कुम्भ की कहानी से रामखिलावन रूबरू हो रहे है ,जाके कुछ पुन्य कमाना चाहते है ,फोकट में जब मिल रहा है तो क्यों छोड़ा जाये ,पाप न लग जाये । कही कोई ऐसा भी विधान न हो ,कि जो कुम्भ में न जायेगा तो बेटा मरोगे तो सीधे नरक में जाओगे लिखा हो ,फिर बिलबिलाते रहोगे ,फोकट में पुन्य मिल रहा था तो लुटा नहीं अब ससुरे हिसाब किताब में भिड़े है कि हमने इतने पुन्य किये इतने पाप ।
सो रामखिलावन बलभद्र को लिए प्रयाग के लिए रवाना हो लिए साथ में दंड कमंडल लिए ,दाड़ी तो पहले से बढ़ी थी । रेलों में रेलम रेल मची हुयी है बसों में पैर रखने की जगह नहीं है जाये तो कैसे जाये फिर भी रामखिलावन के पाँव नहीं रुके ,रुके तो प्रयाग में ही जा कर । लाखो क्या करोडो लोगो के साथ वे भी गुम गए अपनी कछनी संभाले जो की बीच बीच में दगा देने की स्थिति में आ जाती थी खैर ,राम खिलावन कुम्भ का पुन्य लूटने को आतुर चले आये ।
सो रामखिलावन बलभद्र को लिए प्रयाग के लिए रवाना हो लिए साथ में दंड कमंडल लिए ,दाड़ी तो पहले से बढ़ी थी । रेलों में रेलम रेल मची हुयी है बसों में पैर रखने की जगह नहीं है जाये तो कैसे जाये फिर भी रामखिलावन के पाँव नहीं रुके ,रुके तो प्रयाग में ही जा कर । लाखो क्या करोडो लोगो के साथ वे भी गुम गए अपनी कछनी संभाले जो की बीच बीच में दगा देने की स्थिति में आ जाती थी खैर ,राम खिलावन कुम्भ का पुन्य लूटने को आतुर चले आये ।
भिडम भाड़ ,एक दुसरे को लोग कचरे जा रहे है पर बढे जा रहे है पुन्य लूटने के चक्कर में कुछ लोग पहले ही लुट चुके है लुटे लुटाये लोग अपनी अलग पंक्ति बनाये हाथ जोड़े एक दरोगा के सामने कुछ फरियाद करने की मुद्रा में भयभीत से खड़े है ,दरोगा के चक्कर में सारे मंत्र ,तंत्र भूल भाल गए है बस दरोगा कृपानिधान से लग रहे है जो अपने हाथ में लिए डंडे को चक्र सुदर्शन सा घुमा रहे है , भोले भाले भगवान के भोले भाले भक्त सन्निपात से ग्रसित दिख रहे है ,एफ आई आर लिखने की नही बन रही थी सो नाम पता लिख लूटे लुटाये भक्तो को एक एक कर किनारे कर दिया गया जाओ भईया अब अगले कुम्भ में न दिखाना ,पुन्य कमाने के चक्कर में ये सभी शुन्य हो गए थे ,रामखिलावन धन्य हो गए प्रभु की महिमा देख कर ,लोग पभु की महिमा भर देख पाते है जीवन भर पर प्रभु को नहीं देख पाते , बलभद्र कहते है दादा हम जब जादू देखते है तो जादूगर को भी देख पाते है पर प्रभु की माया तो देखते है लेकिन प्रभु को क्यों नहीं .....इस यक्ष प्रश्न ने रामखिलावन को धर दबोचा और वे धरे रह गए का बोलते ,इस पाखण्डी संसार में जहा खंड खंड पाखंड है और हम सब भी उसी में रचे बसे है क्या कहे और क्या करे कुम्भ में भी वही सब हो रहा है जो इस संसार में हो रहा है ,कुम्भ संसार से बाहर नहीं है और न ही सन्यासी ,यहाँ भी वही छल प्रपंच है जो संसार में व्याप्त है एक एक से बढ़ कर आये है छलिया तरह तरह के नट है शठ है लूट है लुटेरे है राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट अंत काल पछतायेगा जब प्राण जायेंगे छूट ...........
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