Thursday, May 21, 2009
Wednesday, May 13, 2009
कहा गए वो संस्कार
आज याद आए पुराने दिन याद आए घर छोटा था पर जगह बहुत थी पत्ता नही कहा कहा से लोग आते और रुकते सारा घर भाभी ',दद्दा सब का स्वागत खाने पीने की जरूरतों का ध्यान रखते आतिथि होते अपनापन होता अपने होते आज घर बड़े बड़े है पर जगह छोटी हो गई है जगह ईट गारे से नही बनती और न ही घर , घर बनता है संस्कारो से , कहा गए वो संस्कार ,जब की हम लोग है उन्ही घरो से ,बड़ी बड़ी बाते करते नही अघाते दूसरो पर थोस निकलना हमारा प्रिय विषय है चर्चा के प्राण है छोटा सा जीवन फ़िर क्यो इतनी भाग दोड़ कहा जाओगे भाग के क्या छूना चाहते हो क्या पाना चाहते हो जो है उसे तो जी नही रहे जो है वही बहुत है अपनों की सीमा में कब तक बधे रहोगे कभी बाहर निकल कर के तो देखो ,
Tuesday, May 12, 2009
Monday, May 11, 2009
रोज की तरह आज फ़िर सूरज ऊगा ऊगता तो वो है जो बोया जाता है फ़िर क्या है ये सब क्या कुछ बिना बोए ऊगता है प्यार के बीज भी तो बोने होते है बिना बोए क्या प्रेम पल्वित होता है जो उगता नही मरता नही वही तो जो जन्मता नही वो मरेगा क्या जन्म के पहले भी सूरज और म्रत्यु के बाद भी सूरज रहेगा और था फ़िर उगाना ऊगना क्या है ?
Friday, May 8, 2009
कुछ अनकहे बोल मन बोल नही पाया ताने बाने में बधा मन कब मुक्त होगा? जब मुक्त होगा तब क्या होगा ?किसे पता है ? शब्दों के माया जाल में मन भरमाया है किसके हाथ में है डोर हमारी आपकी कुछ पता है आपको यदि हो तो बताये बचपन के दिन और गर्मियों की छुट्टिया खट्टे मीठे आम और लू के थपेडे गुल्फी के खाने वाले और रातोtt में छतो में ,सुराही का पानी ,मछरदानी के अन्दर से तारो को गिनना और फ़िर भूल जाना मामा का घर और नानी की कहानी
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