राम खिलावन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से बोल रहे है ,
यत्र नारिश्य पुजनते तत्र रमन्ते देवता ,
भोपाल ,पहुच कर राम खिलावन दंग रह गए ,चिंतन क्या करते सोच भी नही पा रहे थे की ये हो क्या रहा है अपने बाल नोच रहे थे ,ये वही देश है न जहा ये श्लोक लिखा गया है युग बदल गया ,लोग बदल गए रंग बदल गए ,लोगो के ढंग बदल गए ,सोच का तरीका बदल गया , और बदले हुए सोच के साथ सुनहरे कल की ओर बढ़ चले ,बढ़ चले क्या बढ़ गए और छा गए अखबारों में सुर्खियों में छोटे मोटे काम करोगे ,छोटे बने रहोगे ,छोटे काम करोगे , नए युग में लोग क्या कहेगे छोटी सोच का छोटा जादू ,तुम बड़ा जादू दिखाना चाहते हो न क्यो की तुम्हारी सोच बड़ी है ,करो किसने मना किया है ,बड़े काम के साथ छोटे काम भी करो ,क्यो की कोई काम छोटा नही होता पर खोटा काम मत करो ,खोटे सिक्के बाजार में बहुत दिन नही चलते ,चलते है तो अर्थ व्यवस्था को चोट पहुचाते है और चोट खाई हुई बात ,व्यवस्था ,व्यक्ति ,समाज पंगु हो जाती है सुधरने में वक्त लगता है ,किसी को बनने में जितना समय लगता है उससे कम समय उसे नष्ट करने में लगता है
राम खिलावन का मन ,मनो का हो गया और मनो का मन लिए राम खिलावन चिंतन कर रहे है
क्या हो गई मेरे देश की हालत ,क्या होगा अंजाम
कितना बदल गया इन्शान ,
ओ कितना बदल गया इन्शान
मानव से हम महा मानव बनने की जुगत में है ,क्या इसी तरह हम महा मानव बनेगे की मदद की आड़ में इज्जत से खिलवाड़ ...............
राम खिलावन ने अपने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी ,हार जीत ,सायद आपने भी पठी होगी ,उस कहानी में एक थे बाबा भारती और एक था डाकू खड़क सिंह ,बाबा भारती के पास एक घोड़ा था जिसे वो बहुत प्यार करते थे ,डाकू खड़क सिंह उस घोडे को ,अपाहिज बन कर ,एक राह के किनारे पड़ा रहा और जब बाबा भारती वह से गुजरे तो मदद मांगी की मुझ अपाहिज को अगले गाव तक छोड़ दो ,बाबा भारती सहज भाव से मदद करते थे ,वे घोडे से उतर गए और उन्होंने अपाहिज बने डाकू खड़क सिंह को घोडे में बिठा दिया थोडी दूर तक तो डाकू खड़क सिंह ,अपाहिजों की तरह घोडे में पड़ा रहा ,और बाबा भारती ,अपने प्यारे घोडे की लगाम हाथ में लिए आगे आगे चलते रहे की अचानक एक झटके से अपाहिज बना डाकू खड़क सिंह ,अपने मूळ रूप में आ गया और घोडे को ले भगा ,बाबा भारती देखते ही रह गए ,अब डाकू खड़क सिंह को अपनी मन चाही चीज मिल गई थी और वो बहुत खुश हो रहा था ,बाबा भारती पैदल ही चल रहे थे ,डाकू खड़क सिंह लौटा और बाबा भारती से बोला देखो तुम उस तरह नही दे रहे थे तो इस तरह मैंने ले लिया घोडे को ,बाबा भारती बस इतना बोले ,खड़क सिंह तुमने घोड़ा ले लिया कोई बात नही ,पर कभी किसीसे यह मत कहना की मैंने इस तरह घोडे को लिया है या छुडाया है अपाहिज बन कर ,नही तो लोगो का गरीबो के ऊपर से विश्वाश उठ जाएगा ,तुम घोड़ा ले जाओ ...........
दुसरे दिन जब रोज की तरह जब बाबा भारती ,सुबह जगे तो घोड़ा अपनी जगह ही मिला ,डाकू खड़क सिंह ने घोड़ा
लौटा दिया था और वह फ़िर बाबा भारती के पास आ गया था ........
कहानी कुछ इसी तरह है ,अब हम जो कहानिया बना रहे है , उनमे कौन बाबा भारती हैऔर कौन डाकू खड़क सिंह ,कहना मुश्किल है ,क्यो की युग बदल गया युग का धर्म बदल गया ,लोग बदल गए ,लोगो के विचार बदल गए ,लेकिन ये बदला किसने ?
समाज बदल गया ,सभ्यता बदल गई ,देश बदल गया ,प्रदेश बदल गया सब सुनहरे कल की ओर दौड़ रहे है अंधे ,लंगडे सब ,कोई पात्रता नही सब बराबर है दौड़ में ,कोई धक्का दे कर ,कोई सीने में ,लात रख कर ,कोई सब कुछ लूट कर ,कोई सब कुछ लूटा कर दौड़ रहे है कुछ लुट लूटा गए ,कुछ लूट लिए गए ,लुटने वाले और लूटने वाले सब कहा के है यह कोई खोज और शोध का विषय नही है अपने मन को टटोलिये सब मिल जाएगा सब दिख जाएगा ............................................
राम खिलावन कह रहे है रहिमन पानी राखिये ,बिन पानी सब सून ..............................
यह भी कह रहे है की यहाँ ,जहा नारी की इज्जत नही है तो देवता भी नही होंगे वहा ,यहाँ ................जब भगवन ही नही है तो भक्त भी नही होंगे वहा ,यहाँ ,तो फ़िर क्या होगा ,
राम खिलावन का चिन्तन जारी है ,क्या हम वाकई सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे है .............या बढ़ गए है
No comments:
Post a Comment