Wednesday, February 2, 2011

कहा है अपनापन ........

खूब गौरईया बैठती , थे आँगन और मुडेर
अब बलिहारी खिड़किया ,जो खुलती है कुछ देर
रातो में तारे गिने , और खूब बुने सपने
खाली के खाली रहे , कोई भये न अपने
रात बियारी में रहा ,घी का सोंधापन
कहा गया वो बचपना कहा है अपनापन

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