Wednesday, February 2, 2011

जीवन भर हारे जीवन से .......

जीवन भर हारे जीवन से
जी न पाए तन -मन से
सांसो का ये हीरामन
कब कहा उड़ा ले जायेगा
बाहर की आखे खुली हुयी
भीतर की मुदरी मुंदी हुयी
सुख दुःख के इस धुप छाव में
चल -चल जीवन थक जायेगा
मिल -जुल कर हम नही रहे
बाहर ही बाहर जुड़े रहे
भीतर का कोहराम लिए
सत्य राम नाम हो जायेगा
गाजे बाजे बाजेंगे
डोली चढ़ कर जांएगे
रोज -रोज का अस्त -उदय
सब यही धरा रह जायेगा

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