बादल आये गांव में , हुई खूब बरसात
दिन तो सारा भीग गया भीगी सारी रात
नीम निबौरी खिल उठे ऐसी थी सौगात
छानी छपर चूने लगे जह तह रखी परात
पोखर डबरे भर गये नदियां में थी बाढ़
छप छप करते आये ओढ़े शाल असाढ़
फुहारे जो रिमझिम रही बनी थी वो घनघोर
दिन भर बरसी सांझ हुई फिर होने को भोर
छाता ले मुनिया चली छप छप करते पांव
सारी धूल से धुल गया वो पुरखो वाला गांव
रात ओसारी में कटी दिन में पहुचे खेत
भिनसारे की ओठनी रही ओउघायी लेत
Tuesday, August 31, 2010
Tuesday, August 24, 2010
जीरो बटा सन्नाटा......
मनौतियो और मान्यताओ को ,लादे शनिचर जीवन भर चले पर भाग ना पंहुचा लधे शुन्य न कुछ ले के आये थे न कुछ ले के जायेंगे उनके मन में यह विचार आता है की ससुरे जीवन भर घास छिलते रहे का बड़े असमंजस में है चलती बेरिया करे तो करे का जो सुना -सुनाया, सुना ,उन्होंने जीवन भर ,सो किया अब उम्र जब, चला चली की हो चली तो लगे है हिसाब किताब करने , पर बार -बार करने पर भी उनका हिसाब किताब सब गड्डम- गुड्डा हो जाता है पिसाब जरुर निकल आता है इस मेहनत पर सो अलग समस्या है ..ससुरी बार बार जोडने घटाने के बाद भी हिसाब लध्धे शुन पर जा टिकता है शनिचर कनफुजिया गए है शनिचर हलकान है किससे चलती बेरिया पूछे पाछे बाल सखा जो रहे ससुरे पहले ही निपुर-निपुरा गए है जो एक दो बचे है कौनो काम के नही ,बिशेषर है कान का पर्दा फाड़े बैठे है साल भर से लौंडे है , उनके तीन धोऊ चार पर काहे को सुने कि बुठापे में कुछ सुभीता दे दे बाप को कहते है की बुठाईदार सुन सुना के का करेंगे कक्कू जीवन भर तो सुने नही किसी की अब जरा विश्राम कर ले हम सोच रहे है काहे को जाते जवाते राडी दुखाई सुने, यही सुभीता का कम है बताओ .....
शनिचर कहते है मान्यता , मतलब कुछ ऐसा झालाम्झाला ,धारणाये और अनुमान , कुछ ऐसी बाते जिनका सर पैर न हो पर जिस पर मन विश्वास करता है लेकिन जो सच न हो ,सच लगती भर हो क्योकि आस पास के सभी जन उन बातों पर विश्वास करते है सो देखा देखी हम भी करने लगते है मान्यता का अर्थ ही है जो नही है लेकिन हम सब मान लिए है मान्यता चोरकट है जाली है जो अज्ञान के अधेरे में चलता है ज्ञान के प्रकाश में नही
शनिचर ने इस चक्कर में जीवन भर भूले की अब चलाचली की बेला में हिसाब किताब सब गड्ड -मड्ड स्वर्ग नर्क की मान्यता जिसकी कोई भौगोलिक स्थिती नही है ,इस जन्म का फल अगले जन्म में मिलेगा ,सुख केवल अमीरो की बपौती है ,पैसा किस्मत से मिलता है ,पूजा न करेंगे तो भगवन नाराज हो जायेंगे फिर ले लेना बेट्टा सरस्वती जी घर घर पूजी जाती है पर नोबल पुरुस्कार पश्चमी देशो के नाम ,घर घर लक्ष्मी जी विराज मान है पर वो महरानी पाव तोड़ के अमरीका में बैठी है ....हम हिंदू ,मुसलमान सिख ,ईसाई की लड़ाई ही लड़ते रहे जीवन भर का मिला भैया .....
मूल मान्यता हम अपने आप को जीवन भर शरीर समझे रहे ,यह मेरा शरीर है ,यानी मै इससे अलग हुआ जब हमारे कपडे फट जाते है तब हम यह नही कहते की हम फट गए है लेकिन शरीर में दर्द होते ही कहते है दर्द हुआ यह है मूल मान्यता हम कपडे नही ,कपडे का उपयोग करने वाले है हम शरीर नही शरीर को चलाने वाले वाहक है ऐसी कुछ कुछ बाते शनिचर के मन में उपद्रव किये हुए है ,का करे किससे कहे और का कहे कोई इस भीड़ में सुनता नही दिखाई देता सब लगे है जीने में ,जीवन क्या है ,जीना क्या है वो ही जाने ...........शनिचर तो कहते है सब हिसाब किताब जीरो बट्टा सन्नाटा है भैया ..............
शनिचर कहते है मान्यता , मतलब कुछ ऐसा झालाम्झाला ,धारणाये और अनुमान , कुछ ऐसी बाते जिनका सर पैर न हो पर जिस पर मन विश्वास करता है लेकिन जो सच न हो ,सच लगती भर हो क्योकि आस पास के सभी जन उन बातों पर विश्वास करते है सो देखा देखी हम भी करने लगते है मान्यता का अर्थ ही है जो नही है लेकिन हम सब मान लिए है मान्यता चोरकट है जाली है जो अज्ञान के अधेरे में चलता है ज्ञान के प्रकाश में नही
शनिचर ने इस चक्कर में जीवन भर भूले की अब चलाचली की बेला में हिसाब किताब सब गड्ड -मड्ड स्वर्ग नर्क की मान्यता जिसकी कोई भौगोलिक स्थिती नही है ,इस जन्म का फल अगले जन्म में मिलेगा ,सुख केवल अमीरो की बपौती है ,पैसा किस्मत से मिलता है ,पूजा न करेंगे तो भगवन नाराज हो जायेंगे फिर ले लेना बेट्टा सरस्वती जी घर घर पूजी जाती है पर नोबल पुरुस्कार पश्चमी देशो के नाम ,घर घर लक्ष्मी जी विराज मान है पर वो महरानी पाव तोड़ के अमरीका में बैठी है ....हम हिंदू ,मुसलमान सिख ,ईसाई की लड़ाई ही लड़ते रहे जीवन भर का मिला भैया .....
मूल मान्यता हम अपने आप को जीवन भर शरीर समझे रहे ,यह मेरा शरीर है ,यानी मै इससे अलग हुआ जब हमारे कपडे फट जाते है तब हम यह नही कहते की हम फट गए है लेकिन शरीर में दर्द होते ही कहते है दर्द हुआ यह है मूल मान्यता हम कपडे नही ,कपडे का उपयोग करने वाले है हम शरीर नही शरीर को चलाने वाले वाहक है ऐसी कुछ कुछ बाते शनिचर के मन में उपद्रव किये हुए है ,का करे किससे कहे और का कहे कोई इस भीड़ में सुनता नही दिखाई देता सब लगे है जीने में ,जीवन क्या है ,जीना क्या है वो ही जाने ...........शनिचर तो कहते है सब हिसाब किताब जीरो बट्टा सन्नाटा है भैया ..............
Saturday, August 21, 2010
तारो की बरतो वाला गांव
तारो की बारातों वाला गाँव ,यादो की बारातों वाला गाँव
नानी की कहानी वाला गाँव, काका के ककहरा वाला गाँव
नीम की निबौनी वाला गाँव, आँगन ओ ओसारी वाला गाँव
कीचड़ ओ कांदो वाला गाँव, नदियां में नावों वाला गाँव
महुआ ओ आमो वाला गाँव, खेत ओ खलिहानो वाला गाँव
पूजा ओ परछन वाला गाँव, तीज ओ त्योहारों वाला गाँव
मेल ओ मनुहारो वाला गाँव, छंद ओ मकरंद वाला गाँव
हँसी ओ ठिठौली वाला गाँव, झगडे ओ झासें वाला गाँव
पंच ओ परपंचो वाला गाँव, नेग ओ विदाई वाला गाँव
चौपड ओ चौपाल वाला गाँव, पान ओ पतौखी वाला गाँव
नन्द ओ भौजाई वाला गाँव, दिया ओ बाती वाला गाँव
ज्योनार ओ बियारी वाला गाँव, मस्ती ओ हुडदंग वाला गाँव
आदर ओ सम्मान वाला गाँव, नेह ओ स्नेह वाला गाँव
दुःख ओ सुख वाला गाँव, शेर ओ शियार वाला गाँव
भाजी ओ बरी वाला गाँव, बगिया ओ चिरईया वाला गाँव
बेला ओ करौदो वाला गाँव, ताल ओ तलईया वाला गाँव
नइहर ओ पीहर वाला गाँव ,मेध ओ बदरी वाला गाँव
धूल ओ पगडंडी वाला गाँव ,धूप ओ जाड़े वाला गाँव
साँझ ओ भिनसारे वाला गाँव, चाँद ओ सूरज वाला गाँव
तारो की बरतो वाला गाँव , बोलता प्रतीकों वाला गाँव
नानी की कहानी वाला गाँव, काका के ककहरा वाला गाँव
नीम की निबौनी वाला गाँव, आँगन ओ ओसारी वाला गाँव
कीचड़ ओ कांदो वाला गाँव, नदियां में नावों वाला गाँव
महुआ ओ आमो वाला गाँव, खेत ओ खलिहानो वाला गाँव
पूजा ओ परछन वाला गाँव, तीज ओ त्योहारों वाला गाँव
मेल ओ मनुहारो वाला गाँव, छंद ओ मकरंद वाला गाँव
हँसी ओ ठिठौली वाला गाँव, झगडे ओ झासें वाला गाँव
पंच ओ परपंचो वाला गाँव, नेग ओ विदाई वाला गाँव
चौपड ओ चौपाल वाला गाँव, पान ओ पतौखी वाला गाँव
नन्द ओ भौजाई वाला गाँव, दिया ओ बाती वाला गाँव
ज्योनार ओ बियारी वाला गाँव, मस्ती ओ हुडदंग वाला गाँव
आदर ओ सम्मान वाला गाँव, नेह ओ स्नेह वाला गाँव
दुःख ओ सुख वाला गाँव, शेर ओ शियार वाला गाँव
भाजी ओ बरी वाला गाँव, बगिया ओ चिरईया वाला गाँव
बेला ओ करौदो वाला गाँव, ताल ओ तलईया वाला गाँव
नइहर ओ पीहर वाला गाँव ,मेध ओ बदरी वाला गाँव
धूल ओ पगडंडी वाला गाँव ,धूप ओ जाड़े वाला गाँव
साँझ ओ भिनसारे वाला गाँव, चाँद ओ सूरज वाला गाँव
तारो की बरतो वाला गाँव , बोलता प्रतीकों वाला गाँव
महुआ हो गया मन .........
फागुन आया गांव में महुआ हो गया मन
अमलतास की डाल से बोले हीरा मन
अभी अभी तो पास थे अभी अभी है दूर
मन से अब भी पास है तन से कोशो दूर
छिप छिप कर मिलते रहे अब तक कितनी बार
गुलमोहर की छाव में पकड़ गए कचनार
गली गली में राधाये गली गली में कृष्ण
मन ही मन उत्तर मिले नही पूछने प्रश्न
वैसे तो सब भूल गए फिर भी है कुछ याद
झरने जैसी थी हँसी मिसरी जैसी बात
अमलतास की डाल से बोले हीरा मन
अभी अभी तो पास थे अभी अभी है दूर
मन से अब भी पास है तन से कोशो दूर
छिप छिप कर मिलते रहे अब तक कितनी बार
गुलमोहर की छाव में पकड़ गए कचनार
गली गली में राधाये गली गली में कृष्ण
मन ही मन उत्तर मिले नही पूछने प्रश्न
वैसे तो सब भूल गए फिर भी है कुछ याद
झरने जैसी थी हँसी मिसरी जैसी बात
Thursday, August 12, 2010
झेलो झेलो .............
शनिचर कहते है, झेलना, मानव स्वभाव यदि मानव दानव न बन जाये तो वह अपने इस स्वाभाव को जन्म से म्रत्यु तक निभाता है अपनी स्वार्थ सिद्दी के लिए झेलना लाजमी भी है जैसे पैदल चलना टहलना स्वास्थ के लिए इन लोगो से जो घूमते टहलते है उनसे धीरे से पूछो तो जोर से बताते है ,घुमने ,टहलने केलाभ ,वे लगे हाथ बता देते है गुण भी कोई खूसट न हुआतोशनिचर कहते है यदि कोई जीवन भर पैदल चले /घुमे तो उसे बबासीर भी हो सकता है कभी अलग से शनिचर इस नाजुक विषय पर एवररेडी टार्च से प्रकाश डालेंगे
खैर चर्चा हो रही है झेलने पर ,रामखिलावन खटिया में अपनी चिरपरिचित मुद्रा में उतान पड़े है शनिचर प्रकास डाल रहे है बगल में बलभद्र उकडू विराजमान है तीनो की तिकड़ी के अलावा चौथे आप है ,तो सुनिए शनिचर क्या कह रहे है ,दादा हम अपने स्वभाव को कैसे बदल सकते है आम के पेड़ में जामुन कहा लगती है ,जिसका जो स्वभाव है उसी के अनुसार वह जीवन भर एक्ट करता है फिर मर मुरा जाता है चना मुर्रा की तरह हमारे यहाँ मानव नाम के प्राणी की बेधड़क पैदावार है बिना खाद पानी के अच्छी फसल तैयार हो जाती है लोग बाग़ इस विषय पर एक दुसरे को मदद करते भी देखे गए है शनिचर कहते है की मानव ,जीवन भर अपना धर्म निभाता है और निभाते निभाते ,निकल लेता है उसकी जगह कुछ और लोग पैदा हो जाते है म्रत्यु के डर से जन्म नहीं रुकते ऐसा शनिचर का कहना है
भारत भूमी में झेलने की प्रथा ,परम्परा युगों युगों से अहिर्निश चली आ रही है , जिसे हम आज भी निभा रहे है निभा इस लिए रहे है की न निभाने का दम नही है ,न निभाए तो निपूर न जाये ऐसा शनिचर कहते है आगे कहते है की हमने दुसरे रीति रिवाज संस्कार ,सभ्यता हिंद महा सागर में बड़ी सी चट्टान में बांध कर डूबा दिए है झेलने भर की प्रथा लिए हम घूम रहे है
यदि झेलने को खेल के रूप में लिया जाये और उसे कामनवेल्थ /ओलम्पिक आदि में खेला जाये तो हमे स्वर्ण के नीचे कोई पदक नही मिल सकता यह ध्रुव सत्य है झेलने ,झेलवाने में हमारा कोई सानी इस धरा पर नही धरा है शनिचर बोले
झेलने के लिए हम सदा सदा से सदैव तैयार रहते है झेलने के कण हमारे शरीर में हिमोग्लोबीन की तरह रहते है झेलने का हमारा गौरवशाली इतिहास रहा है जिसे हमने मेंटेन कर रखा है इतिहास के पन्ने पलटो पल्ट्टू राम झेलने की गौरव गाथाओं से भरे पड़े है झेलने की हमारी विरासत जो हमें मिली है ज्यो की त्यों हम देश की नई फसल को सौपने का विचार रखते है
आज के परिपेक्ष में जनता ,नेता जी को झेल रही है ,नेता जनता को एक दुसरे को दोनों समयानुसार सुविधानुसार झेल रहे है जनता महगाई झेल रही है ,देखिये जब एक रुपिया का दस सेर घी मिलता था तब भी वो महगा लगता था और अब जब पांच सौ रूपया का एक किलो मिल रहा है तो भी झेल रहे है अग्रेजो को भी खूब झेला इस देश ने आजादी के पहले ,एक भोले भंडारी है भगवान शंकर ,विष ही झेल गए ,झेलने में अमरत्व के गुण छिपे है ऐसा भी शनिचर कहते है कुछ लोग इसी लिए भी जीवन भर एक दुसरे को झेलते रहते है अमर तो होते नहीं मर जरुर जाते है इस चक्कर में
स्कुल में लौड़े मास्टर को झेल रहे है मास्टर लौड़ो को ,ऑफिस में अफसर ,मुलाजिमो को ,मुलाजिम अफसर को .कौन किसे और क्यों झेल रहा है ,कब से झेल रहा है ,कब तक झेलेगा बीच में पटक तो नहीं देगा ये सब शोध के विषय है शनिचर कहते है चोर पुलिस के साथ साथ उसके डंडे को भी झेल रही है एक साथ दो दो को ,कभी कभी इस देश में एक साथ कियो को झेलना पड़ता है ये तो भला हो की हम सब इसके आदी है नही तो बैंड बज जाये हमारी सड़के चालीस चक्के वाले ट्रेलर को झेलती है जनता गड्डो वाली सडक को
इस देश में हम शोकिया खेल खेल में कभी बाढ़ तो कभी सूखा कभी भूकम्प को भी झेलते है पहले पुरखे कहते है की हम लोग अपने जमाने में प्लेग ,हैजा ,चेचक ,टीवी और न जाने क्या क्या झेलते रहे है ,मतलब झेलने की हमारी स्वस्थ परम्परा रही है जिसे हम ज्यो का त्यों निभा रहे है
झेलना शाश्वत है हम और हमारा देश झेलने में विश्व में अपना एक अलग स्थान रखता है और अपने स्थान से हिलता डुलता भी नही है ,गुरुत्वाकर्षण के सिधान्तो का पालन करता है इस देश में जो जितना बड़ा झेलू उसका कद भी उतना बड़ा ,व्यक्तित्व विकाश के लिए झेलुपन एक अनिवार्यता है ,बिना इस गुण के आप इस देश में कुछ नही कर सकते विकसित नही हो सकते ,विकसित नही होगे तो पीछे राह जायेंगे कोई पीछे रहना नही चाहता इस युग में ,चठ बैठ रहे है जीवन की मैराथन में एक दुसरे पर
शनिचर कहते है झेलने से शांती बनी रहती है शांती में ही विकाश होता है जो छिपा है उसे बाहर निकलना है जो ठका है उसे उघाड़ना है ,जो बिना झेलने के सम्भव नही है सो हम झेल रहे है ............झेलो झेलो ............
खैर चर्चा हो रही है झेलने पर ,रामखिलावन खटिया में अपनी चिरपरिचित मुद्रा में उतान पड़े है शनिचर प्रकास डाल रहे है बगल में बलभद्र उकडू विराजमान है तीनो की तिकड़ी के अलावा चौथे आप है ,तो सुनिए शनिचर क्या कह रहे है ,दादा हम अपने स्वभाव को कैसे बदल सकते है आम के पेड़ में जामुन कहा लगती है ,जिसका जो स्वभाव है उसी के अनुसार वह जीवन भर एक्ट करता है फिर मर मुरा जाता है चना मुर्रा की तरह हमारे यहाँ मानव नाम के प्राणी की बेधड़क पैदावार है बिना खाद पानी के अच्छी फसल तैयार हो जाती है लोग बाग़ इस विषय पर एक दुसरे को मदद करते भी देखे गए है शनिचर कहते है की मानव ,जीवन भर अपना धर्म निभाता है और निभाते निभाते ,निकल लेता है उसकी जगह कुछ और लोग पैदा हो जाते है म्रत्यु के डर से जन्म नहीं रुकते ऐसा शनिचर का कहना है
भारत भूमी में झेलने की प्रथा ,परम्परा युगों युगों से अहिर्निश चली आ रही है , जिसे हम आज भी निभा रहे है निभा इस लिए रहे है की न निभाने का दम नही है ,न निभाए तो निपूर न जाये ऐसा शनिचर कहते है आगे कहते है की हमने दुसरे रीति रिवाज संस्कार ,सभ्यता हिंद महा सागर में बड़ी सी चट्टान में बांध कर डूबा दिए है झेलने भर की प्रथा लिए हम घूम रहे है
यदि झेलने को खेल के रूप में लिया जाये और उसे कामनवेल्थ /ओलम्पिक आदि में खेला जाये तो हमे स्वर्ण के नीचे कोई पदक नही मिल सकता यह ध्रुव सत्य है झेलने ,झेलवाने में हमारा कोई सानी इस धरा पर नही धरा है शनिचर बोले
झेलने के लिए हम सदा सदा से सदैव तैयार रहते है झेलने के कण हमारे शरीर में हिमोग्लोबीन की तरह रहते है झेलने का हमारा गौरवशाली इतिहास रहा है जिसे हमने मेंटेन कर रखा है इतिहास के पन्ने पलटो पल्ट्टू राम झेलने की गौरव गाथाओं से भरे पड़े है झेलने की हमारी विरासत जो हमें मिली है ज्यो की त्यों हम देश की नई फसल को सौपने का विचार रखते है
आज के परिपेक्ष में जनता ,नेता जी को झेल रही है ,नेता जनता को एक दुसरे को दोनों समयानुसार सुविधानुसार झेल रहे है जनता महगाई झेल रही है ,देखिये जब एक रुपिया का दस सेर घी मिलता था तब भी वो महगा लगता था और अब जब पांच सौ रूपया का एक किलो मिल रहा है तो भी झेल रहे है अग्रेजो को भी खूब झेला इस देश ने आजादी के पहले ,एक भोले भंडारी है भगवान शंकर ,विष ही झेल गए ,झेलने में अमरत्व के गुण छिपे है ऐसा भी शनिचर कहते है कुछ लोग इसी लिए भी जीवन भर एक दुसरे को झेलते रहते है अमर तो होते नहीं मर जरुर जाते है इस चक्कर में
स्कुल में लौड़े मास्टर को झेल रहे है मास्टर लौड़ो को ,ऑफिस में अफसर ,मुलाजिमो को ,मुलाजिम अफसर को .कौन किसे और क्यों झेल रहा है ,कब से झेल रहा है ,कब तक झेलेगा बीच में पटक तो नहीं देगा ये सब शोध के विषय है शनिचर कहते है चोर पुलिस के साथ साथ उसके डंडे को भी झेल रही है एक साथ दो दो को ,कभी कभी इस देश में एक साथ कियो को झेलना पड़ता है ये तो भला हो की हम सब इसके आदी है नही तो बैंड बज जाये हमारी सड़के चालीस चक्के वाले ट्रेलर को झेलती है जनता गड्डो वाली सडक को
इस देश में हम शोकिया खेल खेल में कभी बाढ़ तो कभी सूखा कभी भूकम्प को भी झेलते है पहले पुरखे कहते है की हम लोग अपने जमाने में प्लेग ,हैजा ,चेचक ,टीवी और न जाने क्या क्या झेलते रहे है ,मतलब झेलने की हमारी स्वस्थ परम्परा रही है जिसे हम ज्यो का त्यों निभा रहे है
झेलना शाश्वत है हम और हमारा देश झेलने में विश्व में अपना एक अलग स्थान रखता है और अपने स्थान से हिलता डुलता भी नही है ,गुरुत्वाकर्षण के सिधान्तो का पालन करता है इस देश में जो जितना बड़ा झेलू उसका कद भी उतना बड़ा ,व्यक्तित्व विकाश के लिए झेलुपन एक अनिवार्यता है ,बिना इस गुण के आप इस देश में कुछ नही कर सकते विकसित नही हो सकते ,विकसित नही होगे तो पीछे राह जायेंगे कोई पीछे रहना नही चाहता इस युग में ,चठ बैठ रहे है जीवन की मैराथन में एक दुसरे पर
शनिचर कहते है झेलने से शांती बनी रहती है शांती में ही विकाश होता है जो छिपा है उसे बाहर निकलना है जो ठका है उसे उघाड़ना है ,जो बिना झेलने के सम्भव नही है सो हम झेल रहे है ............झेलो झेलो ............
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