Thursday, May 21, 2009

hi
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Friday, May 15, 2009

यदि आप अपने को सुन्य समझते है तो आप समपुर्न्य है

Thursday, May 14, 2009













बैकुंठी के छाया चित्र हमारे और आपके अपनेपन के लिए


बैकुंठी और हम



rewa

Wednesday, May 13, 2009

कहा गए वो संस्कार

आज याद आए पुराने दिन याद आए घर छोटा था पर जगह बहुत थी पत्ता नही कहा कहा से लोग आते और रुकते सारा घर भाभी ',दद्दा सब का स्वागत खाने पीने की जरूरतों का ध्यान रखते आतिथि होते अपनापन होता अपने होते आज घर बड़े बड़े है पर जगह छोटी हो गई है जगह ईट गारे से नही बनती और न ही घर , घर बनता है संस्कारो से , कहा गए वो संस्कार ,जब की हम लोग है उन्ही घरो से ,बड़ी बड़ी बाते करते नही अघाते दूसरो पर थोस निकलना हमारा प्रिय विषय है चर्चा के प्राण है छोटा सा जीवन फ़िर क्यो इतनी भाग दोड़ कहा जाओगे भाग के क्या छूना चाहते हो क्या पाना चाहते हो जो है उसे तो जी नही रहे जो है वही बहुत है अपनों की सीमा में कब तक बधे रहोगे कभी बाहर निकल कर के तो देखो ,

Tuesday, May 12, 2009


होली का दिन और बाबा नामदेव सोनवाने दिलीप ने जिंदगी को पास से निहारा और बोले मेरे घर आना जिंदगी और फ़िर ना जाना जिंदगी हमेशा के लिए होली के दिन क्यो पागल हो जाते है लोग बाग या जिन्दा हो जाते है रंगों के साथ जिंदगी भी रंगीन हो जाती है फ़िर क्यो लोग रंगों से सम्बन्ध बनाते ?

Monday, May 11, 2009

रोज की तरह आज फ़िर सूरज ऊगा ऊगता तो वो है जो बोया जाता है फ़िर क्या है ये सब क्या कुछ बिना बोए ऊगता है प्यार के बीज भी तो बोने होते है बिना बोए क्या प्रेम पल्वित होता है जो उगता नही मरता नही वही तो जो जन्मता नही वो मरेगा क्या जन्म के पहले भी सूरज और म्रत्यु के बाद भी सूरज रहेगा और था फ़िर उगाना ऊगना क्या है ?

Friday, May 8, 2009

कुछ अनकहे बोल मन बोल नही पाया ताने बाने में बधा मन कब मुक्त होगा? जब मुक्त होगा तब क्या होगा ?किसे पता है ? शब्दों के माया जाल में मन भरमाया है किसके हाथ में है डोर हमारी आपकी कुछ पता है आपको यदि हो तो बताये बचपन के दिन और गर्मियों की छुट्टिया खट्टे मीठे आम और लू के थपेडे गुल्फी के खाने वाले और रातोtt में छतो में ,सुराही का पानी ,मछरदानी के अन्दर से तारो को गिनना और फ़िर भूल जाना मामा का घर और नानी की कहानी
बैकुंठी में आपका इंतजार रहेगा आपके विचारो की आभियक्ति का जैसे हम मौसम की राह देखते है और वो आ जाता है बस उसी तरह की तरंगो का आदान प्रदान है बैकुंठी