विकास की गंगा ,रामखिलावन , भागीरथ की तरह लाना और बहाना चाहते थे पर वो थी कि सीधी सीधी बहने को तैयार नहीं थी ,टेढ़ी मेढ़ी जितना चाहो बहा लो ,बलभद्र ने भी बताया कि दादा गंगा को देखो न कहा सीधी सीधी बहती है वह भी तो टेढ़ी मेढ़ी बहती है तुम लगे हो नाहक पसीना बहाने में जब गंगा टेढ़ी मेढ़ी बहती है तो विकास भी टेढ़ा मेढ़ा होगा यह बात राम खिलावन के मन में घुस गयी और वे शांत हो गये इस देश में हर चीज टेढ़ी मेढ़ी ही होगी ।
तभी तो विकाश भी सीधा सीधा नही होता ,कोई काम भी आज सीधे तरीके से नहीं होता चाहे राशन कार्ड बनवाना हो या वोटर लिस्ट में नाम लिखना हो स्कुल में एडमिशन हो या गैस की टंकी लेनी हो ,इस देश में तिकड़म अनिवार्यता है दस प्रश्नों में पांच प्रश्न करने है किन्तु प्रथम प्रश्न अनिवार्य है साफ सफाई के दो अंक प्रथक से मिलेगे ,ऐसा ही है सब कुछ ऐसे नेक विचार से बलभद्र ने अपने स्वयं - भू देव राम खिलावन को बताया , जिससे रामखिलावन हद्प्रद हो गये ।
रामखिलावन हदप्रद थे पर बलभद्र सोच रहे थे कि वे गदगद है उसकी बात सुन कर पर रामखिलावन की कुछ कुछ गंभीर मुद्रा देख बालक बलभद्र मासूम हो गए कुछ देर माहोल शांत ही बना रहा और आगे भी बना रहता लेकिन एक कनखजूरे ने सारे माहौल को बरबाद कर दिया ससुरा रामखिलावन की कछनी में घुसा जा रहा था ,ये तो भला हो कि संत ने अपनी समाधी तोड़ी नहीं तो ...पता नहीं क्या क्या टूटता ।
टुटा तो रामखिलावन का मन है इस विकास को देख कर ,टूटे मन को लिए वे देश में भटक रहे है उन्हें अपना देश ही परदेश सा दिखने लगा है ,अपनों के बीच ही पराये से हो गए है लोग बाग है कि प्यास बुझने के बाद कुए की तरफ पीठ कर लेते है ,नदी पार कर लेने के बाद कौन नाव को लिए शहर- शहर घुमाता है ..................
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