Wednesday, June 23, 2010

रामखिलावन कहिन .......डंडा पुराण

रामखिलावन अपने दोनों प्रिय शिष्यों बलभद्र और शनिचर को डंडा -पुराण पर व्याखा सुना रहे थे ,कह रहे थे डंडा बेमिशाल है ,पुलिस हमेशा डंडे को अपने साथ रखती है ,जिस प्रकार बनिया बक्काल लझमी जी सदा सहाय रहे चिलाते रहते है ये बात अलग है की लक्झमी जी इन चुतियो के चक्कर में न फस कर अमरीका में पाव तोड़ कर विराजमान हो गयी है पर इन को क्या पता ससुरे बिना सुर ताल के सदा सहाय रहे सहाय रहे भुनभुनाते गुनगुनाते रहते है सोचते होगे ससुरे कभी न कभी तो मैया सुनेगी उसकी दरबार में देर है पर अंधेर नहीं है उसी प्रकार पुलिस भी डंडा सदा सहाय का नारा नरियाती रहती है डंडे का अपना महत्व है जग जाहिर है बापू का फोटू बिना डंडे के अधुरा अधुरा लगता है सारी दुनिया डंडे वाले नेता को बापू के नाम से जानती है कोई शक ..........नहीं दादा, सत्य वचन, सत्य वचन अहा ....हा .... क्या बात है जय हो जय हो दोनों महानुभाव क्रमशः खिसनिपोरते हुए प्रश्नता की मुद्रा में भाव विभोर होते हुए बोले
डंडे के बिना झंडे का कोई महत्व नहीं है बच्चा ,झंडा अपने आप में एक कपडा मात्र है पर वह ,जब डंडा के सहारे लहराता है तो वह झंडा कहलाता है क्यों बच्चा समझे ,दोनों इस बार एक साथ बोले अह्ह्ह ......सत्य वचन सत्य वचन जय हो जय हो............सामने रखी शालिग्राम की गौटेया इस बीच अपने मूल स्थान को छोड़ चुकी थी और ठ्नगते ठ्नगते कुछ दूर जा पड़ी थी उसके ऊपर रखे फूल और अकझत अपनी अपनी जगह बना कर दीन हीन मुद्रा में पड़े थे ,प्रवचन जारी था .... हे वत्स ,सुनो कुछ झंडे ऐसे होते है जो एक बार डंडे में घुसे नहीं की फिर मरते दम तक बाहर नहीं निकलते फट- फूटा जायेंगे, पर दामन नही छोड़ेंगे कल ही संगम में टिके सात फूल वाले पण्डे का झंडा ,अपने डंडे से बोल रहा था खूब साथ निभाया भाई , रामखिलावन ऐसे बता रहे थे जैसे वे झंडे और डंडे की भाषा जानते हो शनिचर को कुछ शक हुआ पर चुप रहा ये कब सीख आये ये भाषा विज्ञानं ,शनिचर का यह विचार रामखिलावन को शंदेह की परिधि में ले ही आया था की ,तभी बुठाऊ बोल पड़े हे वत्स जिस प्रकार बिना शरीर के आत्मा का कोई अस्तित्व नही है बिना आत्मा के शरीर का कोई अस्तित्व नहीं है ठीक उसी प्रकार बिना डंडे के झंडे का कोई अस्तित्व नहीं होता अब तक बलभद्र जो पालथी मारे प्रवचन की मार झेल रहे थे , के पाव में झुनझुनी चठ गयी थी और उधर शनिचर तितुर लड़ने वाली मुद्रा में आ गए थे यानि की उनकी एक नश कभी भी दगा देने की स्थिति में आ गयी थी ,वो मौका देख लघुशंका से निवृत होना चाह रहा था पर ,गुरु शिष्य की परम्परा बीच में आ रही थी ,जिसका बोझा इन दोनों के ऊपर टिका था सो दोनों अपनी अपनी टिकाये सुन रहे थे ,जब की शरीर के कुछ अंग सुनते सुनते सुन्न हो चले थे आखिर गुरु शिष्य परम्परा भी तो कुछ चीज होती है मायने रखती है ,इस परम्परा को निभाने में शनिचर खुद निपटे जा रहे थे पर क्या करते ...
डंडा पुराण के बीच शनिचर चल दिए खेत की तरफ .............जब वे हो..... हा ,कर, आये तब तक तीन चार अध्याय समाप्त हो गए थे
जो चल रहा था उसे उसने सुनना सुरु किया ,रामखिलावन कह रहे थे कुछ लोग ,कुछ लोगो के डंडा डाल देने की विद्या जानते है जिसका वे लोग यदा कदा प्रयोग भी करते रहते है पर अब इस विद्या का उपयोग कम दुरूपयोग ज्यादा होने लगा है ,कुछ लोग डंडा डालने के बाद डंडा निकालते नहीं है जिससे ,जिसमे डंडा डाला जाता है तकलीफ में आ जाता है और वह तिरझा-तिरझा चलने पर मजबूर हो जाता है यह प्रथा ठीक नहीं है यदि किसी के डंडा डाला भी जाये तो सही समय में निकाल भी लिया जाये नहीं तो स्थिति नियंत्रण के बाहर भी हो सकती है ,आज कल राजनीती में एक पार्टी दूसरी पार्टी के डंडा डाले ही रहती है ,यह एक फैशन सा हो चला है ,कोई भी फैशन बहुत दिन नहीं चलता ,पर यह साला डंडा डालने का चलन शदियों पुराना है ,हर युग में कोई न कोई किसी न किसी के डंडा डाले ही रहा है ,इतिहास गवाह है ,इतिहास की किताबे डंडा डालने और डलवाने वालो से भरी पड़ी है ,किसने किसके किस सन में डंडा डाला था याद रख पाना विद्यार्थियों के लिए मुश्किल कर देता है ,डंडा क्यों डाला और कहा डाला यह याद रखना तो लोहे के चने चबाने जैसा है ,कुछ लोगो का यह सोच हो सकता है की यह सब भद्र नहीं है ,डंडे के ऊपर यह नहीं लिखा जाना चाहिए जिससे अश्लीलता झलकती हो ,अश्लीलता डंडे में नहीं है और न लिखने में ये तो आपके दीमक का फितूर है जो आप को सही लगता है वही भर सत्य है बाकि सब झूठ ,भैया कोई भी लल्लू यह दावे के साथ यह नहीं कह सकता की यही सत्य है
हे वत्स सुनो .और दूसरो को भी सुनाओ ...........
क्रमश ....................

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