Wednesday, March 31, 2010

रामखिलावन रीमा वाले

रामखिलावन, रीमा वाले मुलत:रामदुलारे और रामदुलारी के प्रथम और अंतिम वैध संतान है इनका जन्म रीमा में एक लोकल ग़दर के समय लखौरीबाग में १९५७ के आस पास हुआ था बताते है कि रामखिलावन ने पैदा होते ही अपने बाप को दो लाते मारी थी क्यों मारी थी ,यह रह्श्य आज भी बना हुआ है जब कि उनके बाप का तथाकथित स्वर्ग गमन हो चुका है माँ को तो वो पेट में ही लाते दिए रहते थे माँ खुश होती थी क्यों कि माँ थी

रामदुलारे ने रामखिलावन के अकेलेपन को दूर करने के लिए भरसक कोशिश अपनी अर्धांगनी श्रीमती रामदुलारी के साथ की पर वे लाख प्रयास करने के बाद भी कुछ ज्यादा न कर सके रामदुलारे के कुछ अन्तरंग सखा जैसे रामगुलाम और रामसजीवन जितना उन्हें अभी भी याद है ,कहते है कि रामदुलारे अपने आँगन में लौंडो की किलकारी हमेशा बनी रहे के लिए एलानिया शिलाजीत का भी उपयोग करते थे ,रामदुलारी कभी किसी संन्यासी की शरण में तो कभी किसी जोगीr की राह भभूत की ताबीज गले में लटकाए घुमती रही पर वे सब धरे के धरे राह गए और रामखिलावन जीवन भर सिंगल इंजन की तरह जिन्दगी की पटरियों में शंटिंग करते रहे जब कि उनके सगे काका रामनिहोर और काकी रामवती की आधा दर्जन से कुछ ज्यादा ही संताने थी ,जो कि आज वर्त्तमान में सात बची है जिनमे चार लौड़े और शेष तीन ........बची है
वैसे तो रामखिलावन के काका रामनिहोर की सदैव यही इक्छा रही कि उनकी वामांगी यानी की श्रीमती रामवती गर्भवती ही बनी रहा करे ,समय समय को छोड़ कर वैसे भी रामनिहोर ने उन्हें निपोरने में कोई कसर अपनी तरफ से नहीं छोड़ी थी
रामखिलावन बचपन से ही उदयीमान रहे वे जहा चाहे वहा उदय हो जाते और तब तक उदय रहते जब तक अस्त न हो जाते बचपन में उनके दो शौक जगजाहिर हो गए थे पर सारे के सारे शौक भला किसी के पूरे होते है ,सो रामखिलावन भी बिरले नहीं थे वैसे इनके शौक ,उम्र और हालातो के कारन बीच बीच में बदलते रहे बचपन में कुछ और किशोर अवस्था में कुछ और ,जवानी में कुछ और ही रहे चठ्ती जवानी में कुछ भिन्य और अटपटे क़िस्म के शौक ,सपने जिनकी विस्तार व्याख्या फिर कभी फुरसत में होगी उसी के साथ उनके अन्तरंग मित्रो के बयान बानगी कुछ ऐसी घटनाओ का धाराप्रवाह विवरण जो दुर्घटनाओ में तब्दील हो गयी थी
ठलती जवानी की कुछ रोचक यादे ,वियोग ,धरम संकट और जब दुकान बंद होने लगी तो उन्होंने उसे खुले रखने का भारी प्रयास किया कुछ दिन सफल भी रहे पर जवानी कहा किसी की रुकी है कि रामखिलावन की ही रुकती सो चली गयी जिसके गम में रामखिलावन बरसो ग़मगीन रहे लखौरीबाग में अकेले नए नए प्रयोग जवानी को रोके रहने के किया करते
वैसे तो रामखिलावन मूलत :एक प्रेमी जीव थे और है भी ,जवानी और जवानी के प्रति समर्पित रामखिलावन का प्रेम जहा देखो वही ,उन दिनों फसफासा जाता था वो दिन ,कुछ और थे
जो अब लद्लुदा गए थे बचे थे तो बस रामखिलावन और उनकी तन्हाई सो वो लखौरीबाग में गुजरती थी और आज भी गाहे बिगाहे गुजर रही है
शेष फिर ..........................

Saturday, March 27, 2010

लिव -इन रिलेशनशिप

राम खिलावन बोले कहो बलभद्र, का खबर है |

खबर ,असरदार है| खबर, ख़बरदार है, भैया | बलभद्र बोले |

और मजेदार भी है, का ? रामखिलावन बोले |

मजेदार और ख़बरदार में बड़ा अंतर होता है दादा, बलभंद्र बोले |

, सुना नहीं ...........|

खबर है लिव -इन रिलेशनशिप के बारे में विचार विमर्श चल रहा है|

पूरा देश आज कल इसी बहस में जा फसा है |

ये फसा फसौअल का खेल तो हम लोग पता नहीं कब से खेल रहे है ,बलभद्र, तुम्हे नहीं मालूम ,रामखिलावन बोले |

लिव -इन रिलेशनशिप का, फसा फसौअल का खेल है का ? तुम हु, रामखिलावन दादा कहा की बात कहा धर देते हो| इधर सारा देश भिड़ा हुआ है सही और गलत के चक्कर मा सर्वे फर्वे भी हो रहे है जगह जगह बहस झिडी है ,समाज सेवी नाम का जीव जो बहुत दिनों से दिख नहीं रहा था झोला लटकाए निकल पड़े है दाडी तोवे रखे ही रहते है क्यों की मौके बेमौके निकलना ही पड़ता है उन्हें| गोया की समाज इधर उधर चल निकल जाये गदहे में चढ़ के ,की फिर मिले ही न| समाज को और अपनी प्यारी प्यारी सभ्यता को संभाल कर रखना इन्ही दाडीधारियों का कम है |

दादा ,तुमहू लगे हो इहा उहा करने में ,बात का बतंगड़ बनाना कोई तुमसे सीखे |

तिल को ताड़ और ताड़ को तिल बनाना तो भैया हमारा पुराना धंधा है और देखते नहीं हो ,हम सब कर क्या रहे है ,हमारी गलती है तो तिल, तुम्हारी है तो ताड़ ये खेल तो हम सब बखूबी खेलते रहते है और इसी में जिंदगी गुजार देते है |

सुनो बलभद्र ,

एक बार किसी खिसनिपोर ने , नहीं बड़े ज्ञानी ने पंडित रामकिंकर जी से पूछा की बताये हम में और राम में क्या अंतर है ? राम किंकर जी महराज बोले -भैया कोई अंतर नहीं बस इतना अंतर है कि, हम अपने लिए दयालु है, और दुसरे के लिए मर्यादित ,भगवान राम अपने लिए मर्यादित थे और दुसरे के लिए दयालु |

कहो कैसी रही ? रामखिलावन बोले |

अब बलभद्र का खा के बोले |सन्न रह गए |

सनसनाते हुए, थोड़ी देर बाद जब बलभद्र परालोक से धरालोक में अवतरित हुए तो फिर लिव -इन रिलेसनशिप का भूत उन पर चठ गया, लोटन कबूतर कि तरह |

जो फिर उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था |

का हो देवी चठी है का कि अभुआ रहे हो ......|रामखिलावन बोले |

बलभद्र सोच रहे थे कि का बताये अर्थ का अनर्थ करने में तो दादा, विशारद पास किये है ,हम तो संवाद करने निकल थे इहा तो लगता है लिव -इन रिलेशनशिप के चक्कर मा वाद विवाद होई जई...| लिव-इन रिलेशनशिप होने के पहले ही भिड भिड़ा जाये और तो और कही पिटपिटा जाये ..खबर ,ख़बरदार तो है पर असरदार भी है ऐसा बलभद्र को जान पड़ा|

बलभद्र के दिमाकी आगन में विचारो कि धमाचौकड़ी मची हुई थी कोई कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था| एक विचार दुसरे विचार को दिए मार रहा था कि दूसरी तरफ एक विचार दुसरे विचार को लिंगी फ़साने कि जुगाड़ में लगा था |

तभी एक हट्टे कट्टे विचार ने एक दुबले से विचार को जो किनारे बैठा लिव -इन रिलेशनशिप के बारे में अपना लघुशोध प्रबंध पठने के लिए उठा ही था कि ,उसने लतियाते हुए उसके कागज पत्तर फाड़ फ़ूड दिए वो बेचारा घिघियाते हुए ही बैठ गया जहा से उसने उठने कि कोशिश की थी |

बड़ा घमासान मचा हुआ था बलभद्र को ऐसा लग रहा था कि यह घमासान कही शमशान में बदल जाये |

बलभद्र का सर भन्न भन्न भन्नाने लगा , उसे ऐसा लग रहा था कि कोई उसे एक नहीं दो ठो सेरिडान

दे दे ....भाड़ में जाये ये लिव -इन रिलेशनशिप का चोचला ..............|अभी जैसा चल रहा है ठीक है ,फिर सके दिमाग में ख्याल आया कि नहीं परिवर्तन ही उन्नति है भैया चलने दो चलने दो ..........|

रामखिलावन बोले भैया बलभद्र का सोच विचार में पड़ गए हो ऐसा सोचने लायक , विचार तो नहीं है कि तुम धाय धाय सोचे जा रहे हो |

अरे सोचने से भी कभी कुछ होता है ,करना पड़ता है तभी कुछ होता है ,तुम कैसे हुए तुम्हे मालूम है का सोचने से हुए हो नहीं भैया रजा .कुछ करना पड़ता है

करो या मरो गाँधी जी का नारा भूल गए का, इतना हरबी | अभी तो सोच विचार चल रहा है ये विचार भी कुछ कम नहीं है ससुरा ,चलते चलते कहा और कब बैठ जाये सोच के साथ किसे पता और का ये पता लगाने देता है ससुरा वो तोतब पता चलता है जब वो बैठ जाता है |पता नहीं कितने सोच, विचार के साथ चले और मील दो मील chal

kar baithh गए कि फिर उठे ही नहीं अभी भी बैठे बैठे पगुरा रहे है|

चिंता छोडो सुख से जियो ,दुःख से भी जीना कोई जीना है भैया ,बस जिए जा रहे हो ,कुछ पत्ता वत्ता है नहीं लगे हो सामाजिक अध्ययन में ............|

रामखिलावन कि इन दार्शनिक बातो को सुन बलभद्र को अपनी नीचता पर क्रोध आया और वह ग्लानी से लबलबा गया ,जब बलभद्र ने देखा कि उसकी ग्लानी लबलबा कर नीचे उसकी नीचता की तरह गिर रही है तो वो हैरान हो गया उसे लगा कि उसे लिव -इन रिलेशनशिप के बारे में ऐसा वैसा नहीं सोचना चाहिए ,उसे वैसा ही सोचना चाहिए जैसा सब सोचा रहे है |

तभी रामखिलावन बोले भैया बलभद्र का सोच रहे कुछ सोचने जैसा तो नहीं है ......................|लेकिन तुम्हारा बड़ा मन तो सोचो ..........सोचो सोचो ........सोच लो तो फुरसत में हमहू का बताना |





















Wednesday, March 24, 2010

पुलिया पे.......

म्रत्यु लोक में जन्मे उन लोगो में से जिन्हें वापस स्वर्गलोक जाना है ,रामखिलावन और बलभद्र भी है आप तो भूल ही गए क़ि आप को भी देर सबेर जाना है क्यों क़ि जो गुडा~भाग करने में आप व्यस्त है, उससे तो नहीं लगता क़ि आपको कही और जाना है, बस आ गए अब कहा ,क्यों क़ि तैयारी और रखवारी तो ऐसे हो रही है क़ि बस पूछो मत ...........
राम खिलावन और बलभद्र ,गांव से कुछ दूर बनी पुलिया पे बैठे पुरानी बाते बतिया रहे थे बातो का दायरा , गांव की राड़ी दुखाई से ले कर बम और अटमबम और उससे होता हुआ दायरा चुनाव ,लोक सभा ,विधान सभा के चुनाव ,राजतन्त्र से होता हुआ लोकतंत्र की गलियों में घुस गया था ,गुदई लोफराई ,कट्टा सट्टा की बाते ,जवानी और सांडे के तेल का प्रयोग ,बंगाली दवाखाना की दवाई ,समसान का भूत ,भारतीय रेल में बिना टिकट यात्रा का जुगाड़ ,राजनिती के दंगल में दाव पेंचो की संभावनाओ पर विचार चल रहा था ,वो प्यारे लाल पंसारी के घर हुई डकैती की पड़ताल ,परिवहन निगम की माली हालत और सरकार के उठाए गए ठोस गदम की चर्चा जो कमजोर साबित हुए ,ईमानदारी और सरकार की पारदर्शी शासन प्रडाली पर बहस कर रहे थे ,मैटनी शो में पैदा हो रहे होनहारो का भविष्य ,शहर में बह रही प्यार की बयार की चर्चा ,इस महगाई में दो जून खाने का जोगाड़ ,गाय और भैस के दूध में पानी की मिलावट का तुलनात्मक अध्ययन बकरी का दूध गाँधी जी के बाद किसी नेता ने क्यों नहीं पिया , इस रहश्य को भी खोलने का प्रयास कर रहे थे लेकिन खुल नहीं रहा था ससुरा
भ्रस्टाचार भाड़ में जाये ,हनुमान जी के शरीर में पुते सिंदूरी रंग की व्याखा,पिछली रामलीला में हुई आरती के पैसो की हेराफेरी ,महंत की कारगुजारी और स्कुल के माट्साब के स्कुल की ही लोअर ग्रेड अध्यापिका से अवैध संबंध की चर्चा ,बिजली की लुक्का छिप्पी और सरकार का फिर बेहोस कदम,मार्किट में चलने वाले कैशिनो में आज कल कौन जीत और कौन हर रहा है ,कौन किससे पिट रहा है और क्यों ,सरकार की उन्नत योजनाओ का क्रियान्वयन ,असफलता के कारन ,पटवारी और कानूनगो की प्रसाशनिक पकड़ ,तिरसठा साल के बाद भी पानी का रोना ,सड़क का हर साल टूटना और नेताओ के आस्वाशन,बीटी बैगन ,पर्यावरण के नाम पर बडो बडो का आसू बहाना ,न जाने किस किस विषय पर दोनों चर्चा करते करते रात हो चली दोनों उठे और अपने अपने घर चल दिए ,कल फिर सुबह होगी, फिर दोनों चर्चा करेंगे हा चलते चलते यह तय हो गया था की हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे है लेकिन तभी रामखिलावन बोले भैया बल्भदर ,हम सुनहरे कल की ओर बढ़ नहीं रहे है बढ़ गए है ....................

Saturday, March 13, 2010

बिल बिलाहट

राम खिलावन से बलभद्र कह रहे थे महिला बिल आ रहा है
राम खिलावन बोले अरे या ससुरा का है अभी तक तो बिजली का बिल सुने थे ,चूहा का बिल सुने थे लोखरी, सियार , भी कभी कभी डर डुरा के किसी दुसरे के बिल में घुस घुसा जाते है फिर निकलते है बाहर की आवो हवा देख कर , अगर गर्म रही तो फिर दूबक के पिछले पाव खिसक लेते है बिल में और बिल में ही सास बांधे पड़े रहते है बचे तो बाहर निकलते है नहीं तो वही समाधीस्थ हो जाते है बाद में फिर कोई चौरा चौरी बना देते है ,कोई कोई चौरा फिर पुजने भी लगता है चठौतरी भी चठ्ती है रोट,बताशा का भोग भी लगता है और एसे चौरा की मानता जग जाहिर हो जाती है सुनो बल्भदर..........ओचा पोचा न सुनाया कर ..........
अब बल्भदर करे तो का करे ,ससुसी जनता सुनने को तैयार नहीं है का होगा ............ का
कैसे परिवर्तन लाये ,कैसे खुशहाली आये इहा कोई समझने को तैयार नहीं है ,बिल का नाम लो तो चूहा बिल्ली का नाम लेते है ,अरे बिल लाना और पास कराना चूहा बिल्ली का खेल है का समझते नहीं है .............
उधर इस बीच रामखिलावन ओ जगेशर नव रात्री में देवीदाई की बैठकी का इंतजाम उन्तजाम की चर्चा में ब्यस्त हो चले थे बोल रहे थे की भैया जगेशर गांव की देवीदाई के सजावट माँ कौनो कमी न आमे चाही ,रोट बताशा का इंतजाम राम परताप शेठ के हाथे है देखे रहे डाडी न मारे पावे ससु बड़ा बलिहारी है ,
जगेशर बोले त पुन का कीन जाय ........?
चुप रहो ,चुप रहना भी कला है जगेशर इस कला से बड़े बड़े काम चुटकी में हौई जाते है ,सम्झोयो की नहीं सम्झोयो .........
नहीं त समझाई ..........
जगेशर समझ गए थे रामखिलावन की बात, पर राम खिलावन को बल्भदर बिल की बात नहीं समझा पा रहे थे ,ये बात बल्भदर को बिलबिलाये जा रही थी............
का होगा कुछ समझ में नहीं आ रहा था बल्भदर को की कैसे समझाए रामखिलावन को की खुशहाली के खातिर ,समझ लो ,समझा लो............

Monday, March 8, 2010

उर्जा


हम अपनी उर्जा कहा खर्च कर रहे है ,लगता है,तब जब सब ख़तम हो जाएगी तब पता चलेगा


अपने को सही और दूसरे को गलत साबित करने में हम क्यों हलाकान है ? हमसे कोई गलती होती ही नहीं है ,भैया गलती नहीं होती है तो फिर आदमी नहीं हो ,गलतिया आदमी से ही होती है भगवान से नहीं, हा भगवान हो तो कोई बात नहीं


हे परम ब्रम्ह की संतानों कभी सोचो तो हम आखिर कर क्या रहे है ,उचाइयो से क्यों निचाइयो की ओर अग्रसर है ,यदि मानव का जन्म मिला है तो निश्चय ही भले काम किये होंगे तभी मिला है नहीं तो कुछ और होते ,पता नहीं क्या ,बड भागन मानुष तन पावा , बड़े भाग्य से ये शरीर मिला है बड़ा कीमती है अमूल्य है ये जब जनते हुए भी हम क्यों बहक रहे है ,बाते ताड़ो की करते है और काम तिल का भी नहीं करते


समय गुजर रहा है और हम भी गुजर रहे है एक दिन गुजर जायेंगे लेकिन समय फिर भी गुजर रहा होगा लेकिन पता नहीं हम कहा गुजर रहे होंगे किस हाल में किस भेष में किस देह में या फिर कुछ और .............


चला चली की बेला कब आ जाये कुछ खबर नहीं, फिर भी, कोई तैयारी नहीं


किसी परीछा में बैठना हो तो तैयारी ,शादी की तैयारी तो खूब धूम धाम से करते है ,किसी यात्रा में जाना है तो तैयारी कोई घर आ रहा है तो तैयारी , सब तरफ तैयारी फिर क्यों हम लोग जाने की तैयारी क्यों नहीं करते ,शायद इस लिए की हमें मालूम है की हमें सदा सदा यही रहना है ,


मुबारक हो ,

Tuesday, March 2, 2010

सरसों के पीले पीले फूल







होली में ,रंग है गुलाल है , हम है और आप है ,तन है और मन है ,मन में मनुहार है ,गीत है ,गोविन्द है , और अपनों के सपने है, सपनो के गाव में मन में हुड़दंग है



सरसों है गांव है ,गांव में होली है ,होली में बोली है सजना की होली है

गोरी के गाल है,

और गाल भी गुलाल है 'अपनों के रहते क्यों मन में मलाल है

टेशू भी फूला है

और गेंदा भी महका है ,साजन के मन में ही

सजनी का मैका है

सजनी है साजन है ,मन में भी आगन है

तुलसी के चौरे में, दिया का जलावन है ठौर है ठिकाना है लोगो का आना है ,मेला है जीवन ,लोंगो का जाना है

फागुन और सरसों का बरसो का साथ है गाव में जब सरसों फूलने लगती है लोग फगुआ गाने लगते है फगुआ जाते है मन, तन के बंधन तोड़ ताड़ कर कहा कहा भटकता है ये वो खुद नहीं जानता ,गली गली में राधाये गली गली में कृष्ण ,मन ही मन उतर मिले नहीं पूछने प्रश्न .............




बैकुंठी में सरसों फूली है खूब सारी आपके लिए ,फागुन के गुण गुनगुना ले ,




छिप छिप के मिलते रहे अब तक कितनी बार ,गुलमोहर की छाव में पकड़ गए कचनार ........