Saturday, June 26, 2010
डंडा पुराण -3
तब तक कुत्ता भी छपकी तोड़ ,मोड़ के बैठ गया , रामखिलावन बोले ,डंडा के कारन ही बुठापा कटता है ,डंडा बुठापे में सहारा होता है क्यों की कमर और किसी किसी के घुटने निपुर जाते है ,तब बस डंडा ही उन्हें अपना सहयोग देता है इस लिए हे वत्स जो विपत्ति में साथ खड़ा रहे ,उसकी महिमा तो अपरम्पार ही होगी कौन खड़ा होता है चलती बेरिया में सब उगते सूरज को सलाम करते है ,शंकराचार्य जैसे विद्वान डंडे के सहारे ही देश देशाटन करते थे ,देखा नहीं फोटुओ में बिना डंडे के शंकराचार्य को देखा है कभी ,ये बात अलग है की उसे दंड कहते है ,
क्रमश ................
Thursday, June 24, 2010
डंडा पुराण -2
रामखिलावन हल्के हो वापस लौट चले ,इस बीच बलभद्र और सनीचर भिड़े हुए थे की या ससुरी डंडा पुराण कब ख़त्म होगा ,कुछ परशादी वरशादी की भी तो बनती है ,पर कुछ दिख नहीं रहा है बस पेले जा रहे प्रभु ,डंडा पुराण
अब तक रामखिलावन ने अपना आसन ग्रहण कर लिया ,दोनों श्रोता करते क्या न करते फिर विश्राम की अवस्था में बैठ गए रामखिलावन बोले हे वत्स सुनो यह कथा पहली बार ,मैंने स्वयं जब सुनी तो मुझे भी डंडे का रहस्य और महत्व समझ में आया ,इस लिए कहता हु की सुनो और दूसरो को सुनाने का फल लूटो ,लुट सके तो लुट नहीं तो अंत कल पश्तायेगा जब प्राण जायेंगे छुट ,ये कोई रेल गाड़ी नहीं छुट रही जो कल फिर मिल जाएगी ,प्राण छूटे सो छूटे ठुठे नहीं मिलेंगे फिर की कहा गए बेटा ,इस लिए ध्यान लगा कर सुन ........जो सुनाया जा रहा है
शनिचर मन ही मन सोच रहा था की कहा चुतियाई में फस गए ,डंडा पुराण ,कंडा पुराण के चक्कर में ,बलभद्र भी कुछ अनमने से दिखा रहे थे पर शो नहीं कर रहे थे की कही दादा नाराज न हो जाये ,ओ ले जुतियाये ..........सो डर के मरे हा हु बीच बीच में कह रहे थे
उधर वो खजुहा कुत्ता भी अपनी तरफ से फुल तैयारी में था कुछ छिप कर वो ऐसा बैठ था की बस रामखिलावन इसकी पहुच में आये नहीं की उअसने धार कटा भले ही दो चार डंडे घाल जाये ,डंडा पुराण चल भी रहा है डंडे की परशादी ही तो खाने को मिलेगी ,वो भी दम साधे पुराण सुनाने वाला तीसरा श्रोता था ,यह बात अलग है की उसके डंडा पुराण सुनाने का प्रयोजन दूसरा ही था
क्रमशः ...........
Wednesday, June 23, 2010
रामखिलावन कहिन .......डंडा पुराण
डंडे के बिना झंडे का कोई महत्व नहीं है बच्चा ,झंडा अपने आप में एक कपडा मात्र है पर वह ,जब डंडा के सहारे लहराता है तो वह झंडा कहलाता है क्यों बच्चा समझे ,दोनों इस बार एक साथ बोले अह्ह्ह ......सत्य वचन सत्य वचन जय हो जय हो............सामने रखी शालिग्राम की गौटेया इस बीच अपने मूल स्थान को छोड़ चुकी थी और ठ्नगते ठ्नगते कुछ दूर जा पड़ी थी उसके ऊपर रखे फूल और अकझत अपनी अपनी जगह बना कर दीन हीन मुद्रा में पड़े थे ,प्रवचन जारी था .... हे वत्स ,सुनो कुछ झंडे ऐसे होते है जो एक बार डंडे में घुसे नहीं की फिर मरते दम तक बाहर नहीं निकलते फट- फूटा जायेंगे, पर दामन नही छोड़ेंगे कल ही संगम में टिके सात फूल वाले पण्डे का झंडा ,अपने डंडे से बोल रहा था खूब साथ निभाया भाई , रामखिलावन ऐसे बता रहे थे जैसे वे झंडे और डंडे की भाषा जानते हो शनिचर को कुछ शक हुआ पर चुप रहा ये कब सीख आये ये भाषा विज्ञानं ,शनिचर का यह विचार रामखिलावन को शंदेह की परिधि में ले ही आया था की ,तभी बुठाऊ बोल पड़े हे वत्स जिस प्रकार बिना शरीर के आत्मा का कोई अस्तित्व नही है बिना आत्मा के शरीर का कोई अस्तित्व नहीं है ठीक उसी प्रकार बिना डंडे के झंडे का कोई अस्तित्व नहीं होता अब तक बलभद्र जो पालथी मारे प्रवचन की मार झेल रहे थे , के पाव में झुनझुनी चठ गयी थी और उधर शनिचर तितुर लड़ने वाली मुद्रा में आ गए थे यानि की उनकी एक नश कभी भी दगा देने की स्थिति में आ गयी थी ,वो मौका देख लघुशंका से निवृत होना चाह रहा था पर ,गुरु शिष्य की परम्परा बीच में आ रही थी ,जिसका बोझा इन दोनों के ऊपर टिका था सो दोनों अपनी अपनी टिकाये सुन रहे थे ,जब की शरीर के कुछ अंग सुनते सुनते सुन्न हो चले थे आखिर गुरु शिष्य परम्परा भी तो कुछ चीज होती है मायने रखती है ,इस परम्परा को निभाने में शनिचर खुद निपटे जा रहे थे पर क्या करते ...
डंडा पुराण के बीच शनिचर चल दिए खेत की तरफ .............जब वे हो..... हा ,कर, आये तब तक तीन चार अध्याय समाप्त हो गए थे
जो चल रहा था उसे उसने सुनना सुरु किया ,रामखिलावन कह रहे थे कुछ लोग ,कुछ लोगो के डंडा डाल देने की विद्या जानते है जिसका वे लोग यदा कदा प्रयोग भी करते रहते है पर अब इस विद्या का उपयोग कम दुरूपयोग ज्यादा होने लगा है ,कुछ लोग डंडा डालने के बाद डंडा निकालते नहीं है जिससे ,जिसमे डंडा डाला जाता है तकलीफ में आ जाता है और वह तिरझा-तिरझा चलने पर मजबूर हो जाता है यह प्रथा ठीक नहीं है यदि किसी के डंडा डाला भी जाये तो सही समय में निकाल भी लिया जाये नहीं तो स्थिति नियंत्रण के बाहर भी हो सकती है ,आज कल राजनीती में एक पार्टी दूसरी पार्टी के डंडा डाले ही रहती है ,यह एक फैशन सा हो चला है ,कोई भी फैशन बहुत दिन नहीं चलता ,पर यह साला डंडा डालने का चलन शदियों पुराना है ,हर युग में कोई न कोई किसी न किसी के डंडा डाले ही रहा है ,इतिहास गवाह है ,इतिहास की किताबे डंडा डालने और डलवाने वालो से भरी पड़ी है ,किसने किसके किस सन में डंडा डाला था याद रख पाना विद्यार्थियों के लिए मुश्किल कर देता है ,डंडा क्यों डाला और कहा डाला यह याद रखना तो लोहे के चने चबाने जैसा है ,कुछ लोगो का यह सोच हो सकता है की यह सब भद्र नहीं है ,डंडे के ऊपर यह नहीं लिखा जाना चाहिए जिससे अश्लीलता झलकती हो ,अश्लीलता डंडे में नहीं है और न लिखने में ये तो आपके दीमक का फितूर है जो आप को सही लगता है वही भर सत्य है बाकि सब झूठ ,भैया कोई भी लल्लू यह दावे के साथ यह नहीं कह सकता की यही सत्य है
हे वत्स सुनो .और दूसरो को भी सुनाओ ...........
क्रमश ....................
Monday, June 21, 2010
कहा हो मोहन प्यारे
Saturday, June 19, 2010
Friday, June 18, 2010
Thursday, June 17, 2010
गैस है तो रिसेगी ही
बहुत दिनों बाद आज रामखिलावन के चक्कर में बलभद्र पड़े ,माहौल आन मिलो सजना सा हो चला था ,बलभद्र रामखिलावन से पूछ रहे थे दादा गैस और हवा में क्या अंतर होता है सुनो इस तरह के ज्वलंत प्रश्न हमसे न पूछा करो कितनी बार कहा है और तुम हो की सुधरने का नाम नहीं ले रहे रहे हो ,फिर वही लफड़े वाले कश्चन आनषर सुनो ये राम लीला बंद करो और सुनो चुपचाप पालथी मार के बैठो नहीं तो andarshan दर्शन दे देगा और फिर अंतर्ध्यान हो जायेगा ,मरे मरे फिरोगे फिर ,इन्कलाब जिंदाबाद करते ,जो हमसे टकराएगा चूरचूर हो जायेगा खुद चुर चुर हो गए है चिलाते चिलाते ये नहीं दिख रहा है उन्हें खुद इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे है और जिंदगी फास हो गयी है बॉस की न बोलते बन रहा है न चिल्लाते
जब गैस और हवा में फर्क ही देखना है तो सुन जो फर्क हिंदुस्तान और अमेरिका में है वही फर्क गैस और हवा में है ,समझा गैस हिंदुस्तान में निकलती है और हवा अमेरिका में बहती है ,अमेरिका में बहने वाली हवा हिंदुस्तान आते आते गैस में बदल जाती है और फिर निकल भागती है हवा जब अमेरिका में बहती है तो वह मंद मंद बहती है मुस्काती है महकती है मदमस्त करती है और वही जब सात समुन्दर पार कर हिंदुस्तान आती है तो थक जाती है सफ़र भी लम्बा है थक थूका कर सो जाती है उठती है तो गैस के रूप में निकलती है विभस्त रूप में अस्त्वस्त कर देती है गंधाती है लोगो को समूचा लील लेती है उसके लीलने से जो बचते है वो इन्कलाब जिंदाबाद करते है गैस निकल कर फिर अमेरिका पहुच जाती है वहा पहुच फिर अपने मूल स्वरुप हवा में बहने लगती है मंद मस्तानी । गैस जो हिंदुस्तान में लोगो की हवा निकाल चुकी होती है अमेरिका में मंद मंद बहती है ,जहा से निकलती है वह स्थान दर्शनीय हो जाता है निकालने वाले अंतर्ध्यान हो जाते है हमारे देश के अमरीकी पण्डे दान दक्झिना ले कर जजमान की विदाई कर देते है जाओ जाओ अपने देश ये देश पराया है अपने देश में जा कर बहो फिर जब निकलना हो तब आना ,फिर निकलना फिर नजराना देना जय हो जय हो .करते पण्डे अपने को चना मुर्रा बाटने में व्यस्त कर लेते है हम आप जो अपने आप को ज्ञानी मान बैठे है महा ज्ञानियों के चक्कर में सुध बुध खो खा कर जिंदाबाद- जिंदाबाद ,मुर्दाबाद -मुर्दाबाद के मंत्र गुनगनाने- भुनभुनाने लगते है
सुना बलभद्र हवा और गैस में क्या अंतर होता है ?
बलभद्र को जैसे सब कुछ समझ में आ गया था के भाव चहरे पर उतराने लगे थे
दादा हवा बहती क्यों है और गैस निकलती क्यों है क्या गैस बह नहीं सकती और हवा निकल नहीं सकती ?
बेटा सब कुछ हो सकता है समय और परिस्थिति के साथ सब बदला बदली हो सकती है युग के साथ जैसे सब बदलता रहता है मन बदलते है तन बदलते है भाव भंगिमाए बदलती है मौसम बदलते है ऐसे ही गैस हवा में और हवा गैस में बदल सकती है ,हा हा दादा समझ में आया .............जैसे हम मुह से या नाक से हवा लेते है और पिछवाड़े से गैस भो से या पो से निकालते है कुछ लोग तो बिना आवाज के भी हवा को गैस में बदल देते है क्या कमाल करते है किसी को कुछ पता भी नहीं चलता और हवा गैस में बदल जाती है और निकल कर फिर हवा में बदल जाती है है न कमाल ..........पंडो पुरोहितो को भी पता नहीं चल पता नहीं तो जिंदाबाद मुर्दाबाद भुनभुनाने लगते क्या बात है दादा मान गए ..........
suno
गैस