बुलबुल ने दम तोडा , बुल ने किया उपास
कंकरीट के जंगलो तुमने किया उदास
तोता -मैना जा उड़े , अब जाने कहा पे बैठे
बलिहारी शहरी करन ,जो गांव के आंगे ऐठे
आती -जाती थी रही , गौरईया सोनचिरैया
अब तो ठुठे पेड जिनमे लगती नही बरैया
कौवा आता था लिए , मेहमानों का सन्देश
अब तो खुद ही भटक रहे देश हुआ परदेश
No comments:
Post a Comment