रामखिलावन, रीमा वाले मुलत:रामदुलारे और रामदुलारी के प्रथम और अंतिम वैध संतान है इनका जन्म रीमा में एक लोकल ग़दर के समय लखौरीबाग में १९५७ के आस पास हुआ था बताते है कि रामखिलावन ने पैदा होते ही अपने बाप को दो लाते मारी थी क्यों मारी थी ,यह रह्श्य आज भी बना हुआ है जब कि उनके बाप का तथाकथित स्वर्ग गमन हो चुका है माँ को तो वो पेट में ही लाते दिए रहते थे माँ खुश होती थी क्यों कि माँ थी
रामदुलारे ने रामखिलावन के अकेलेपन को दूर करने के लिए भरसक कोशिश अपनी अर्धांगनी श्रीमती रामदुलारी के साथ की पर वे लाख प्रयास करने के बाद भी कुछ ज्यादा न कर सके रामदुलारे के कुछ अन्तरंग सखा जैसे रामगुलाम और रामसजीवन जितना उन्हें अभी भी याद है ,कहते है कि रामदुलारे अपने आँगन में लौंडो की किलकारी हमेशा बनी रहे के लिए एलानिया शिलाजीत का भी उपयोग करते थे ,रामदुलारी कभी किसी संन्यासी की शरण में तो कभी किसी जोगीr की राह भभूत की ताबीज गले में लटकाए घुमती रही पर वे सब धरे के धरे राह गए और रामखिलावन जीवन भर सिंगल इंजन की तरह जिन्दगी की पटरियों में शंटिंग करते रहे जब कि उनके सगे काका रामनिहोर और काकी रामवती की आधा दर्जन से कुछ ज्यादा ही संताने थी ,जो कि आज वर्त्तमान में सात बची है जिनमे चार लौड़े और शेष तीन ........बची है
वैसे तो रामखिलावन के काका रामनिहोर की सदैव यही इक्छा रही कि उनकी वामांगी यानी की श्रीमती रामवती गर्भवती ही बनी रहा करे ,समय समय को छोड़ कर वैसे भी रामनिहोर ने उन्हें निपोरने में कोई कसर अपनी तरफ से नहीं छोड़ी थी
रामखिलावन बचपन से ही उदयीमान रहे वे जहा चाहे वहा उदय हो जाते और तब तक उदय रहते जब तक अस्त न हो जाते बचपन में उनके दो शौक जगजाहिर हो गए थे पर सारे के सारे शौक भला किसी के पूरे होते है ,सो रामखिलावन भी बिरले नहीं थे वैसे इनके शौक ,उम्र और हालातो के कारन बीच बीच में बदलते रहे बचपन में कुछ और किशोर अवस्था में कुछ और ,जवानी में कुछ और ही रहे चठ्ती जवानी में कुछ भिन्य और अटपटे क़िस्म के शौक ,सपने जिनकी विस्तार व्याख्या फिर कभी फुरसत में होगी उसी के साथ उनके अन्तरंग मित्रो के बयान बानगी कुछ ऐसी घटनाओ का धाराप्रवाह विवरण जो दुर्घटनाओ में तब्दील हो गयी थी
ठलती जवानी की कुछ रोचक यादे ,वियोग ,धरम संकट और जब दुकान बंद होने लगी तो उन्होंने उसे खुले रखने का भारी प्रयास किया कुछ दिन सफल भी रहे पर जवानी कहा किसी की रुकी है कि रामखिलावन की ही रुकती सो चली गयी जिसके गम में रामखिलावन बरसो ग़मगीन रहे लखौरीबाग में अकेले नए नए प्रयोग जवानी को रोके रहने के किया करते
वैसे तो रामखिलावन मूलत :एक प्रेमी जीव थे और है भी ,जवानी और जवानी के प्रति समर्पित रामखिलावन का प्रेम जहा देखो वही ,उन दिनों फसफासा जाता था वो दिन ,कुछ और थे
जो अब लद्लुदा गए थे बचे थे तो बस रामखिलावन और उनकी तन्हाई सो वो लखौरीबाग में गुजरती थी और आज भी गाहे बिगाहे गुजर रही है
शेष फिर ..........................
I am interested to know about the ANTRANG PRASANG of RAMKHILAWAN...with his neares friends.
ReplyDeletePlease write a blog in this topic at earliest...
sir kya ramkhalawan kabhi school gaya tha?
ReplyDeleteyadi ramkhalawan school gaya to kaunsi class tak padhi ki. kya RAMKHALAWAN ko kabhi computer chalana ki training de jay?
ReplyDelete