साल भर , रामखिलावन नदारत रहे ,कहा रहे गोपनीय है , शायद उन्हें खुद ही नही मालूम की वो कहा रहे ,भटकते रहे जैसे सब भटक रहे है कोई भक्ति में कोई शक्ति में । इस बीच उन्होंने खुरदुरी दाड़ी जरुर बढ़ा ली है जिसे वो कभी कभी यु ही खजुआ लेते है ,बलभद्र का सोचना दूसरा है वो कहता है शायद जुए पड़े हो ,बेहरहाल खजुआने के बाद वो सकून महसूस करते देखे गए है ऐसे जैसे किसी राष्ट्रीय समस्या का निदान हो गया हो ।
बहुत दिनों बाद गांव पहुचने से उनकी आव भगत भी काफी हो रही है , भीड़ में किसी गुलछर्रे ने पीछे से उनकी कछनी खोलने का प्रयास किया पर सफल नही हो सका बलभद्र ने धर- धमका दो लाते अलग से दी , ससुरे जीने नही देगे , पता चला घुनघुटी था ,रामबहोर का लौड़ा ...बस यही रह गया है खुलने खुलाने का खेल इस देश में ,संसद से ले कर गांव गलियों तक इसी में व्यस्त है सब ,विकास हो रहा है सुनहरा विकास चौतरफा विकास पर उसमे हम कही नजर नहीं आते ।
विकास एक प्रक्रिया है जो धीरे धीरे होती है कभी कभी तेजी से भी विकास हो जाता है जैसे कुछ रेले पैसेन्जर होती है और कुछ मेल ,सुपर फ़ास्ट ,दुरानातो जो हर जगह नहीं रूकती निर्धारित जगहों पर ही रूकती है इसी तरह विकास भी वही वही बहुत तेज होता है और ज्यादा तर जगहों पर पैसंजर की तरह कही कही तो बिलकुल भी नहीं होता ,विकास के लिए पटरी होना ,पटरी खाना अनिवार्यता है पटरी नहीं बैठी तो विकास कहा से होगा ससुरो इत्ती सी बात समझ में आती नहीं ,चले विकास करने , तालाब खुदा नहीं की हो गए नंगे नहाने के लिए ।
देश कोई रबर का छल्ला तो है नहीं कि खीचा और विकास हो गया विकास की नीतिया होती है नियम कानूनों से विकास होता है ,विकास राम निहोर का नाती नहीं और न ही राम दुलारी की बिटिया क़ि ,पूनम
के चाँद की तरह विकसित हो जाये ।
राम खिलावन पिछले सालो में देश के विकास को ले कर चिंतित है चिंता में डूबे है अभी अभी उतराए है सो चल दिए अपने गांव की तरफ और यहाँ है कि गांव के लुच्चे उनकी कछनी खोलने में उतारू है कैसे हो विकास और किसका हो किसका न हो ये सब बाते रामखिलावन के मन में गोता खा रही है उन्होंने बलभद्र को लिया और अमराई की तरफ निकल गये .......
No comments:
Post a Comment