
Tuesday, November 17, 2009
Monday, November 16, 2009
तुम्हारे लिए
गाव के छाया चित्र आपको क्या सोचने के लिए कहते है भोर की अंगड़ाई मोह पाश में बाधने के लिए बुला रही है बिना किसी राग द्वेष के तुम्हारी भूली बिसरी यादो के साथ आवाज दे रही है देखो तुम कहा भटक गए ,निर्मल मन अब कितना निर्मल रहा ,तुम ऐसे क्यो हो गए ,क्या पाने के जुगत में तुमने अपनी काया माया को इतना गिरा दिया या उठा लिया की अब वास्तविकता से कोषो दूर हो गए
घर लौटने की तैयारी नही करोंगे ,क्या घर नही लौटना है ,कोई हमेशा यहाँ नही रहा है तो फ़िर तुम क्या रहोंगे ,फ़िर भी ,कोई तैयारी नही ,तुम्हे याद होगा तुमने परिझाओ की माकूल तैयारिया की थी सो हमेशा पास होते रहे और हर ऐसी तैयारिया तुम करते रहे हो जिससे आज इस मुकाम तक सफलता पूर्वक पहुचे ,फ़िर घर लौटने की तैयारी क्या तुम नही करोंगे ,उसकी भी तो तैयारी करनी होगी ,कब करोंगे ,बिना तैयारी के क्या घर लौटने का इरादा है ,यदि ऐसा हो तो फ़िर कोई बात ही नही , अगर नही तो फ़िर शुरू करो घर लौटने की तैयारी देखो कितना आनंद आता है ,
जिंदगी के साथ साथ और जिंदगी के बाद भी
लोगो को 'बड़ा भ्रम है की जिंदगी के बाद भी क्या जिंदगी है ,कितनी सरल बात को भी लोग कितना कठिन बनाये हुए है ,हम घर से दस बजे आफिस जाते है और पांच बजे आफिस से घर वापस आते है तो क्या जीवन दस और पाच के बीच ही है क्या ? जीवन दस बजे के पहले और पांच बजे के बाद भी है इसी प्रकार जीवन जनम से पहले और म्रत्यु के बाद भी है ......................
आ अब लौट चले .......................................
घर लौटने की तैयारी नही करोंगे ,क्या घर नही लौटना है ,कोई हमेशा यहाँ नही रहा है तो फ़िर तुम क्या रहोंगे ,फ़िर भी ,कोई तैयारी नही ,तुम्हे याद होगा तुमने परिझाओ की माकूल तैयारिया की थी सो हमेशा पास होते रहे और हर ऐसी तैयारिया तुम करते रहे हो जिससे आज इस मुकाम तक सफलता पूर्वक पहुचे ,फ़िर घर लौटने की तैयारी क्या तुम नही करोंगे ,उसकी भी तो तैयारी करनी होगी ,कब करोंगे ,बिना तैयारी के क्या घर लौटने का इरादा है ,यदि ऐसा हो तो फ़िर कोई बात ही नही , अगर नही तो फ़िर शुरू करो घर लौटने की तैयारी देखो कितना आनंद आता है ,
जिंदगी के साथ साथ और जिंदगी के बाद भी
लोगो को 'बड़ा भ्रम है की जिंदगी के बाद भी क्या जिंदगी है ,कितनी सरल बात को भी लोग कितना कठिन बनाये हुए है ,हम घर से दस बजे आफिस जाते है और पांच बजे आफिस से घर वापस आते है तो क्या जीवन दस और पाच के बीच ही है क्या ? जीवन दस बजे के पहले और पांच बजे के बाद भी है इसी प्रकार जीवन जनम से पहले और म्रत्यु के बाद भी है ......................
आ अब लौट चले .......................................
Thursday, November 12, 2009
Wednesday, November 11, 2009
शुभ हो
कल रात से पानी बरस रहा है ,कब तक बरसेगा किसी को कुछ पता नही ,फयाना तूफान निकल गया साइड पोज दे कर ,उसके इस पोज से लोग कयास लगाते रहे तरह तरह के कोई कुछ तो कोई कुछ बके जा रहा है जितने लोग उतनी दुनिया उतने मायने उतने सूरज उतने चाँद अपना ,अपना सच ,अपना अपना झूठ लिए लोग जी रहे है ये मानते हुए की वे हमेशा जीवित ही रहेंगे ,हमेशा जीवित रहने का मुकालता पाले लोग और उनके काम भी उसी तरह के भूल जाते है की उन्हें भी जाना है ,वापस घर ,लेकिन वे परदेश को ही घर समझ बैठे है ,समझ का फेर ही तो सब कुछ है जो जागते है वो समझते है ,जो सोते है वो .................
वर्तमान ही जीवन है एक जगह पठने को मिला जीवन और कुछ नही , बस घर लौटने की यात्रा मात्र है
आ अब लौट चले ...........
किसी कवि सम्मलेन में कवि की ये पक्तिया कितना कुछ कहती है ............
प्रेम से तुम सुनो
और सुन कर गुणों
मन मिलाओगे तो ,मन से जुड़ जायेंगे
वरना हम है पखेरू बहुत दूर के
बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे
उड़ कर जायेंगे कहा ,घर ही आख़िर .................
घर वो जगह है जहा हम,आप ,सब बुरके उतार फेकते है ,पहुचते ही और अपने मूल स्वाभाव में आ जाते है ,बाहर हम कही कुछ तो कही कुछ बने ड्रामा करते रहते है अपने अपने रोल अदा करते ,जो रोल बेहतर करते है उनकी फ़िल्म सफल हो जाती है जो रोल बेहतर नही करते उनकी फ़िल्म असफल हो जाती है लेकिन लौटते दोनों है घर ,उसी घर में जहा से आए थे
कहा से आए थे और कहा घर है ,ये उन्ही को मालूम है जो मालूम करना चाहता है ,चाहने भर से कुछ नही होता ,चाहने को मूर्त रूप देना होता है और मूर्त रूप वाही दे पाते है जो पुरी तरह शत प्रतिशत चाहते है ,प्रशन बस प्रतिशत ,शत प्रतिशत का है
मन ,बेमन का है
मन मिलओंगे तो मन से मिल जायेंगे वरना हम है पखेरू
बहुत दूर के बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे ..............................
वर्तमान ही जीवन है एक जगह पठने को मिला जीवन और कुछ नही , बस घर लौटने की यात्रा मात्र है
आ अब लौट चले ...........
किसी कवि सम्मलेन में कवि की ये पक्तिया कितना कुछ कहती है ............
प्रेम से तुम सुनो
और सुन कर गुणों
मन मिलाओगे तो ,मन से जुड़ जायेंगे
वरना हम है पखेरू बहुत दूर के
बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे
उड़ कर जायेंगे कहा ,घर ही आख़िर .................
घर वो जगह है जहा हम,आप ,सब बुरके उतार फेकते है ,पहुचते ही और अपने मूल स्वाभाव में आ जाते है ,बाहर हम कही कुछ तो कही कुछ बने ड्रामा करते रहते है अपने अपने रोल अदा करते ,जो रोल बेहतर करते है उनकी फ़िल्म सफल हो जाती है जो रोल बेहतर नही करते उनकी फ़िल्म असफल हो जाती है लेकिन लौटते दोनों है घर ,उसी घर में जहा से आए थे
कहा से आए थे और कहा घर है ,ये उन्ही को मालूम है जो मालूम करना चाहता है ,चाहने भर से कुछ नही होता ,चाहने को मूर्त रूप देना होता है और मूर्त रूप वाही दे पाते है जो पुरी तरह शत प्रतिशत चाहते है ,प्रशन बस प्रतिशत ,शत प्रतिशत का है
मन ,बेमन का है
मन मिलओंगे तो मन से मिल जायेंगे वरना हम है पखेरू
बहुत दूर के बोलिया बोल अपनी उड़ जायेंगे ..............................
Wednesday, November 4, 2009
भोर भई

भोर भई अब जाग मुशाफिर .......................
भोर कब होगी जीवन की ,जीवन भर क्या सोये सोये रहेंगे ,या फ़िर जागेंगे भी ? कब जागेंगे ,कुछ पल छिन आते है अनायाश जीवन में जो हमें ,तुम्हे जगाने की कोशिश करते है प्रयास करते है पल भर के लिए हम तुम जग भी जाते है ,पर फ़िर सो जाते है सोते सोते जीवन गुजार देते है जगे भी है तो केवल बाहर बाहर ,भीतर तो सोये ही रहते है कोई जगाये भी तो नही जागते
जीवन भर हम जागने का स्वांग किए भटकते रहते है ओरों को भी भटकाते रहते है अपने अपने दर्शन से प्रदर्शन से जीवन ऐसे जीते है की कभी मरेंगे ही नही दुसरे मरेंगे ,हम नही
हम जीने भर लिए अवतरित हुए है मरने के लिए नही
आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर ,कितनी बार सुना, सुन कर अनसुना किया ,और करते जा रहे है कब तक ,जब तक चले नही जायेंगे है ना? माया के मोह जाल का का बहाना लिए अपने को ख़ुद फ़साये घूम रहे है ,अरे तुम निकलने की कोशिश करो और ना निकल पाओ ये कैसे हो सकता है ,हम ख़ुद निकलना ही नही चाहते है जाल
janjaal से क्यो सही है ना ,और बहाना पर बहाना बनाये jate है
ये सब बहाने बह जायेंगे ,बह तो हम भी जायेंगे पर जब तक bahe नही है ,tab तक कुछ तो करे .......
gud खाए और gulgule से parhej करे ये bat कुछ jami नही
Wednesday, October 14, 2009
दिन फ़िर रहे है
राम खिलावन पिछले दिनों रावन मारने में बिजी रहे ,एन मोके में साला पानी बरस गया सो ससुरा जलने का नाम ही नही ले रहा था ,गिर अलग गया सो उठाए कौन ,राम लक्छ्मन और उनकी सेना सोफे में बैठी तमाशा देख रही थी , जनता जनार्दन ही ही कर हस रही थी अब क्या होगा लोगो ने दशहरा मैदान में लगी बल्लिया तोड़ तोड़ कर बरसते पानी में रावन को जलाने चल दिए और रावन था कि जलने का नाम नही ले रहा था राम खिलावन बोले जब ससुरा मरा नही तो जलेगा कैसे ? हर साल हम सब बंधू बांधव सहित रावन मारने का ड्रामा करते है और उसे जला जुलू कर ही सास लेते है मरा रावन अब सब ठीक हो जाएगा अत्याचार , व्यभिचार ,भ्रस्ताचार ,और भी जितने तरीके के चार अचार होते है ख़तम हो गए रावन के मरते ही ,जोर जोर से गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाते है सत्य कि जीत हुई और असत्य कि हार हुई
इन प्रतिको से हमने कुछ नही सीखा असत्य को हार साल मारते है फ़िर ससुरा कैसे जिन्दा हो जाता है मारते हो कि ड्रामा करते हो मारने का भइया राम खिलावन बोले
ये दुनिया ड्रामा ही तो है कुछ ड्रामा करके चले गए बाकि का ड्रामा हम कर रहे है अपना अपना रोल अदा कर रहे है ,हम तो झूठ मुठ का असत्य जलाते है हार साल सही सही का थोड़े ही अगर सही सही का जला देंगे तो अगले साल क्या जलायेगे ,अपने आप को क्या ?ये भी खूब रही ,राम खिलावन बोले
यही दस्तूर है दुनिया का ...................
हम कर क्या रहे है दूसरो को धोखा देते देते अपने आप को धोखा देना सीख लिया है हमने और अपने आप को बड़ा तीरंदाज समझते है
हम साठ साल के हो गए है सठिया गए है लगता है ,क्या थे क्या हो गए ,सुनहरे कल कि तरफ़ जाते हुए ,?
राम खिलावन सोच रहा है ड्रामा है सब------------- ड्रामा है
इन प्रतिको से हमने कुछ नही सीखा असत्य को हार साल मारते है फ़िर ससुरा कैसे जिन्दा हो जाता है मारते हो कि ड्रामा करते हो मारने का भइया राम खिलावन बोले
ये दुनिया ड्रामा ही तो है कुछ ड्रामा करके चले गए बाकि का ड्रामा हम कर रहे है अपना अपना रोल अदा कर रहे है ,हम तो झूठ मुठ का असत्य जलाते है हार साल सही सही का थोड़े ही अगर सही सही का जला देंगे तो अगले साल क्या जलायेगे ,अपने आप को क्या ?ये भी खूब रही ,राम खिलावन बोले
यही दस्तूर है दुनिया का ...................
हम कर क्या रहे है दूसरो को धोखा देते देते अपने आप को धोखा देना सीख लिया है हमने और अपने आप को बड़ा तीरंदाज समझते है
हम साठ साल के हो गए है सठिया गए है लगता है ,क्या थे क्या हो गए ,सुनहरे कल कि तरफ़ जाते हुए ,?
राम खिलावन सोच रहा है ड्रामा है सब------------- ड्रामा है
Monday, September 14, 2009
भगवान और पञ्च तत्वा
भगवान में भी पञ्च तत्वा का मिलना हमें क्या बताता है इन तत्वों से भी भगवान शब्द बना है
भ _ भूमि
ग _गगन
व _वायु
अ _अग्नि
न _नीर
है न पञ्च तत्वा
भ _ भूमि
ग _गगन
व _वायु
अ _अग्नि
न _नीर
है न पञ्च तत्वा
Friday, August 21, 2009
तिरंगा
घर घर में तिरंगा फहरे ,इसका अधिकार अब हर भारतीय को प्राप्त हो गया है सो बैकुंठी में पहली बार परिवार के सदस्यों और ग्रामीणों के साथ तिरंगा फहराया गया जन गन मन , मन से गाया
Wednesday, July 22, 2009
अपने अपने सच
सच और झूठ ,अपने अपने होते है तुम्हारा सच मेरा सच नही हो सकता है न मेरा झूठ तुम्हारा झूठ हो सकता है
इस बड़ी दुनिया में अरबो खरबों छोटी छोटी दुनिया है ,तुम्हारी दुनिया ,मेरी दुनिया ,उसकी दुनिया ,हम सब चेते ,
अपनी दुनिया को ही सवारने में उर्जा लगाये दुसरे की दुनिया के मीन मेख न निकाले जिसमे हमारी मास्टरी है
प्रकृति के संकेतो को जाने माने और चल दे उसी रह पर सब कुछ आपका है क्यो की आप प्रकृति की ही तो संतान है मानो तो सही ,हम बाते भर करते है मानते कहा है मत मानो बिना जाने ,जानने की कोशिश करो और जब जान
लो तभी मानो मानो तो फ़िर मानो देखो फ़िर क्या से क्या होता है संकेतो को पठना सीखे जैसे हम माइल स्टोन
में लिखे बने संकेतो को समझ समझ कर लम्बी लम्बी दूरिया तय कर लेते है मान चित्र के संकेतो के सहारे ,कहा से कहा पहुच जाते है
शरीर भी संकेत देता है जो समझते है वे समझदार है जो नही समझते ये कुछ ज्यादा ही समझदार है ,फ़िर उन्हें समय समझाता है ,समय सब को समझाता है क्या ऐसा नही हो सकता की हम समय को समझ ले संकेतो को समझ ले तो सारी समस्या ही ख़तम हो जाए अमन चैन आ जाए जीवन में बसंत आ जाए जीवन में पर जोर जबरजस्ती से कोई मन माफिक मौसम जीवन में नही उतरते है , नही आते है मौसम का अपना मिजाज है
मौसम किसी का गुलाम नही है आपके जीवन का मौसम कैसा है ? कभी मौसम बदले भी या उही बेमौसम बरसात
सा जीवन कट गया या कट रहा है कुछ कटता कूट ता नही है बस नजरो का फेर है ,जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी
हम अपनी मूरत देखे ,कभी देखि है ,कबीर ने देखि थी ,बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलाया कोय जो दिल खोजा आपना मुझसा मिला न कोय और आप खोजते है तो आप से बेहतर कोई है नही सारी दुनिया बदतर है आप भर है जो सब जानते है अच्छा बुरा है यही बात या फ़िर कुछ और भी है आपके दिल में ,आपका दिल ,दिल नही दरिया है
पता नही क्या क्या भरा है ये तो आप से भेहातर कौंन जानेगा है ना
उतार फेके बुर्को को खुली हवा में सास ले देखे सच क्या है कब तक मुह छिपाए छिपाए जीवन जियेंगे लाखो करोडो शुक्रानुओ को हराने के बाद एक सफल शुक्राणु से आपका जन्म हुआ है विजेता के रूप में और जीवन जी रहे है पराजित की तरह जी रहे है या जिंदगी जी रहे है ये तो आप को तय करना है
कुछ कहते है जिंदगी कट रही है ,वो ये नही जानते की ख़ुद कट रहे है टुकड़े हो हो कर अपना अपना सच है अपना अपना झूठ शेष फ़िर कभी .........................................
इस बड़ी दुनिया में अरबो खरबों छोटी छोटी दुनिया है ,तुम्हारी दुनिया ,मेरी दुनिया ,उसकी दुनिया ,हम सब चेते ,
अपनी दुनिया को ही सवारने में उर्जा लगाये दुसरे की दुनिया के मीन मेख न निकाले जिसमे हमारी मास्टरी है
प्रकृति के संकेतो को जाने माने और चल दे उसी रह पर सब कुछ आपका है क्यो की आप प्रकृति की ही तो संतान है मानो तो सही ,हम बाते भर करते है मानते कहा है मत मानो बिना जाने ,जानने की कोशिश करो और जब जान
लो तभी मानो मानो तो फ़िर मानो देखो फ़िर क्या से क्या होता है संकेतो को पठना सीखे जैसे हम माइल स्टोन
में लिखे बने संकेतो को समझ समझ कर लम्बी लम्बी दूरिया तय कर लेते है मान चित्र के संकेतो के सहारे ,कहा से कहा पहुच जाते है
शरीर भी संकेत देता है जो समझते है वे समझदार है जो नही समझते ये कुछ ज्यादा ही समझदार है ,फ़िर उन्हें समय समझाता है ,समय सब को समझाता है क्या ऐसा नही हो सकता की हम समय को समझ ले संकेतो को समझ ले तो सारी समस्या ही ख़तम हो जाए अमन चैन आ जाए जीवन में बसंत आ जाए जीवन में पर जोर जबरजस्ती से कोई मन माफिक मौसम जीवन में नही उतरते है , नही आते है मौसम का अपना मिजाज है
मौसम किसी का गुलाम नही है आपके जीवन का मौसम कैसा है ? कभी मौसम बदले भी या उही बेमौसम बरसात
सा जीवन कट गया या कट रहा है कुछ कटता कूट ता नही है बस नजरो का फेर है ,जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी
हम अपनी मूरत देखे ,कभी देखि है ,कबीर ने देखि थी ,बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलाया कोय जो दिल खोजा आपना मुझसा मिला न कोय और आप खोजते है तो आप से बेहतर कोई है नही सारी दुनिया बदतर है आप भर है जो सब जानते है अच्छा बुरा है यही बात या फ़िर कुछ और भी है आपके दिल में ,आपका दिल ,दिल नही दरिया है
पता नही क्या क्या भरा है ये तो आप से भेहातर कौंन जानेगा है ना
उतार फेके बुर्को को खुली हवा में सास ले देखे सच क्या है कब तक मुह छिपाए छिपाए जीवन जियेंगे लाखो करोडो शुक्रानुओ को हराने के बाद एक सफल शुक्राणु से आपका जन्म हुआ है विजेता के रूप में और जीवन जी रहे है पराजित की तरह जी रहे है या जिंदगी जी रहे है ये तो आप को तय करना है
कुछ कहते है जिंदगी कट रही है ,वो ये नही जानते की ख़ुद कट रहे है टुकड़े हो हो कर अपना अपना सच है अपना अपना झूठ शेष फ़िर कभी .........................................
Thursday, July 9, 2009
आओ हम जीना सीखे
जन्म के पहले और म्रत्यु के बाद भी जीवन है इस बीच हम आप इस धरा पर है मिल रहे है जुल रहे है और अपने कृत्यों के अनुसार फल भोग रहे है पञ्च तत्यों का शरीर पञ्च तत्यों में मिल जाएगा और आत्मा ,परमात्मा में मिल जायेगी जैसे गुब्बारे के भीतर की हवा गुब्बारा फटने के बाद बाहर की हवा में मिल जाती है हवा ,हवा में मिल जाती है उसी प्रकार आत्मा ,पञ्च तत्व के शरीर को त्यागने के बाद परमात्मा में ,जहा से आए है वही , उसी में मिल जाते है
इस बीच हम आप पता नही कितने सपने बिनते बिगाड़ते रहते है .और आखिरी में जैसे आए थे वैसे ही चल देते है ,बंद आखो के सपने जैसा ही खुली आखो का सपना होता है
पैसा ,धन ,दौलत कमाने के चक्कर में ,जिंदगी गुम सी जाती है ,जिंदगी है क्या ,अपने अपने ताने बाने है ,कोई कुछ तो कोई कुछ सोचे बिचारे है ,कोउलू के बैल की तरह आखो में पट्टी बांधे चले जा रहे है ,कहा जा रहे है कुछ पत्ता नही ,बिना कम्पास के नाविक अपनी नाव किस किनारे ले जाएगा ,नाव के साथ नाविक ख़ुद डूब जाए तो बड़ी बात नही
कुल मिला कर ,हम कर क्या रहे है ,कहा जा रहे है ये आपा धापी काहे की ,क्या खोज रहे है ,बिना ख़ुद को खोजे क्या खोज लोगे सब धान बाईस पसेरी
अपना कुछ है मूलत : जिसे हम अपना कह सकते है जैसे फूलो में खुशबू
हम क्यो हो जाते है प्रभावित इतनी जल्दी किसी से ,क्या पानी की तरह निर्मल है की जिसमे मिला दो उसी रंग का हो जाए यदि निर्मल है तो कोई बात है यदि नही तो क्या है हम ?
बहुरूपिये या पाखंडी ये तो हमें तय करना है
इस बीच हम आप पता नही कितने सपने बिनते बिगाड़ते रहते है .और आखिरी में जैसे आए थे वैसे ही चल देते है ,बंद आखो के सपने जैसा ही खुली आखो का सपना होता है
पैसा ,धन ,दौलत कमाने के चक्कर में ,जिंदगी गुम सी जाती है ,जिंदगी है क्या ,अपने अपने ताने बाने है ,कोई कुछ तो कोई कुछ सोचे बिचारे है ,कोउलू के बैल की तरह आखो में पट्टी बांधे चले जा रहे है ,कहा जा रहे है कुछ पत्ता नही ,बिना कम्पास के नाविक अपनी नाव किस किनारे ले जाएगा ,नाव के साथ नाविक ख़ुद डूब जाए तो बड़ी बात नही
कुल मिला कर ,हम कर क्या रहे है ,कहा जा रहे है ये आपा धापी काहे की ,क्या खोज रहे है ,बिना ख़ुद को खोजे क्या खोज लोगे सब धान बाईस पसेरी
अपना कुछ है मूलत : जिसे हम अपना कह सकते है जैसे फूलो में खुशबू
हम क्यो हो जाते है प्रभावित इतनी जल्दी किसी से ,क्या पानी की तरह निर्मल है की जिसमे मिला दो उसी रंग का हो जाए यदि निर्मल है तो कोई बात है यदि नही तो क्या है हम ?
बहुरूपिये या पाखंडी ये तो हमें तय करना है
Thursday, June 25, 2009
राम खिलावन हाजिर है
राम खिलावन गाव के सूखे तालाब के किनारे ,लगे पीपल के पेड़ से सटे चबूतरे में बैठे ,चिंतन कर रहे है ,
झील ताल सागरों को डाटते है क्या करे|
हंसो को उपाधि ,गीध बाटते है क्या करे |
सोच रहे है ,की कितना इस तालाब में नहाया करते थे ,इक बार तो डूबते डूबते बचे थे ,कितना पानी होता था ,कितने लोग नहाते थे ,गाय,बैल ,मवेशी ,पानी पीते थे ,तिथि त्योहारों में कितनी भीड़ भाड़ हो जाती थी इस तालाब के किनारे ,अब बस किनारे बचे है ,वो भी देखने भर के |
लोगो ने तालाब जैसी सार्वजनिक निस्तार के स्थानों को भी निजी मान कर बेच दिया ,लोगो ने खरीद लिया और अब खेतिया की जा रही है ,गावो का जल स्तर नीचे चला गया ,सब कुए ,बावलिया सूख गई ,जो बरसात आने तक गाव वालो की प्यास बुझाती थी ख़ुद प्यासी हो गई |
उसकी प्यास कोईं बुझायेगा ?,
प्यासा,प्यासे की प्यास कैसे बुझाये ?
राम खिलावन का चिंतन यही है ,हमी ने अपने ताबूत बनाये है हमी ने अपना इतिहास लिखा है और हमी अब अपना भविष्य लिख रहे है ,वर्तमान जो है, सामने है |
वर्तमान की लेखनी को ही,भूत की स्याही में डुबो कर भविष्य लिखा जाता है |
कौन लिखेगा ?
हम,तुम जिन्हें केवल अपने से मतलब है सोच का दायरा हम दो और हमारे दो ,बाकि को भाड़ माँ जाने दो|
इस देश में, इस प्रदेश में ,खूब विकाश हुआ ,विकाश पुरूष पैदा हुए ,कुछ मर गए और कुछ पैदा हो गए विकाश करने ,ये बात अलग है की विकाश किसका हुआ ,ये शोध का विषय नही है आखो पर जोर डाले सब दीखता है ,बस आपके मोतिया बिन्दु भर न हो |
इन विकाश पुरुषों की छाया में अविकसित पुरुषों का विकाश हुआ और हम सब विकसित हो चले ,और विकसित हो कर ,एक दुसरे के सामने खड़े है |
हम तुम्हे देख रहे
है ,तुम हमें ,तुम हमारे दोष गिना रहे हो ,हम तुम्हारे ,और क्या कर रहे है ?विकाश ही तो कर रहे है ,विकसित लोग क्या करेंगे विकाश ही तो करेंगे ,और कैसा विकाश होता है देखो हमने अपने गाव का तालाब सूखा दिया ,उसमे खेती कराने के लिए रस्ते बना दिए चलने के लिए ,रहने के लिये मकान बना लिए ,और कैसा विकाश होता है ,विकाश पुरुषों की छाया में जो बताया वही तो किया है ,अब तालाब सूख गया तो हम क्या करे ,बिना सूखाये क्या ये सब विकाश होता ?
हम विकसित हो गए है ,पर सहनशील कम हो गये है |
हम संख्या में ज्यादा हो गए है ,पर गुडवत्ता में कम हो गए है|
हमारा छोटा सा गाव बडा हो गया है पर हम सिकुड़ गये है |
जुड़ने की कोशिश में टूट गए है|
टूटा हुआ विकाश लिए घूम रहे है ,हम तुम |
वो परम्पराए ,वो सभ्य्ताये कहा खो गई ,क्या तालाब के साथ वो भी सूख गई ?
कब तक हम बड़े बड़े नामो की माला जपेंगे ,ये देश इसका है ,ये देश उसका है कब तक ?
कब कहेंगे की ये देश मेरा है हमारा है |
राम खिलावन का चिंतन यही है
झील ,ताल सागरों को डाटते है क्या करे |
हंसो को उपाधि ,गीध बाटते है क्या करे |
Wednesday, June 24, 2009
राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन चिंतन कर रहे
थे......................................
सूखी है सारी खेतिया ,जंगल उदास है
पानी बरस रहा है ,समन्दर के पास में
का करे राम खिलावन और का करे
सरकार ,जो भी हो ,फर्क नही
पड़ता ,बदलो को
बदल किसी सरकार के अधीन तो है नही ,की सेवाए समाप्त कर दी जायेगी ,या वेतन वृधि रोक दी जायेगी ,या फ़िर लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा ,जिला बद्दर कर दिया जाएगा ,विभागीय जाच बैठा दोगे ,क्या कर लोगे ,बलभद्र ,बोलो
बलभद्र शांत मुद्रा में बैठे रहे ,बिना कुछ चू चा किए ,उन्होंने इसी में अपनी भलाई समझी
राम खिलावन बोले शांत बैठो और बिना कुछ बोले इंतजार करो ,यदि कुछ चू चा करोंगे और ये बात मुख्विरो द्वारा इन्द्र देव तक पहुच गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे बच्चू
अरे इसी लिए तो मरे हुए बैठे है देख नही रहे
बादल ,बदलियों के साथ टहल रहे है हीरो होंडा में, देखो तो कभी यहाँ तो कभी वहा ,पर नीचे बरसने का नाम नही ले रहे ,स्पीड तो देखो ,बादल तो आवारा पुराना है पर बदलियों को तो देखो कैसे चिपक कर सटी है और सटे सटे उडे जा रहे है जाने कहा जा कर ,बरसेंगे कुछ कहा नही जा सकता ,हम तो कभी इधर तो कभी उधर ही देखते रह जाते है,गर्दन घुमाये घुमाये के ससुरी दरद करने लगी है ,की कोई बादल हीरो होंडा में तो कोई सुजुकी में बदलियों को बैठाये इधर से उधर ,उधर से इधर घुमाये पड़ा है ,बरसने नही दे रहा है और न ही ख़ुद बरस रहा है ,तरस रहे है हम भइया टैप लोग
राम खिलावन बोले आज ,राम बक्स नही दिख रहे कहा है ,मंद बुध ?
अरे हम का जानी कहा है नोबल पुरुस्कार विजेता ?
राम खिलावन बोले सुनो बलभद्र ,सूखी है सारी खेतिया ओ जंगल उदास है ,इ बदरा के चक्कर माँ
सूखी .सूखा हुआ तो राहत कार्य तो होंगे ,काहे ,का कहत हो ?
राहत कार्य से राहत किसको मिलती है ?
राहत सुखा ग्रस्त लोंगो को कम ,गीला ग्रस्त लोंगो को भी मिलती है ,कल पटवारी यही तो कह रहा था ,मार्किट में साईकिल से उतर के ,की सुनो बलभद्र ,पानी बरसे ,न बरसे ,राहत कार्य की फ़ैल चलने को कुलबुला रही है ,बड़े बाबू की टेबल से ..................
अब देखो कित्ता टाइम लगे ,ये बात अलग है
जंगल उदास है ,शेर खान अब बचे नही तो जंगल में का मंगल होगा
हीरो होंडा ,जंगल की तरफ़ जा नही रही सो अलग की बादल .बदलियों को chipaka के उसी तरफ़ ले जाए और बरस जाए जो होगा देखा जाएगा कम से कम जंगल की उदासी तो कम हो ,शेर खान हो न हो जंगल की ............
तो कम हो
समन्दर के पास पानी बरस रहा तो क्या हुआ ?
बलभद्र ,क्या समन्दर में कुछ हो जाएगा ?
न हमने समन्दर देखा न पानी हम क्या कहे बलभद्र बोल कर राम खिलावन की तरफ़ niharne लगे
राम खिलावन बोले की भइया ,सूखा पड़ेगा तो सब dikhane लगेगा ,रत को क्या दिन में भी तारे dikhege
बिना soye dikhege बलभद्र बोले
सोना तो tab नसीब होगा जब पेट भरा होगा ,khali पेट sone की aadat dalo बलभद्र नही तो maroge ,aadat क्या daale marana ही तो है चाहे bhare पेट मरे या khali क्या फर्क पड़ता है
khali पेट में aatma bhatakti rahegi
to क्या bhare पेट में aatma को शान्ति मिल जायेगी ,bhatkegi नही ?
aatma का भोजन और पेट का कोई सम्बन्ध नही है ,aatma का भोजन kheto में नही ugta ,बलभद्र
वो तो कुछ और ही है राम खिलावन बोले तभी बदलो का एक jhund आया और बलभद्र सहित राम खिलावन को bhiga गया ..........................
moula megh दे पानी दे ..................पानी दे .............................
गाते हुए राम खिलावन और बलभद्र पानी में bhigane लगे
Saturday, June 20, 2009
राम खिलावन हाजिर है

कहो कहा हो ,मोहन प्यारे ,राम खिलावन मन ही मन ,खोज रहे थे ,और वो मिल नही रहे थे ,मिले भी कैसे जब हो तब ,बलभद्र अपनी अकल से बोले ,कहे दिमाग ख़राब किए रहते हो दादा ,ये सब खोज बिन में ,और अगर मिल भी गए तो का करोगे ,देश को सुधारोगे या प्रदेश को ,कलजुग लगा है तुम्ही बताते फिरते हो ,का कर लेगे, का जुग बदल देगे राम राज ले आयेगे ,ठेले में रख कर, का राम राज भाजी तरकारी है की लो ले आए राम राज |धरो अब सिरहाने | राम राज को |का होगा जरा हमारा भी ज्ञान vardhan किया जाए ,बलभद्र ये बोल कर palthi मार के viraj गए |राम खिलावन बोले ,बेटा बलभद्र ,तुम नही samjhoge ,ये राम राज की bate ,जब नही samjhenge तो काहे को आए राम राज ,तो का तुम ये samjhate हो की तुम जो राज अभी चल रहा है उसे jante हो ? बलभद्र एक नेक नागरिक की तरह बोले ,नही ,तब राम खिलावन बोले ,तो का जानते हो ?
बलभद्र बोले हम तो , तुमहि जानते है |
काहे ,और सब मर गए का ,की नही ,जानते ?
ये सब राज kaj की बातें है ,भइया का jaano और जान के करोगे भी का ,कौन तुम्हारे पास राज पात है ,तुमहि तो बस pakti में lagna आना चाहिए ,आता है की वो भी नही आता ?
वो का होता है ? बलभद्र बोले
कतार ,बे laain एक के बाद एक ,एक के pichhe एक समझे की abhu नही ,वो तो हम हर दिन करते है कभी इस में कभी उस में ,
Friday, June 19, 2009
राम खिलावन हाजिर है
राम खिलावन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से बोल रहे है ,
यत्र नारिश्य पुजनते तत्र रमन्ते देवता ,
भोपाल ,पहुच कर राम खिलावन दंग रह गए ,चिंतन क्या करते सोच भी नही पा रहे थे की ये हो क्या रहा है अपने बाल नोच रहे थे ,ये वही देश है न जहा ये श्लोक लिखा गया है युग बदल गया ,लोग बदल गए रंग बदल गए ,लोगो के ढंग बदल गए ,सोच का तरीका बदल गया , और बदले हुए सोच के साथ सुनहरे कल की ओर बढ़ चले ,बढ़ चले क्या बढ़ गए और छा गए अखबारों में सुर्खियों में छोटे मोटे काम करोगे ,छोटे बने रहोगे ,छोटे काम करोगे , नए युग में लोग क्या कहेगे छोटी सोच का छोटा जादू ,तुम बड़ा जादू दिखाना चाहते हो न क्यो की तुम्हारी सोच बड़ी है ,करो किसने मना किया है ,बड़े काम के साथ छोटे काम भी करो ,क्यो की कोई काम छोटा नही होता पर खोटा काम मत करो ,खोटे सिक्के बाजार में बहुत दिन नही चलते ,चलते है तो अर्थ व्यवस्था को चोट पहुचाते है और चोट खाई हुई बात ,व्यवस्था ,व्यक्ति ,समाज पंगु हो जाती है सुधरने में वक्त लगता है ,किसी को बनने में जितना समय लगता है उससे कम समय उसे नष्ट करने में लगता है
राम खिलावन का मन ,मनो का हो गया और मनो का मन लिए राम खिलावन चिंतन कर रहे है
क्या हो गई मेरे देश की हालत ,क्या होगा अंजाम
कितना बदल गया इन्शान ,
ओ कितना बदल गया इन्शान
मानव से हम महा मानव बनने की जुगत में है ,क्या इसी तरह हम महा मानव बनेगे की मदद की आड़ में इज्जत से खिलवाड़ ...............
राम खिलावन ने अपने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी ,हार जीत ,सायद आपने भी पठी होगी ,उस कहानी में एक थे बाबा भारती और एक था डाकू खड़क सिंह ,बाबा भारती के पास एक घोड़ा था जिसे वो बहुत प्यार करते थे ,डाकू खड़क सिंह उस घोडे को ,अपाहिज बन कर ,एक राह के किनारे पड़ा रहा और जब बाबा भारती वह से गुजरे तो मदद मांगी की मुझ अपाहिज को अगले गाव तक छोड़ दो ,बाबा भारती सहज भाव से मदद करते थे ,वे घोडे से उतर गए और उन्होंने अपाहिज बने डाकू खड़क सिंह को घोडे में बिठा दिया थोडी दूर तक तो डाकू खड़क सिंह ,अपाहिजों की तरह घोडे में पड़ा रहा ,और बाबा भारती ,अपने प्यारे घोडे की लगाम हाथ में लिए आगे आगे चलते रहे की अचानक एक झटके से अपाहिज बना डाकू खड़क सिंह ,अपने मूळ रूप में आ गया और घोडे को ले भगा ,बाबा भारती देखते ही रह गए ,अब डाकू खड़क सिंह को अपनी मन चाही चीज मिल गई थी और वो बहुत खुश हो रहा था ,बाबा भारती पैदल ही चल रहे थे ,डाकू खड़क सिंह लौटा और बाबा भारती से बोला देखो तुम उस तरह नही दे रहे थे तो इस तरह मैंने ले लिया घोडे को ,बाबा भारती बस इतना बोले ,खड़क सिंह तुमने घोड़ा ले लिया कोई बात नही ,पर कभी किसीसे यह मत कहना की मैंने इस तरह घोडे को लिया है या छुडाया है अपाहिज बन कर ,नही तो लोगो का गरीबो के ऊपर से विश्वाश उठ जाएगा ,तुम घोड़ा ले जाओ ...........
दुसरे दिन जब रोज की तरह जब बाबा भारती ,सुबह जगे तो घोड़ा अपनी जगह ही मिला ,डाकू खड़क सिंह ने घोड़ा
लौटा दिया था और वह फ़िर बाबा भारती के पास आ गया था ........
कहानी कुछ इसी तरह है ,अब हम जो कहानिया बना रहे है , उनमे कौन बाबा भारती हैऔर कौन डाकू खड़क सिंह ,कहना मुश्किल है ,क्यो की युग बदल गया युग का धर्म बदल गया ,लोग बदल गए ,लोगो के विचार बदल गए ,लेकिन ये बदला किसने ?
समाज बदल गया ,सभ्यता बदल गई ,देश बदल गया ,प्रदेश बदल गया सब सुनहरे कल की ओर दौड़ रहे है अंधे ,लंगडे सब ,कोई पात्रता नही सब बराबर है दौड़ में ,कोई धक्का दे कर ,कोई सीने में ,लात रख कर ,कोई सब कुछ लूट कर ,कोई सब कुछ लूटा कर दौड़ रहे है कुछ लुट लूटा गए ,कुछ लूट लिए गए ,लुटने वाले और लूटने वाले सब कहा के है यह कोई खोज और शोध का विषय नही है अपने मन को टटोलिये सब मिल जाएगा सब दिख जाएगा ............................................
राम खिलावन कह रहे है रहिमन पानी राखिये ,बिन पानी सब सून ..............................
यह भी कह रहे है की यहाँ ,जहा नारी की इज्जत नही है तो देवता भी नही होंगे वहा ,यहाँ ................जब भगवन ही नही है तो भक्त भी नही होंगे वहा ,यहाँ ,तो फ़िर क्या होगा ,
राम खिलावन का चिन्तन जारी है ,क्या हम वाकई सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे है .............या बढ़ गए है
यत्र नारिश्य पुजनते तत्र रमन्ते देवता ,
भोपाल ,पहुच कर राम खिलावन दंग रह गए ,चिंतन क्या करते सोच भी नही पा रहे थे की ये हो क्या रहा है अपने बाल नोच रहे थे ,ये वही देश है न जहा ये श्लोक लिखा गया है युग बदल गया ,लोग बदल गए रंग बदल गए ,लोगो के ढंग बदल गए ,सोच का तरीका बदल गया , और बदले हुए सोच के साथ सुनहरे कल की ओर बढ़ चले ,बढ़ चले क्या बढ़ गए और छा गए अखबारों में सुर्खियों में छोटे मोटे काम करोगे ,छोटे बने रहोगे ,छोटे काम करोगे , नए युग में लोग क्या कहेगे छोटी सोच का छोटा जादू ,तुम बड़ा जादू दिखाना चाहते हो न क्यो की तुम्हारी सोच बड़ी है ,करो किसने मना किया है ,बड़े काम के साथ छोटे काम भी करो ,क्यो की कोई काम छोटा नही होता पर खोटा काम मत करो ,खोटे सिक्के बाजार में बहुत दिन नही चलते ,चलते है तो अर्थ व्यवस्था को चोट पहुचाते है और चोट खाई हुई बात ,व्यवस्था ,व्यक्ति ,समाज पंगु हो जाती है सुधरने में वक्त लगता है ,किसी को बनने में जितना समय लगता है उससे कम समय उसे नष्ट करने में लगता है
राम खिलावन का मन ,मनो का हो गया और मनो का मन लिए राम खिलावन चिंतन कर रहे है
क्या हो गई मेरे देश की हालत ,क्या होगा अंजाम
कितना बदल गया इन्शान ,
ओ कितना बदल गया इन्शान
मानव से हम महा मानव बनने की जुगत में है ,क्या इसी तरह हम महा मानव बनेगे की मदद की आड़ में इज्जत से खिलवाड़ ...............
राम खिलावन ने अपने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी ,हार जीत ,सायद आपने भी पठी होगी ,उस कहानी में एक थे बाबा भारती और एक था डाकू खड़क सिंह ,बाबा भारती के पास एक घोड़ा था जिसे वो बहुत प्यार करते थे ,डाकू खड़क सिंह उस घोडे को ,अपाहिज बन कर ,एक राह के किनारे पड़ा रहा और जब बाबा भारती वह से गुजरे तो मदद मांगी की मुझ अपाहिज को अगले गाव तक छोड़ दो ,बाबा भारती सहज भाव से मदद करते थे ,वे घोडे से उतर गए और उन्होंने अपाहिज बने डाकू खड़क सिंह को घोडे में बिठा दिया थोडी दूर तक तो डाकू खड़क सिंह ,अपाहिजों की तरह घोडे में पड़ा रहा ,और बाबा भारती ,अपने प्यारे घोडे की लगाम हाथ में लिए आगे आगे चलते रहे की अचानक एक झटके से अपाहिज बना डाकू खड़क सिंह ,अपने मूळ रूप में आ गया और घोडे को ले भगा ,बाबा भारती देखते ही रह गए ,अब डाकू खड़क सिंह को अपनी मन चाही चीज मिल गई थी और वो बहुत खुश हो रहा था ,बाबा भारती पैदल ही चल रहे थे ,डाकू खड़क सिंह लौटा और बाबा भारती से बोला देखो तुम उस तरह नही दे रहे थे तो इस तरह मैंने ले लिया घोडे को ,बाबा भारती बस इतना बोले ,खड़क सिंह तुमने घोड़ा ले लिया कोई बात नही ,पर कभी किसीसे यह मत कहना की मैंने इस तरह घोडे को लिया है या छुडाया है अपाहिज बन कर ,नही तो लोगो का गरीबो के ऊपर से विश्वाश उठ जाएगा ,तुम घोड़ा ले जाओ ...........
दुसरे दिन जब रोज की तरह जब बाबा भारती ,सुबह जगे तो घोड़ा अपनी जगह ही मिला ,डाकू खड़क सिंह ने घोड़ा
लौटा दिया था और वह फ़िर बाबा भारती के पास आ गया था ........
कहानी कुछ इसी तरह है ,अब हम जो कहानिया बना रहे है , उनमे कौन बाबा भारती हैऔर कौन डाकू खड़क सिंह ,कहना मुश्किल है ,क्यो की युग बदल गया युग का धर्म बदल गया ,लोग बदल गए ,लोगो के विचार बदल गए ,लेकिन ये बदला किसने ?
समाज बदल गया ,सभ्यता बदल गई ,देश बदल गया ,प्रदेश बदल गया सब सुनहरे कल की ओर दौड़ रहे है अंधे ,लंगडे सब ,कोई पात्रता नही सब बराबर है दौड़ में ,कोई धक्का दे कर ,कोई सीने में ,लात रख कर ,कोई सब कुछ लूट कर ,कोई सब कुछ लूटा कर दौड़ रहे है कुछ लुट लूटा गए ,कुछ लूट लिए गए ,लुटने वाले और लूटने वाले सब कहा के है यह कोई खोज और शोध का विषय नही है अपने मन को टटोलिये सब मिल जाएगा सब दिख जाएगा ............................................
राम खिलावन कह रहे है रहिमन पानी राखिये ,बिन पानी सब सून ..............................
यह भी कह रहे है की यहाँ ,जहा नारी की इज्जत नही है तो देवता भी नही होंगे वहा ,यहाँ ................जब भगवन ही नही है तो भक्त भी नही होंगे वहा ,यहाँ ,तो फ़िर क्या होगा ,
राम खिलावन का चिन्तन जारी है ,क्या हम वाकई सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे है .............या बढ़ गए है
Thursday, June 18, 2009
राम खिलावन हाजिर है

पानी पर पहरा ,लगा है ,बलभद्र ने ताजे समाचारों से राम खिलावन को अवगत कराया पहरा लगा है मतलब ,पानी को नजर बंद कर दिया या पानी ने कुछ लफडा किया है पानी ने नही लोगो ने लफडा किया है और सालो साल से कर रहे है पानी के साथ पानी की न कभी इज्जत की और न ही सोचा की जल न होगा तो कल भी न होगा ,जो जितना कर सकता था बर्बाद उतना किया अब पानी की बारी है तो लोगो ने पानी पर पहरा लगा दिया कर क्या रहे है लोग राम खिलावन ने बोला
रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून
पानी गए न उबरे मोटी मानुष चू न
रहिमन दादा की बाते लोग भूल गए ,रहिमन क्या केवल किताबो के पन्नो में ही रह गए क्या ? दफ़न होके वाह मेरे देश वाह ,और देश के नागरिक तो अदभुत है ही ,कितने पाखंडी है हम ,कभी सोचा है आपने अपने बारे में ,पाखंड ओठे टहल रहे है हम गर्भवती महिलाओ की तरह ,आ,उ करते ,कब करेंगे कुछ ,या यूही ,अपने गिरेबान में न झांक कर दूसरो पर ही दोष
nikaalte nikaalte मर जायेंगे ,marenge क्या मरे तो है ही ,येअलग बात है की jalaaye बाद में जायेंगे
किसी दिन हम हवा को भी puuri nigalane wale है कहो कैसी रही ,बलभद्र
सरकार को तो कभी किसी को दोष देते हम aghaate नही है पेट नही भरता हमारा ,कभी bharega भी नही ,khali पेट बजा रहे हो बलभद्र ,कभी भरा पेट bajaaye हो बलभद्र ,bajana भी नही मर जाओगे
खाली dabba ,खाली botal लिए ghum रहे है पानी के लिए ,videshi तो सोना jwaharat ही ले गए थे पानी तो deshwashiyo के लिए छोड़ गए थे उसे हम ले मरे ,talabo से itana प्यार था की उस पर घर बन गए ,nadiyo से
भी हम प्यार करते थे की puujate थे ,अब कहा गई पूजा और कहा गई वो nadi
koin ले गया ,हमसे chura के ,हमसे भी बड़ा wala rha होगा वो ,है अपने में से ही ,hariyali किसने kaati पड़ोसी ने ,talab पर imarate किसने banai पड़ोसी ने हमने कुछ नही किया हमेशा की तरह ...........हम तो बस जी रहे है क्यो की ...................नही आती
राम खिलावन और बलभद्र aapas में बाते कर रहे थे की तभी किसी ने बोला हम vikash कर रहे है की vinash कुछ बोलो राम खिलावन ,हम sunhare कल की और ja रहे है या .............pahucha गए है ,बोलो न राम खिलावन
बलभद्र सोच रहा था ,sala daru भी तो पानी से बनती है ,usake लिए पानी की कमी नही है ,कोई पहरा नही है
Wednesday, June 17, 2009
राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन चुप चाप परे है ,खटिया में ,और चिंतन जारी है
रहिमन चुप हो बैठिये देख दिनन के फेर
अच्छे दिन जब आयेगे एको लगे न देर
राम खिलावन दिनों के फेर में बदलाहट देख ,रहीम की बात याद कर चिंतन कर रहे है की बिना ,अनुभव के तो रहीम दादा ने ये लिखा न होगा ,उनके भी दिन फिरे होगे जैसे घूर के फिरते है ,घूर पड़ा रहता है ,चुप चाप, लोग और घूर उसी घूर में डालते रहते है ,घूर में घूर नही डालेंगे तो किसमे डालेंगे ? तुम्हारे ऊपर फेके ,क्या ?
फेक दो ,हम भी घूर से क्या कम है ,लेकिनयाद रखना , घूर के भी दिन फिरते है बोलो क्या इरादा है ?अभी तो फेकेगे ही फ़िर की फ़िर देखि जायेगी
हम सब एक दुसरे के ऊपर क्या नीचे से भी घूर फेके जा रहे है अहिर्निश आस पास जो है सो है ही ,दूर से दूर बैठे जान और अनजान लोंगो पर भी घूर फेकने में पूरी ताकत लगाये रहते है पूरी उर्जा को हम दुसरे की बुराई देखने में ही झोके रहते है ,दुसरे की अच्छाई देखने में हमारी आँखों को मोतिया बिन्दु न हो जाए इस डर से देखते ही नही बलभद्र यही सोचता है और इलाके भर के लोगो के बारे में उसे वो हर बात पत्ता है जो उन्हें ख़ुद नही मालूम ,लोग
अपने बारे में सही सही पत्ता लगाने बलभद्र के पास आते है और बलभद्र उन्हें उनके बारे में वो सभी बाते दिल खोल कर बताते जो व्यक्ति विशेस को भी नही पत्ता होता और वह अपने बारे में इतनी सारी बाते जान कर , वो हट प्रद हो जाते,अचकचिया जाते किम कर्तव्य की भूमिका निभाने लगते और इस रोल को वे बखूभी निभाते निभाते घर पहुचते ,और मुह ओरमा के चित हो कर ,खटिया में धस जाते ,और धसे धसे कब सो जाते उन्हें ख़ुद पत्ता नही लगता जैसे उन्हें ख़ुद के बारे में पत्ता नही होता ,खैर फ़िर उनकी दयामयी पत्नी यानि की अर्धांगनी ,उस बेसुरे को जगाती ,जो बेसुध होते ,सुध में आते और फ़िर किग्न्कोंग की तरह अपने कर्तव्य शुरू कर देते
बलभद्र के पास सब का ईन्शाय्क्लूपिदिया है आप का भी है ...........................अपने बारे में यदि जानना हो तो ,आप बलभद्र से संपर्क कर सकते है
खैर ,मोतिया बिन्दु के डर से डरे नही ,कुछ नही होगा ,जब होना होगा तब आप रोक भी नही सकते ,हा ये बात जरुर है की यदि आप दूसरो की अच्छैया देखना सुरू कर देंगे तो निश्चित है की आपको मोतिया बिन्दु का प्रकोप नही होगा ,ये सब आप पर निर्भर करता है की आप क्या चाहते है ,घूर के दिन भी फिरते है ,आप के भी फिरेंगे ,हा घूर फिकवाते रहे आप ,अपने आप पर,पर उनका क्या होगा जो घूर फेक रहे है और फेके जा रहे है बिना रोक टोक ,
राम खिलावन का चिंतन यही है
निदक नियरे रखिये आगन कुटी छवाए ,बिन पानी साबुन बिना निर्मल होय सहाय
राम खिलावन के चिंतन से आप कितना सहमत है ये जरुरी नही है पर राम खिलावन का चिंतन जारी है साथ ही बलभद्र का भी .....................................
Tuesday, June 16, 2009
राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन सरकार को सरकते हुए देख रहे थे ,सरकते सरकते सरकार ,बेकरार हो गई थी ,राम खिलावन का चिंतन था की सरकार , बेकरार नही बेकार हो गई थी , बेकरार हो कर सरकार कुछ कदम उठाना चाह रही थी ,लेकिन उठा नही पा रही थी ,कोई कह रहा था की ,लकवा लग गया है ,राम खिलावन कह रहे थे की बहुत दिनों तक जिस अंग का उपयोग नही करोगे ,तो क्या होगा , यही होगा बलभद्र जो पास ही ताजे अखबार की सुर्खियों से ले कर ,सब कुछ पठने में तलीन थे अचानक बोल पड़े वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा राम खिलावन बिफर पड़े ,ये क्या बात हुई ,जो सरकार को मंजूर होगा वह क्या नही होगा ? काहे को होगा ,बलभद्र बोले ,राम खिलावन से रहा नही गया ,बोले ,क्यो बे क्यो नही होगा ?
काकू तुम भी न ,कभी कभी जान के भी अनजान बने रहते हो ,हा ,हा बोलो बोलो क्या बोलना चाह रहे हो बे ,
काकू क्या तुम्हे मालूम है की खुदा की क्या मर्जी है ,जो हो जाता है वही तुम खुदा की मर्जी समझ लेते हो ,और कहते हो की यही खुदा की मर्जी है ,खुदा की मर्जी के आगे किसकी क्या चली है ,बोलो यही कहते हो ना हा बे यही कहता हु आगे बोल, राम खिलावन अपनी भ्रगुती तानते हुए बोले , काकू सुनो _क्या सरकार भ्रस्ताचार फैलाना चाहती है ?बलभद्र अपनी कछनी को एक विशेस दिशा की और घुमाते हुए बोले
राम खिलावन बोले _नही तो और हमने सुना भी नही की सरकार की कोई मनसा है ,तो फ़िर काहे बगरा है चारो और बिना सरकार की कोई योजना के ?,यह मान लिया जाए की सरकार की योजना के बिना भी बहुत सी योजनाये चलती रहती है क्या ? राम खिलावन भौचके से बोलते और सुनते रहे और यह भी सोच रहे थे की बलभद्र को ये कैसी बाते सूझने लगी है ये तो फिलासफर जैसी बाते करता है साला
बलभद्र बोले काकू ,सुनो जब खुदा की मर्जी के बिना कोई पत्ता नही हिलता तो बिना सरकार के मर्जी के कुछ हिल सकता है कोई योजना चल सकती है क्या तुम्ही बताओ
तो क्या यह मान लिया जाए की खुदा की और सरकार की मर्जी एक है और दोनों मिले हुए है और हम खुदा के बन्दे यहाँ अपनी.....................
कुल मिला , कर धक्का खाए गाजी मिया , मजा मारे मुजफ्फर
यही राम खिलावन का चिंतन उभर कर bahar आया
खैर जो हो,सो हो ,राम खिलावन आज बलभद्र की bato से avibhut हो चले थे और सोच रहे थे की बलभद्र को अपनी gaing में samil कर कुछ बुरा नही किया है बलभद्र के ये krantikari विचार सुन कर राम खिलावन की pulli thhili हो गई थी चिंतन कर रहे थे की क्या बलभद्र सही कह रहा था की दोनों मिले हुए है ,कुछ न कुछ तो है
और ये कुछ को तो राम खिलावन
pahale से ही talash रहे है ,मिला नही ये अलग बात है
राम खिलावन का चिंतन jari है ,बलभद्र अपनी
saykil में sawar हो दूर निकल गए थे कुछ ये gungunaate हुए ...........
ये malik तेरे बन्दे हम ..............
ease हो हमारे करम ......................................
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