Saturday, March 13, 2010

बिल बिलाहट

राम खिलावन से बलभद्र कह रहे थे महिला बिल आ रहा है
राम खिलावन बोले अरे या ससुरा का है अभी तक तो बिजली का बिल सुने थे ,चूहा का बिल सुने थे लोखरी, सियार , भी कभी कभी डर डुरा के किसी दुसरे के बिल में घुस घुसा जाते है फिर निकलते है बाहर की आवो हवा देख कर , अगर गर्म रही तो फिर दूबक के पिछले पाव खिसक लेते है बिल में और बिल में ही सास बांधे पड़े रहते है बचे तो बाहर निकलते है नहीं तो वही समाधीस्थ हो जाते है बाद में फिर कोई चौरा चौरी बना देते है ,कोई कोई चौरा फिर पुजने भी लगता है चठौतरी भी चठ्ती है रोट,बताशा का भोग भी लगता है और एसे चौरा की मानता जग जाहिर हो जाती है सुनो बल्भदर..........ओचा पोचा न सुनाया कर ..........
अब बल्भदर करे तो का करे ,ससुसी जनता सुनने को तैयार नहीं है का होगा ............ का
कैसे परिवर्तन लाये ,कैसे खुशहाली आये इहा कोई समझने को तैयार नहीं है ,बिल का नाम लो तो चूहा बिल्ली का नाम लेते है ,अरे बिल लाना और पास कराना चूहा बिल्ली का खेल है का समझते नहीं है .............
उधर इस बीच रामखिलावन ओ जगेशर नव रात्री में देवीदाई की बैठकी का इंतजाम उन्तजाम की चर्चा में ब्यस्त हो चले थे बोल रहे थे की भैया जगेशर गांव की देवीदाई के सजावट माँ कौनो कमी न आमे चाही ,रोट बताशा का इंतजाम राम परताप शेठ के हाथे है देखे रहे डाडी न मारे पावे ससु बड़ा बलिहारी है ,
जगेशर बोले त पुन का कीन जाय ........?
चुप रहो ,चुप रहना भी कला है जगेशर इस कला से बड़े बड़े काम चुटकी में हौई जाते है ,सम्झोयो की नहीं सम्झोयो .........
नहीं त समझाई ..........
जगेशर समझ गए थे रामखिलावन की बात, पर राम खिलावन को बल्भदर बिल की बात नहीं समझा पा रहे थे ,ये बात बल्भदर को बिलबिलाये जा रही थी............
का होगा कुछ समझ में नहीं आ रहा था बल्भदर को की कैसे समझाए रामखिलावन को की खुशहाली के खातिर ,समझ लो ,समझा लो............

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