रोज रोज का जीना -मरना
रोज-रोज का अस्त उदय
क्या तुमको क्या मुझे मिला है
जीवन के इस वन में जी कर
ऊंगली भर थे बचपन के दिन
दियासलाई सा था यौवन
उमर गुजारी पल -पल हमने
जीवन के इस वन में जी कर
मन भर जीवन जी न पाए
तन भर ढके रहे जीवन भर
अधियारे में जिनको देखा
उजियारे पहचान न पाए
कही पुजारी पूजा बेचे
कही मौलवी मौलापन
नही मिला फिर कही देखने
बचपन का वो भोलापन
जीवन भर जी कर भी हम -तुम
मिल न पाए अपने से
क्या मुझको क्या तुम्हे मिला है
जीवन के इस वन में जी कर ........
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