रही है ,कब हम किसे डिच दे जाये हमें खुद पता नही ऐसा शनिचर की सोच है |






Thursday, July 8, 2010

डंडा पूरण-4

डंडे के स्वरुप और नाम को ले कर कुछ लोगो और क्षेत्रो में मतभेद उभारना स्वाभविक है ,ये देश भी तो ससुरा इतना बड़ा है कि कुछ दूर चलो नहीं कि बोली बदल जाती है और कुछ दूर चलो कि भाषा बदल जाती है कितनी बोली सीखे और कितनी भाषा ,हम तो दिए रहते है अपनी भाषा में प्रवचन जिन्हें समझ में आये वो समझ नहीं आये तो चुपचाप पालथी मार के बैठे ,चूचा न करे नहीं तो दिया ये चिमटा घुमा के शनिचर अपनी ओउकात में आ गए ,मुद्राए न बदलो नहीं तो फल नहीं मिलेगा पूरा पूरा ,फल के चक्कर में निपुर जाओ ,पर मुद्रा न बदलो ,शनिचर की नसी एक के ऊपर एक हो रही थी ,उसे लगा जैसे खून की आवागमन ही बंद प्राय हो गया है ,उसने हडबडा कर पाव सीधे किये ,उसके मन में चल रहा था कि ये कैसा गीता का ज्ञान है काम करो ,फल कि इच्झा न करो ,उसमे तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है ,मजूरी कौन देगा ,काम तो करे ,मजूरी न मांगे क्या बात है गीता का ज्ञान है कि भूखे मरवाने का हथकंडा किशन महराज ने भी कम लफड़े नहीं किये है का हमें मालूम नही , खैर चलता है कहा हम कहा प्रभु ,कहा राजा भोज कहा गंगू तेली ,पर है कुछ न कुछ .........जो केवल डंडे से ही ठीक किया जा सकता है इस लिए भैया डंडा पुराण सुन ही लेने भलाई है सो शनिचर फिर सुनने लगे .....
उधर रामखिलावन उवाच रहे थे ..हे श्रेठ नरो ,सुनो डंडा विहीन नर, नरक का भागी ही बनाने होता है मुसीबतों की पर्वत श्रख्लाये उसे उभरने नहीं देती वह उठ उठ कर भी जीवन भर गिरा रहता है डंडा ही उसे उठा सकने की ताकत रखता है और वह नर फिर डंडे की शरण में जाता है जिससे उसका उद्धार होता है
क्रमशः