Friday, January 21, 2011

ऊट के मुह में जीरा .......

अन्नदाता ,हलाकान है ,फसले पाले में पट गयी किसान ठनठन गोपाल जो जमा पूजी थी सब स्वाहा अब उसकी बारी है सरकार मुआवजा बात रही है ,जले में नमक छिडक रही है या नमक में जल रामखिलावन भी बैठे बैठे सोच रहे है कि जब अन्नदाता ही भूखा रहेगा तो दूसरों का क्या होगा , दूसरे मजे में कब तक रहेंगे ,बलभद्र कह रहे है मौजा ही मौजा ,उनका जो मुआवजा बाट रहे है ,सर्वे कर ,करा रहे है हो क्या रहा है अपने ही देश में बेगानों जैसा वर्ताव सोच सोच कर अन्नदाता ,दे दाता के नाम तुझको अल्ला रखे गुनगुनाने लगा है एक किसान ने तो सर्कार द्वारा दी जाने वाली मुआवजे की राशी इस लिए लौटा दी कि भैया इसे आप ही रखो , इससे ज्यादा तो खेत से पाला खायी फसल को हटाने में ही लग जायेगा
किसानो के देश में किसानो की यह दुर्दशा ,क्या बात है ,हमारे देश की आत्मा गावो में बसती है ,यही कहते है हम सभी और उस आत्मा को मारे डालने में कोई कसर नही छोड़ रहे है छोड़े भी क्यों , आत्मा तो हम सब ने अपनी अपनी पहले ही मार डाली है फिर देश की आत्मा की क्या चिन्ता और फिर चिन्ता करने से तो चतुराई घटती है ,भला हम क्यों अपनी चतुराई घटाने चले ,और रहा दुःख सो भैया बहादुर दुःख से शरीर घटता है सो उससे भी राम राम , हम तो दूसरों का शरीर घटाने में लगे है ,भला अपना क्यों घटाए दुःख करके
अन्नदाता दुखी है तो अपने ठेंगे से ,इस देश में लोग दूसरों का सुख देख कर भी तो दुखी होते रहते है
और दूसरे के दुःख को देख कर सुखी होते है अपनी बला से , न्यायाधीशों के यह लम्बित प्रकरणों का अम्बार लगा हुआ है और हम है कि न्यायाधीश बने टीका करते नही चुकते प्रकरण चाहे कोई हो किसी के बारे में हो सार्वजनिक हो या व्यक्तिगत हम सब में टाँगे अड़ाए ये हमारा दायित्व है

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