Thursday, June 24, 2010

डंडा पुराण -2

रामखिलावन ,व्यास गादी से उतरे,और खरामा खरामा ,कुछ दूर लगी झाड़ियो के पीछे उकडू बैठने ही वाले थे ,जहा पहले से ही एक खजुहा कुत्ता दीन दुनिया से दूर अपनी खुजलाहट दूर करने में व्यस्त था ,रामखिलावन के पद चाप सुन मन ही मन गरियाने लगा , ससुरे यहाँ भी मरने चले आये कौन है ,एक बार तो उसका मन हुआ की गुर्राए पर ,हुआ यु की उसके गुर्राने पहले ही उसके ऊपर रामखिलावन के मूत्र विसर्जन की धार आ गिरी ,लडखडा के उठने और दुम दावा के निकल लेने के अलावा उसे कोई और चारा नहीं दिखा , उसने अपनी भलाई भी इसी में समझी सो निति के अनुसार उसने काम किया, पर मन में तय कर लिया की देर सबेर ससुरे रामखिलावन को साइड पोज देना है
रामखिलावन हल्के हो वापस लौट चले ,इस बीच बलभद्र और सनीचर भिड़े हुए थे की या ससुरी डंडा पुराण कब ख़त्म होगा ,कुछ परशादी वरशादी की भी तो बनती है ,पर कुछ दिख नहीं रहा है बस पेले जा रहे प्रभु ,डंडा पुराण
अब तक रामखिलावन ने अपना आसन ग्रहण कर लिया ,दोनों श्रोता करते क्या न करते फिर विश्राम की अवस्था में बैठ गए रामखिलावन बोले हे वत्स सुनो यह कथा पहली बार ,मैंने स्वयं जब सुनी तो मुझे भी डंडे का रहस्य और महत्व समझ में आया ,इस लिए कहता हु की सुनो और दूसरो को सुनाने का फल लूटो ,लुट सके तो लुट नहीं तो अंत कल पश्तायेगा जब प्राण जायेंगे छुट ,ये कोई रेल गाड़ी नहीं छुट रही जो कल फिर मिल जाएगी ,प्राण छूटे सो छूटे ठुठे नहीं मिलेंगे फिर की कहा गए बेटा ,इस लिए ध्यान लगा कर सुन ........जो सुनाया जा रहा है
शनिचर मन ही मन सोच रहा था की कहा चुतियाई में फस गए ,डंडा पुराण ,कंडा पुराण के चक्कर में ,बलभद्र भी कुछ अनमने से दिखा रहे थे पर शो नहीं कर रहे थे की कही दादा नाराज न हो जाये ,ओ ले जुतियाये ..........सो डर के मरे हा हु बीच बीच में कह रहे थे
उधर वो खजुहा कुत्ता भी अपनी तरफ से फुल तैयारी में था कुछ छिप कर वो ऐसा बैठ था की बस रामखिलावन इसकी पहुच में आये नहीं की उअसने धार कटा भले ही दो चार डंडे घाल जाये ,डंडा पुराण चल भी रहा है डंडे की परशादी ही तो खाने को मिलेगी ,वो भी दम साधे पुराण सुनाने वाला तीसरा श्रोता था ,यह बात अलग है की उसके डंडा पुराण सुनाने का प्रयोजन दूसरा ही था
क्रमशः ...........

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