फागुन आया गांव में महुआ हो गया मन
अमलतास की डाल से बोले हीरा मन
अभी अभी तो पास थे अभी अभी है दूर
मन से अब भी पास है तन से कोशो दूर
छिप छिप कर मिलते रहे अब तक कितनी बार
गुलमोहर की छाव में पकड़ गए कचनार
गली गली में राधाये गली गली में कृष्ण
मन ही मन उत्तर मिले नही पूछने प्रश्न
वैसे तो सब भूल गए फिर भी है कुछ याद
झरने जैसी थी हँसी मिसरी जैसी बात
No comments:
Post a Comment