Thursday, July 8, 2010

डंडा पूरण-4

डंडे के स्वरुप और नाम को ले कर कुछ लोगो और क्षेत्रो में मतभेद उभारना स्वाभविक है ,ये देश भी तो ससुरा इतना बड़ा है कि कुछ दूर चलो नहीं कि बोली बदल जाती है और कुछ दूर चलो कि भाषा बदल जाती है कितनी बोली सीखे और कितनी भाषा ,हम तो दिए रहते है अपनी भाषा में प्रवचन जिन्हें समझ में आये वो समझ नहीं आये तो चुपचाप पालथी मार के बैठे ,चूचा न करे नहीं तो दिया ये चिमटा घुमा के शनिचर अपनी ओउकात में आ गए ,मुद्राए न बदलो नहीं तो फल नहीं मिलेगा पूरा पूरा ,फल के चक्कर में निपुर जाओ ,पर मुद्रा न बदलो ,शनिचर की नसी एक के ऊपर एक हो रही थी ,उसे लगा जैसे खून की आवागमन ही बंद प्राय हो गया है ,उसने हडबडा कर पाव सीधे किये ,उसके मन में चल रहा था कि ये कैसा गीता का ज्ञान है काम करो ,फल कि इच्झा न करो ,उसमे तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है ,मजूरी कौन देगा ,काम तो करे ,मजूरी न मांगे क्या बात है गीता का ज्ञान है कि भूखे मरवाने का हथकंडा किशन महराज ने भी कम लफड़े नहीं किये है का हमें मालूम नही , खैर चलता है कहा हम कहा प्रभु ,कहा राजा भोज कहा गंगू तेली ,पर है कुछ न कुछ .........जो केवल डंडे से ही ठीक किया जा सकता है इस लिए भैया डंडा पुराण सुन ही लेने भलाई है सो शनिचर फिर सुनने लगे .....
उधर रामखिलावन उवाच रहे थे ..हे श्रेठ नरो ,सुनो डंडा विहीन नर, नरक का भागी ही बनाने होता है मुसीबतों की पर्वत श्रख्लाये उसे उभरने नहीं देती वह उठ उठ कर भी जीवन भर गिरा रहता है डंडा ही उसे उठा सकने की ताकत रखता है और वह नर फिर डंडे की शरण में जाता है जिससे उसका उद्धार होता है
क्रमशः

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