Tuesday, August 24, 2010

जीरो बटा सन्नाटा......

मनौतियो और मान्यताओ को ,लादे शनिचर जीवन भर चले पर भाग ना पंहुचा लधे शुन्य न कुछ ले के आये थे न कुछ ले के जायेंगे उनके मन में यह विचार आता है की ससुरे जीवन भर घास छिलते रहे का बड़े असमंजस में है चलती बेरिया करे तो करे का जो सुना -सुनाया, सुना ,उन्होंने जीवन भर ,सो किया अब उम्र जब, चला चली की हो चली तो लगे है हिसाब किताब करने , पर बार -बार करने पर भी उनका हिसाब किताब सब गड्डम- गुड्डा हो जाता है पिसाब जरुर निकल आता है इस मेहनत पर सो अलग समस्या है ..ससुरी बार बार जोडने घटाने के बाद भी हिसाब लध्धे शुन पर जा टिकता है शनिचर कनफुजिया गए है शनिचर हलकान है किससे चलती बेरिया पूछे पाछे बाल सखा जो रहे ससुरे पहले ही निपुर-निपुरा गए है जो एक दो बचे है कौनो काम के नही ,बिशेषर है कान का पर्दा फाड़े बैठे है साल भर से लौंडे है , उनके तीन धोऊ चार पर काहे को सुने कि बुठापे में कुछ सुभीता दे दे बाप को कहते है की बुठाईदार सुन सुना के का करेंगे कक्कू जीवन भर तो सुने नही किसी की अब जरा विश्राम कर ले हम सोच रहे है काहे को जाते जवाते राडी दुखाई सुने, यही सुभीता का कम है बताओ .....
शनिचर कहते है मान्यता , मतलब कुछ ऐसा झालाम्झाला ,धारणाये और अनुमान , कुछ ऐसी बाते जिनका सर पैर न हो पर जिस पर मन विश्वास करता है लेकिन जो सच न हो ,सच लगती भर हो क्योकि आस पास के सभी जन उन बातों पर विश्वास करते है सो देखा देखी हम भी करने लगते है मान्यता का अर्थ ही है जो नही है लेकिन हम सब मान लिए है मान्यता चोरकट है जाली है जो अज्ञान के अधेरे में चलता है ज्ञान के प्रकाश में नही
शनिचर ने इस चक्कर में जीवन भर भूले की अब चलाचली की बेला में हिसाब किताब सब गड्ड -मड्ड स्वर्ग नर्क की मान्यता जिसकी कोई भौगोलिक स्थिती नही है ,इस जन्म का फल अगले जन्म में मिलेगा ,सुख केवल अमीरो की बपौती है ,पैसा किस्मत से मिलता है ,पूजा न करेंगे तो भगवन नाराज हो जायेंगे फिर ले लेना बेट्टा सरस्वती जी घर घर पूजी जाती है पर नोबल पुरुस्कार पश्चमी देशो के नाम ,घर घर लक्ष्मी जी विराज मान है पर वो महरानी पाव तोड़ के अमरीका में बैठी है ....हम हिंदू ,मुसलमान सिख ,ईसाई की लड़ाई ही लड़ते रहे जीवन भर का मिला भैया .....
मूल मान्यता हम अपने आप को जीवन भर शरीर समझे रहे ,यह मेरा शरीर है ,यानी मै इससे अलग हुआ जब हमारे कपडे फट जाते है तब हम यह नही कहते की हम फट गए है लेकिन शरीर में दर्द होते ही कहते है दर्द हुआ यह है मूल मान्यता हम कपडे नही ,कपडे का उपयोग करने वाले है हम शरीर नही शरीर को चलाने वाले वाहक है ऐसी कुछ कुछ बाते शनिचर के मन में उपद्रव किये हुए है ,का करे किससे कहे और का कहे कोई इस भीड़ में सुनता नही दिखाई देता सब लगे है जीने में ,जीवन क्या है ,जीना क्या है वो ही जाने ...........शनिचर तो कहते है सब हिसाब किताब जीरो बट्टा सन्नाटा है भैया ..............

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