राम खिलावन और बलभद्र अपनी चिर परिचित मुद्रा में बैठे बतिया रहे थे सामने ताजा-ताजा अखबार फैला हुआ था जिसे रामखिलावन दादा ने हेड लाइन से ले कर अंतिम पृष्ठ तक पठ चुके थे अब वे उसे बोख्बा बारी को देने वाले थे जिसे वे रोज की तरह आवश्कतानुसार अपनी भट्टी को समर्पित करते
गांव के विद्वान ,मनीषी ,उजबक जब सब दीन दुनिया की खबरों से रूबरू हो जाते तो फिर भला अखबार का और क्या काम वो बोखाबा बारी के हाथो अपने आप को अग्नि में समाहित कर स्वाहा स्वाहा हो जाता
अखबार में एक खबर गर्म थी सो उसी को ले कर रामखिलावन बतिया रहे थे ,दूर गांव के एक किसान ने कामधेनु योजना के अंतर्गत अपने खेत में कुआ खुदवाया था सरकारी योजना के तहत एक साल में ही कुए की जुड़ाई सरक गयी सरकार की तरह धस अलग गया ,किसान ने इसकी शिकायत जिले के कलेक्टर से की सो सरपंच पर बन आई ,सरपंच ने किसान की ऐसी तैसी कर दी बेटा कुआ खुदवाया उसमे पानी भी निकला दीवार धस गयी तो मेरी शिकायत कर आये अब बेटा पियो पानी गांव में तो जाने अब ससुरे तुम्हारा पानी न निकला तो कहना बेचारा किसान गांव छोड़ राजधानी में दस दिन से दल बल सहित डेरा डाले है मुख्य मंत्री से मिलने उन्ही से कहेगा सब कुछ और वो है कि मिल नही पा रहे है वो मिले भी तो कैसे प्रदेश के विकास में दिन रात एक किये है
विकास की दर प्रदेश में क्या देश में बठ रही है रामखिलावन बोले भैया विकास दर बठ रही है कि विनाश दर ..............
Monday, January 31, 2011
Friday, January 21, 2011
ऊट के मुह में जीरा .......
अन्नदाता ,हलाकान है ,फसले पाले में पट गयी किसान ठनठन गोपाल जो जमा पूजी थी सब स्वाहा अब उसकी बारी है सरकार मुआवजा बात रही है ,जले में नमक छिडक रही है या नमक में जल रामखिलावन भी बैठे बैठे सोच रहे है कि जब अन्नदाता ही भूखा रहेगा तो दूसरों का क्या होगा , दूसरे मजे में कब तक रहेंगे ,बलभद्र कह रहे है मौजा ही मौजा ,उनका जो मुआवजा बाट रहे है ,सर्वे कर ,करा रहे है हो क्या रहा है अपने ही देश में बेगानों जैसा वर्ताव सोच सोच कर अन्नदाता ,दे दाता के नाम तुझको अल्ला रखे गुनगुनाने लगा है एक किसान ने तो सर्कार द्वारा दी जाने वाली मुआवजे की राशी इस लिए लौटा दी कि भैया इसे आप ही रखो , इससे ज्यादा तो खेत से पाला खायी फसल को हटाने में ही लग जायेगा
किसानो के देश में किसानो की यह दुर्दशा ,क्या बात है ,हमारे देश की आत्मा गावो में बसती है ,यही कहते है हम सभी और उस आत्मा को मारे डालने में कोई कसर नही छोड़ रहे है छोड़े भी क्यों , आत्मा तो हम सब ने अपनी अपनी पहले ही मार डाली है फिर देश की आत्मा की क्या चिन्ता और फिर चिन्ता करने से तो चतुराई घटती है ,भला हम क्यों अपनी चतुराई घटाने चले ,और रहा दुःख सो भैया बहादुर दुःख से शरीर घटता है सो उससे भी राम राम , हम तो दूसरों का शरीर घटाने में लगे है ,भला अपना क्यों घटाए दुःख करके
अन्नदाता दुखी है तो अपने ठेंगे से ,इस देश में लोग दूसरों का सुख देख कर भी तो दुखी होते रहते है
और दूसरे के दुःख को देख कर सुखी होते है अपनी बला से , न्यायाधीशों के यह लम्बित प्रकरणों का अम्बार लगा हुआ है और हम है कि न्यायाधीश बने टीका करते नही चुकते प्रकरण चाहे कोई हो किसी के बारे में हो सार्वजनिक हो या व्यक्तिगत हम सब में टाँगे अड़ाए ये हमारा दायित्व है
किसानो के देश में किसानो की यह दुर्दशा ,क्या बात है ,हमारे देश की आत्मा गावो में बसती है ,यही कहते है हम सभी और उस आत्मा को मारे डालने में कोई कसर नही छोड़ रहे है छोड़े भी क्यों , आत्मा तो हम सब ने अपनी अपनी पहले ही मार डाली है फिर देश की आत्मा की क्या चिन्ता और फिर चिन्ता करने से तो चतुराई घटती है ,भला हम क्यों अपनी चतुराई घटाने चले ,और रहा दुःख सो भैया बहादुर दुःख से शरीर घटता है सो उससे भी राम राम , हम तो दूसरों का शरीर घटाने में लगे है ,भला अपना क्यों घटाए दुःख करके
अन्नदाता दुखी है तो अपने ठेंगे से ,इस देश में लोग दूसरों का सुख देख कर भी तो दुखी होते रहते है
और दूसरे के दुःख को देख कर सुखी होते है अपनी बला से , न्यायाधीशों के यह लम्बित प्रकरणों का अम्बार लगा हुआ है और हम है कि न्यायाधीश बने टीका करते नही चुकते प्रकरण चाहे कोई हो किसी के बारे में हो सार्वजनिक हो या व्यक्तिगत हम सब में टाँगे अड़ाए ये हमारा दायित्व है
Thursday, January 20, 2011
Wednesday, January 19, 2011
बहुत दिन बाद ........
राम खिलावन बहुत दिन बाद फिर आ गए ,मन भर गया इस चिल -पो से उनका ,बेसुरा गाना सब गए जा रहे है हर तरफ भ्रस्ताचार की बाते उसी के गीत उसी के नव गीत गाते लोग बैग नही अघा रहे है लितनी बाते करते है उतना ही वह सुरसा की तरह बठ्ता ही जा रहा है शायद गाने न गाने से न बठे ऐसा रामखिलावन का सोचना है ,वो कहते है की गए गए बियाह हो जाता है बलभद्र ,भ्रस्ताचार क्या चीज है जिसके बारे में हम सब ज्यादा सोचते है वही हमे सब तरफ दिखने लगती है ,प्रेम के किसी दीवाने से पुछो भईया उसे हर तरफ उसकी प्रेमिका ही दिखाई देती है हर जगह वह उसी की छवि देखता है उसी में सोता है और उसी में जागता है ,ऐसी ही कहानी कुछ -कुछ भ्रस्ताचार की है
तुम्हारा का कहना है बलभद्र महोदय , रामखिलावन खीस निपोरते हुए उनकी तरफ व्यंग बान मारते हुए बोले _ कुछ सकुचाते हुए भईया बलभद्र उवाचे ,दादा -जैसे हमारे विचार होते है वैसे ही हमारे आचार होते है जो आगे चल क्र अपनी प्रकृति के अनुसार सदाचार ,भ्रस्ताचार ,शिष्टाचार ,के नाम से जाना जाता है दादा समाज तो सामाजिक प्राणियों से मिल कर बनता है तो फिर यह असमाजिक चीज सामाजिक जगह कैसे घुस गयी शरणार्थियों की तरह ,लगता है इसमें भी कुछ विदेशी शक्तियों का हाथ है जैसे सब चीजों में प्रायः होता है या कहा जाता है ,हमारा देश तो महान है इस देश के नागरिक भी महान है ये गैर महान चीज कहा से पिल पड़ी निकल बाहर करो ससुरे को ,जाये जहा से आया है
कौन कहा से आया है और कौन किसे भागना चाहता है सब कुछ कल के गाल में समाया है पर हम बपुरे तो इसी चिल पो में पिसे जा रहे है
तुम्हारा का कहना है बलभद्र महोदय , रामखिलावन खीस निपोरते हुए उनकी तरफ व्यंग बान मारते हुए बोले _ कुछ सकुचाते हुए भईया बलभद्र उवाचे ,दादा -जैसे हमारे विचार होते है वैसे ही हमारे आचार होते है जो आगे चल क्र अपनी प्रकृति के अनुसार सदाचार ,भ्रस्ताचार ,शिष्टाचार ,के नाम से जाना जाता है दादा समाज तो सामाजिक प्राणियों से मिल कर बनता है तो फिर यह असमाजिक चीज सामाजिक जगह कैसे घुस गयी शरणार्थियों की तरह ,लगता है इसमें भी कुछ विदेशी शक्तियों का हाथ है जैसे सब चीजों में प्रायः होता है या कहा जाता है ,हमारा देश तो महान है इस देश के नागरिक भी महान है ये गैर महान चीज कहा से पिल पड़ी निकल बाहर करो ससुरे को ,जाये जहा से आया है
कौन कहा से आया है और कौन किसे भागना चाहता है सब कुछ कल के गाल में समाया है पर हम बपुरे तो इसी चिल पो में पिसे जा रहे है
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