Thursday, June 25, 2009

राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन गाव के सूखे तालाब के किनारे ,लगे पीपल के पेड़ से सटे चबूतरे में बैठे ,चिंतन कर रहे है ,

झील ताल सागरों को डाटते है क्या करे|

हंसो को उपाधि ,गीध बाटते है क्या करे |

सोच रहे है ,की कितना इस तालाब में नहाया करते थे ,इक बार तो डूबते डूबते बचे थे ,कितना पानी होता था ,कितने लोग नहाते थे ,गाय,बैल ,मवेशी ,पानी पीते थे ,तिथि त्योहारों में कितनी भीड़ भाड़ हो जाती थी इस तालाब के किनारे ,अब बस किनारे बचे है ,वो भी देखने भर के |

लोगो ने तालाब जैसी सार्वजनिक निस्तार के स्थानों को भी निजी मान कर बेच दिया ,लोगो ने खरीद लिया और अब खेतिया की जा रही है ,गावो का जल स्तर नीचे चला गया ,सब कुए ,बावलिया सूख गई ,जो बरसात आने तक गाव वालो की प्यास बुझाती थी ख़ुद प्यासी हो गई |

उसकी प्यास कोईं बुझायेगा ?,

प्यासा,प्यासे की प्यास कैसे बुझाये ?

राम खिलावन का चिंतन यही है ,हमी ने अपने ताबूत बनाये है हमी ने अपना इतिहास लिखा है और हमी अब अपना भविष्य लिख रहे है ,वर्तमान जो है, सामने है |

वर्तमान की लेखनी को ही,भूत की स्याही में डुबो कर भविष्य लिखा जाता है |

कौन लिखेगा ?

हम,तुम जिन्हें केवल अपने से मतलब है सोच का दायरा हम दो और हमारे दो ,बाकि को भाड़ माँ जाने दो|

इस देश में, इस प्रदेश में ,खूब विकाश हुआ ,विकाश पुरूष पैदा हुए ,कुछ मर गए और कुछ पैदा हो गए विकाश करने ,ये बात अलग है की विकाश किसका हुआ ,ये शोध का विषय नही है आखो पर जोर डाले सब दीखता है ,बस आपके मोतिया बिन्दु भर हो |

इन विकाश पुरुषों की छाया में अविकसित पुरुषों का विकाश हुआ और हम सब विकसित हो चले ,और विकसित हो कर ,एक दुसरे के सामने खड़े है |

हम तुम्हे देख रहे

है ,तुम हमें ,तुम हमारे दोष गिना रहे हो ,हम तुम्हारे ,और क्या कर रहे है ?विकाश ही तो कर रहे है ,विकसित लोग क्या करेंगे विकाश ही तो करेंगे ,और कैसा विकाश होता है देखो हमने अपने गाव का तालाब सूखा दिया ,उसमे खेती कराने के लिए रस्ते बना दिए चलने के लिए ,रहने के लिये मकान बना लिए ,और कैसा विकाश होता है ,विकाश पुरुषों की छाया में जो बताया वही तो किया है ,अब तालाब सूख गया तो हम क्या करे ,बिना सूखाये क्या ये सब विकाश होता ?

हम विकसित हो गए है ,पर सहनशील कम हो गये है |

हम संख्या में ज्यादा हो गए है ,पर गुडवत्ता में कम हो गए है|

हमारा छोटा सा गाव बडा हो गया है पर हम सिकुड़ गये है |

जुड़ने की कोशिश में टूट गए है|

टूटा हुआ विकाश लिए घूम रहे है ,हम तुम |

वो परम्पराए ,वो सभ्य्ताये कहा खो गई ,क्या तालाब के साथ वो भी सूख गई ?

कब तक हम बड़े बड़े नामो की माला जपेंगे ,ये देश इसका है ,ये देश उसका है कब तक ?

कब कहेंगे की ये देश मेरा है हमारा है |

राम खिलावन का चिंतन यही है

झील ,ताल सागरों को डाटते है क्या करे |

हंसो को उपाधि ,गीध बाटते है क्या करे |






Wednesday, June 24, 2009

राम खिलावन हाजिर है


राम खिलावन चिंतन कर रहे

थे......................................

सूखी है सारी खेतिया ,जंगल उदास है

पानी बरस रहा है ,समन्दर के पास में

का करे राम खिलावन और का करे

सरकार ,जो भी हो ,फर्क नही

पड़ता ,बदलो को
बदल किसी सरकार के अधीन तो है नही ,की सेवाए समाप्त कर दी जायेगी ,या वेतन वृधि रोक दी जायेगी ,या फ़िर लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा ,जिला बद्दर कर दिया जाएगा ,विभागीय जाच बैठा दोगे ,क्या कर लोगे ,बलभद्र ,बोलो
बलभद्र शांत मुद्रा में बैठे रहे ,बिना कुछ चू चा किए ,उन्होंने इसी में अपनी भलाई समझी
राम खिलावन बोले शांत बैठो और बिना कुछ बोले इंतजार करो ,यदि कुछ चू चा करोंगे और ये बात मुख्विरो द्वारा इन्द्र देव तक पहुच गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे बच्चू
अरे इसी लिए तो मरे हुए बैठे है देख नही रहे
बादल ,बदलियों के साथ टहल रहे है हीरो होंडा में, देखो तो कभी यहाँ तो कभी वहा ,पर नीचे बरसने का नाम नही ले रहे ,स्पीड तो देखो ,बादल तो आवारा पुराना है पर बदलियों को तो देखो कैसे चिपक कर सटी है और सटे सटे उडे जा रहे है जाने कहा जा कर ,बरसेंगे कुछ कहा नही जा सकता ,हम तो कभी इधर तो कभी उधर ही देखते रह जाते है,गर्दन घुमाये घुमाये के ससुरी दरद करने लगी है ,की कोई बादल हीरो होंडा में तो कोई सुजुकी में बदलियों को बैठाये इधर से उधर ,उधर से इधर घुमाये पड़ा है ,बरसने नही दे रहा है और न ही ख़ुद बरस रहा है ,तरस रहे है हम भइया टैप लोग
राम खिलावन बोले आज ,राम बक्स नही दिख रहे कहा है ,मंद बुध ?
अरे हम का जानी कहा है नोबल पुरुस्कार विजेता ?
राम खिलावन बोले सुनो बलभद्र ,सूखी है सारी खेतिया ओ जंगल उदास है ,इ बदरा के चक्कर माँ
सूखी .सूखा हुआ तो राहत कार्य तो होंगे ,काहे ,का कहत हो ?
राहत कार्य से राहत किसको मिलती है ?
राहत सुखा ग्रस्त लोंगो को कम ,गीला ग्रस्त लोंगो को भी मिलती है ,कल पटवारी यही तो कह रहा था ,मार्किट में साईकिल से उतर के ,की सुनो बलभद्र ,पानी बरसे ,न बरसे ,राहत कार्य की फ़ैल चलने को कुलबुला रही है ,बड़े बाबू की टेबल से ..................
अब देखो कित्ता टाइम लगे ,ये बात अलग है
जंगल उदास है ,शेर खान अब बचे नही तो जंगल में का मंगल होगा
हीरो होंडा ,जंगल की तरफ़ जा नही रही सो अलग की बादल .बदलियों को chipaka के उसी तरफ़ ले जाए और बरस जाए जो होगा देखा जाएगा कम से कम जंगल की उदासी तो कम हो ,शेर खान हो न हो जंगल की ............
तो कम हो
समन्दर के पास पानी बरस रहा तो क्या हुआ ?
बलभद्र ,क्या समन्दर में कुछ हो जाएगा ?
न हमने समन्दर देखा न पानी हम क्या कहे बलभद्र बोल कर राम खिलावन की तरफ़ niharne लगे
राम खिलावन बोले की भइया ,सूखा पड़ेगा तो सब dikhane लगेगा ,रत को क्या दिन में भी तारे dikhege
बिना soye dikhege बलभद्र बोले
सोना तो tab नसीब होगा जब पेट भरा होगा ,khali पेट sone की aadat dalo बलभद्र नही तो maroge ,aadat क्या daale marana ही तो है चाहे bhare पेट मरे या khali क्या फर्क पड़ता है
khali पेट में aatma bhatakti rahegi
to क्या bhare पेट में aatma को शान्ति मिल जायेगी ,bhatkegi नही ?
aatma का भोजन और पेट का कोई सम्बन्ध नही है ,aatma का भोजन kheto में नही ugta ,बलभद्र
वो तो कुछ और ही है राम खिलावन बोले तभी बदलो का एक jhund आया और बलभद्र सहित राम खिलावन को bhiga गया ..........................
moula megh दे पानी दे ..................पानी दे .............................
गाते हुए राम खिलावन और बलभद्र पानी में bhigane लगे

Saturday, June 20, 2009

राम खिलावन हाजिर है



कहो कहा हो ,मोहन प्यारे ,राम खिलावन मन ही मन ,खोज रहे थे ,और वो मिल नही रहे थे ,मिले भी कैसे जब हो तब ,बलभद्र अपनी अकल से बोले ,कहे दिमाग ख़राब किए रहते हो दादा ,ये सब खोज बिन में ,और अगर मिल भी गए तो का करोगे ,देश को सुधारोगे या प्रदेश को ,कलजुग लगा है तुम्ही बताते फिरते हो ,का कर लेगे, का जुग बदल देगे राम राज ले आयेगे ,ठेले में रख कर, का राम राज भाजी तरकारी है की लो ले आए राम राज |धरो अब सिरहाने | राम राज को |का होगा जरा हमारा भी ज्ञान vardhan किया जाए ,बलभद्र ये बोल कर palthi मार के viraj गए |राम खिलावन बोले ,बेटा बलभद्र ,तुम नही samjhoge ,ये राम राज की bate ,जब नही samjhenge तो काहे को आए राम राज ,तो का तुम ये samjhate हो की तुम जो राज अभी चल रहा है उसे jante हो ? बलभद्र एक नेक नागरिक की तरह बोले ,नही ,तब राम खिलावन बोले ,तो का जानते हो ?

बलभद्र बोले हम तो , तुमहि जानते है |

काहे ,और सब मर गए का ,की नही ,जानते ?

ये सब राज kaj की बातें है ,भइया का jaano और जान के करोगे भी का ,कौन तुम्हारे पास राज पात है ,तुमहि तो बस pakti में lagna आना चाहिए ,आता है की वो भी नही आता ?

वो का होता है ? बलभद्र बोले

कतार ,बे laain एक के बाद एक ,एक के pichhe एक समझे की abhu नही ,वो तो हम हर दिन करते है कभी इस में कभी उस में ,

Friday, June 19, 2009

राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से बोल रहे है ,
यत्र नारिश्य पुजनते तत्र रमन्ते देवता ,
भोपाल ,पहुच कर राम खिलावन दंग रह गए ,चिंतन क्या करते सोच भी नही पा रहे थे की ये हो क्या रहा है अपने बाल नोच रहे थे ,ये वही देश है न जहा ये श्लोक लिखा गया है युग बदल गया ,लोग बदल गए रंग बदल गए ,लोगो के ढंग बदल गए ,सोच का तरीका बदल गया , और बदले हुए सोच के साथ सुनहरे कल की ओर बढ़ चले ,बढ़ चले क्या बढ़ गए और छा गए अखबारों में सुर्खियों में छोटे मोटे काम करोगे ,छोटे बने रहोगे ,छोटे काम करोगे , नए युग में लोग क्या कहेगे छोटी सोच का छोटा जादू ,तुम बड़ा जादू दिखाना चाहते हो न क्यो की तुम्हारी सोच बड़ी है ,करो किसने मना किया है ,बड़े काम के साथ छोटे काम भी करो ,क्यो की कोई काम छोटा नही होता पर खोटा काम मत करो ,खोटे सिक्के बाजार में बहुत दिन नही चलते ,चलते है तो अर्थ व्यवस्था को चोट पहुचाते है और चोट खाई हुई बात ,व्यवस्था ,व्यक्ति ,समाज पंगु हो जाती है सुधरने में वक्त लगता है ,किसी को बनने में जितना समय लगता है उससे कम समय उसे नष्ट करने में लगता है
राम खिलावन का मन ,मनो का हो गया और मनो का मन लिए राम खिलावन चिंतन कर रहे है
क्या हो गई मेरे देश की हालत ,क्या होगा अंजाम
कितना बदल गया इन्शान ,
ओ कितना बदल गया इन्शान
मानव से हम महा मानव बनने की जुगत में है ,क्या इसी तरह हम महा मानव बनेगे की मदद की आड़ में इज्जत से खिलवाड़ ...............
राम खिलावन ने अपने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी ,हार जीत ,सायद आपने भी पठी होगी ,उस कहानी में एक थे बाबा भारती और एक था डाकू खड़क सिंह ,बाबा भारती के पास एक घोड़ा था जिसे वो बहुत प्यार करते थे ,डाकू खड़क सिंह उस घोडे को ,अपाहिज बन कर ,एक राह के किनारे पड़ा रहा और जब बाबा भारती वह से गुजरे तो मदद मांगी की मुझ अपाहिज को अगले गाव तक छोड़ दो ,बाबा भारती सहज भाव से मदद करते थे ,वे घोडे से उतर गए और उन्होंने अपाहिज बने डाकू खड़क सिंह को घोडे में बिठा दिया थोडी दूर तक तो डाकू खड़क सिंह ,अपाहिजों की तरह घोडे में पड़ा रहा ,और बाबा भारती ,अपने प्यारे घोडे की लगाम हाथ में लिए आगे आगे चलते रहे की अचानक एक झटके से अपाहिज बना डाकू खड़क सिंह ,अपने मूळ रूप में आ गया और घोडे को ले भगा ,बाबा भारती देखते ही रह गए ,अब डाकू खड़क सिंह को अपनी मन चाही चीज मिल गई थी और वो बहुत खुश हो रहा था ,बाबा भारती पैदल ही चल रहे थे ,डाकू खड़क सिंह लौटा और बाबा भारती से बोला देखो तुम उस तरह नही दे रहे थे तो इस तरह मैंने ले लिया घोडे को ,बाबा भारती बस इतना बोले ,खड़क सिंह तुमने घोड़ा ले लिया कोई बात नही ,पर कभी किसीसे यह मत कहना की मैंने इस तरह घोडे को लिया है या छुडाया है अपाहिज बन कर ,नही तो लोगो का गरीबो के ऊपर से विश्वाश उठ जाएगा ,तुम घोड़ा ले जाओ ...........
दुसरे दिन जब रोज की तरह जब बाबा भारती ,सुबह जगे तो घोड़ा अपनी जगह ही मिला ,डाकू खड़क सिंह ने घोड़ा
लौटा दिया था और वह फ़िर बाबा भारती के पास आ गया था ........
कहानी कुछ इसी तरह है ,अब हम जो कहानिया बना रहे है , उनमे कौन बाबा भारती हैऔर कौन डाकू खड़क सिंह ,कहना मुश्किल है ,क्यो की युग बदल गया युग का धर्म बदल गया ,लोग बदल गए ,लोगो के विचार बदल गए ,लेकिन ये बदला किसने ?
समाज बदल गया ,सभ्यता बदल गई ,देश बदल गया ,प्रदेश बदल गया सब सुनहरे कल की ओर दौड़ रहे है अंधे ,लंगडे सब ,कोई पात्रता नही सब बराबर है दौड़ में ,कोई धक्का दे कर ,कोई सीने में ,लात रख कर ,कोई सब कुछ लूट कर ,कोई सब कुछ लूटा कर दौड़ रहे है कुछ लुट लूटा गए ,कुछ लूट लिए गए ,लुटने वाले और लूटने वाले सब कहा के है यह कोई खोज और शोध का विषय नही है अपने मन को टटोलिये सब मिल जाएगा सब दिख जाएगा ............................................
राम खिलावन कह रहे है रहिमन पानी राखिये ,बिन पानी सब सून ..............................
यह भी कह रहे है की यहाँ ,जहा नारी की इज्जत नही है तो देवता भी नही होंगे वहा ,यहाँ ................जब भगवन ही नही है तो भक्त भी नही होंगे वहा ,यहाँ ,तो फ़िर क्या होगा ,
राम खिलावन का चिन्तन जारी है ,क्या हम वाकई सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे है .............या बढ़ गए है

Thursday, June 18, 2009

राम खिलावन हाजिर है


पानी पर पहरा ,लगा है ,बलभद्र ने ताजे समाचारों से राम खिलावन को अवगत कराया पहरा लगा है मतलब ,पानी को नजर बंद कर दिया या पानी ने कुछ लफडा किया है पानी ने नही लोगो ने लफडा किया है और सालो साल से कर रहे है पानी के साथ पानी की न कभी इज्जत की और न ही सोचा की जल न होगा तो कल भी न होगा ,जो जितना कर सकता था बर्बाद उतना किया अब पानी की बारी है तो लोगो ने पानी पर पहरा लगा दिया कर क्या रहे है लोग राम खिलावन ने बोला
रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून
पानी गए न उबरे मोटी मानुष चू न
रहिमन दादा की बाते लोग भूल गए ,रहिमन क्या केवल किताबो के पन्नो में ही रह गए क्या ? दफ़न होके वाह मेरे देश वाह ,और देश के नागरिक तो अदभुत है ही ,कितने पाखंडी है हम ,कभी सोचा है आपने अपने बारे में ,पाखंड ओठे टहल रहे है हम गर्भवती महिलाओ की तरह ,आ,उ करते ,कब करेंगे कुछ ,या यूही ,अपने गिरेबान में न झांक कर दूसरो पर ही दोष
nikaalte nikaalte मर जायेंगे ,marenge क्या मरे तो है ही ,येअलग बात है की jalaaye बाद में जायेंगे
किसी दिन हम हवा को भी puuri nigalane wale है कहो कैसी रही ,बलभद्र
सरकार को तो कभी किसी को दोष देते हम aghaate नही है पेट नही भरता हमारा ,कभी bharega भी नही ,khali पेट बजा रहे हो बलभद्र ,कभी भरा पेट bajaaye हो बलभद्र ,bajana भी नही मर जाओगे
खाली dabba ,खाली botal लिए ghum रहे है पानी के लिए ,videshi तो सोना jwaharat ही ले गए थे पानी तो deshwashiyo के लिए छोड़ गए थे उसे हम ले मरे ,talabo से itana प्यार था की उस पर घर बन गए ,nadiyo से
भी हम प्यार करते थे की puujate थे ,अब कहा गई पूजा और कहा गई वो nadi
koin ले गया ,हमसे chura के ,हमसे भी बड़ा wala rha होगा वो ,है अपने में से ही ,hariyali किसने kaati पड़ोसी ने ,talab पर imarate किसने banai पड़ोसी ने हमने कुछ नही किया हमेशा की तरह ...........हम तो बस जी रहे है क्यो की ...................नही आती
राम खिलावन और बलभद्र aapas में बाते कर रहे थे की तभी किसी ने बोला हम vikash कर रहे है की vinash कुछ बोलो राम खिलावन ,हम sunhare कल की और ja रहे है या .............pahucha गए है ,बोलो न राम खिलावन
बलभद्र सोच रहा था ,sala daru भी तो पानी से बनती है ,usake लिए पानी की कमी नही है ,कोई पहरा नही है

Wednesday, June 17, 2009

राम खिलावन हाजिर है


राम खिलावन चुप चाप परे है ,खटिया में ,और चिंतन जारी है
रहिमन चुप हो बैठिये देख दिनन के फेर
अच्छे दिन जब आयेगे एको लगे न देर
राम खिलावन दिनों के फेर में बदलाहट देख ,रहीम की बात याद कर चिंतन कर रहे है की बिना ,अनुभव के तो रहीम दादा ने ये लिखा न होगा ,उनके भी दिन फिरे होगे जैसे घूर के फिरते है ,घूर पड़ा रहता है ,चुप चाप, लोग और घूर उसी घूर में डालते रहते है ,घूर में घूर नही डालेंगे तो किसमे डालेंगे ? तुम्हारे ऊपर फेके ,क्या ?
फेक दो ,हम भी घूर से क्या कम है ,लेकिनयाद रखना , घूर के भी दिन फिरते है बोलो क्या इरादा है ?अभी तो फेकेगे ही फ़िर की फ़िर देखि जायेगी
हम सब एक दुसरे के ऊपर क्या नीचे से भी घूर फेके जा रहे है अहिर्निश आस पास जो है सो है ही ,दूर से दूर बैठे जान और अनजान लोंगो पर भी घूर फेकने में पूरी ताकत लगाये रहते है पूरी उर्जा को हम दुसरे की बुराई देखने में ही झोके रहते है ,दुसरे की अच्छाई देखने में हमारी आँखों को मोतिया बिन्दु न हो जाए इस डर से देखते ही नही बलभद्र यही सोचता है और इलाके भर के लोगो के बारे में उसे वो हर बात पत्ता है जो उन्हें ख़ुद नही मालूम ,लोग
अपने बारे में सही सही पत्ता लगाने बलभद्र के पास आते है और बलभद्र उन्हें उनके बारे में वो सभी बाते दिल खोल कर बताते जो व्यक्ति विशेस को भी नही पत्ता होता और वह अपने बारे में इतनी सारी बाते जान कर , वो हट प्रद हो जाते,अचकचिया जाते किम कर्तव्य की भूमिका निभाने लगते और इस रोल को वे बखूभी निभाते निभाते घर पहुचते ,और मुह ओरमा के चित हो कर ,खटिया में धस जाते ,और धसे धसे कब सो जाते उन्हें ख़ुद पत्ता नही लगता जैसे उन्हें ख़ुद के बारे में पत्ता नही होता ,खैर फ़िर उनकी दयामयी पत्नी यानि की अर्धांगनी ,उस बेसुरे को जगाती ,जो बेसुध होते ,सुध में आते और फ़िर किग्न्कोंग की तरह अपने कर्तव्य शुरू कर देते
बलभद्र के पास सब का ईन्शाय्क्लूपिदिया है आप का भी है ...........................अपने बारे में यदि जानना हो तो ,आप बलभद्र से संपर्क कर सकते है
खैर ,मोतिया बिन्दु के डर से डरे नही ,कुछ नही होगा ,जब होना होगा तब आप रोक भी नही सकते ,हा ये बात जरुर है की यदि आप दूसरो की अच्छैया देखना सुरू कर देंगे तो निश्चित है की आपको मोतिया बिन्दु का प्रकोप नही होगा ,ये सब आप पर निर्भर करता है की आप क्या चाहते है ,घूर के दिन भी फिरते है ,आप के भी फिरेंगे ,हा घूर फिकवाते रहे आप ,अपने आप पर,पर उनका क्या होगा जो घूर फेक रहे है और फेके जा रहे है बिना रोक टोक ,
राम खिलावन का चिंतन यही है
निदक नियरे रखिये आगन कुटी छवाए ,बिन पानी साबुन बिना निर्मल होय सहाय
राम खिलावन के चिंतन से आप कितना सहमत है ये जरुरी नही है पर राम खिलावन का चिंतन जारी है साथ ही बलभद्र का भी .....................................










Tuesday, June 16, 2009

राम खिलावन


राम खिलावन हाजिर है






राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन हाजिर है




राम खिलावन सरकार को सरकते हुए देख रहे थे ,सरकते सरकते सरकार ,बेकरार हो गई थी ,राम खिलावन का चिंतन था की सरकार , बेकरार नही बेकार हो गई थी , बेकरार हो कर सरकार कुछ कदम उठाना चाह रही थी ,लेकिन उठा नही पा रही थी ,कोई कह रहा था की ,लकवा लग गया है ,राम खिलावन कह रहे थे की बहुत दिनों तक जिस अंग का उपयोग नही करोगे ,तो क्या होगा , यही होगा बलभद्र जो पास ही ताजे अखबार की सुर्खियों से ले कर ,सब कुछ पठने में तलीन थे अचानक बोल पड़े वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा राम खिलावन बिफर पड़े ,ये क्या बात हुई ,जो सरकार को मंजूर होगा वह क्या नही होगा ? काहे को होगा ,बलभद्र बोले ,राम खिलावन से रहा नही गया ,बोले ,क्यो बे क्यो नही होगा ?
काकू तुम भी न ,कभी कभी जान के भी अनजान बने रहते हो ,हा ,हा बोलो बोलो क्या बोलना चाह रहे हो बे ,
काकू क्या तुम्हे मालूम है की खुदा की क्या मर्जी है ,जो हो जाता है वही तुम खुदा की मर्जी समझ लेते हो ,और कहते हो की यही खुदा की मर्जी है ,खुदा की मर्जी के आगे किसकी क्या चली है ,बोलो यही कहते हो ना हा बे यही कहता हु आगे बोल, राम खिलावन अपनी भ्रगुती तानते हुए बोले , काकू सुनो _क्या सरकार भ्रस्ताचार फैलाना चाहती है ?बलभद्र अपनी कछनी को एक विशेस दिशा की और घुमाते हुए बोले
राम खिलावन बोले _नही तो और हमने सुना भी नही की सरकार की कोई मनसा है ,तो फ़िर काहे बगरा है चारो और बिना सरकार की कोई योजना के ?,यह मान लिया जाए की सरकार की योजना के बिना भी बहुत सी योजनाये चलती रहती है क्या ? राम खिलावन भौचके से बोलते और सुनते रहे और यह भी सोच रहे थे की बलभद्र को ये कैसी बाते सूझने लगी है ये तो फिलासफर जैसी बाते करता है साला
बलभद्र बोले काकू ,सुनो जब खुदा की मर्जी के बिना कोई पत्ता नही हिलता तो बिना सरकार के मर्जी के कुछ हिल सकता है कोई योजना चल सकती है क्या तुम्ही बताओ
तो क्या यह मान लिया जाए की खुदा की और सरकार की मर्जी एक है और दोनों मिले हुए है और हम खुदा के बन्दे यहाँ अपनी.....................
कुल मिला , कर धक्का खाए गाजी मिया , मजा मारे मुजफ्फर
यही राम खिलावन का चिंतन उभर कर bahar आया
खैर जो हो,सो हो ,राम खिलावन आज बलभद्र की bato से avibhut हो चले थे और सोच रहे थे की बलभद्र को अपनी gaing में samil कर कुछ बुरा नही किया है बलभद्र के ये krantikari विचार सुन कर राम खिलावन की pulli thhili हो गई थी चिंतन कर रहे थे की क्या बलभद्र सही कह रहा था की दोनों मिले हुए है ,कुछ न कुछ तो है
और ये कुछ को तो राम खिलावन
pahale से ही talash रहे है ,मिला नही ये अलग बात है
राम खिलावन का चिंतन jari है ,बलभद्र अपनी
saykil में sawar हो दूर निकल गए थे कुछ ये gungunaate हुए ...........
ये malik तेरे बन्दे हम ..............
ease हो हमारे करम ......................................

Sunday, June 14, 2009

राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन यत्र ,तत्र ,सर्वत्र हाजिर है देखे आज कही आपके पास तो नही पहुच गए
कही वे आकार लिए होते है तो , कही निराकार ,आकार से तो आप उन्हें पहचान लेगे यदि आखे हुई ,बटन नही ,पर निराकार होने ,पर कैसे पहचान पायेगे ?
राम खिलावन का चिंतन यह है की आप तो आकार लिए हो पर क्या अपने आप को पहचान पाए हो की हमें ही पहचान पाओगे ?
हम सब बाहर की दुनिया में जीते है अन्दर की दुनिया में जाने में नानी याद आती है ,
राम खिलावन कहते है
बाहर कंकर ,पत्थर ओ ,अन्दर गौरी शंकर
ये उसने कही सुन रखा था सो सब को यही बताया करता था ,
उसकी इन बातो को ज्यादातर लोग अनसुना कर देते है जैसे आप कर रहे है
कुल मिला कर राम खिलावन अन्दर का मॉल बाहर ही तो करने को कह रहे है पर कौन करता है अन्दर का मॉल बाहर , सब बाहर का मॉल अन्दर करने में लगे है ,आप की क्या राय है ,अपने बारे में ,दूसरे के बारे में न कहे तो बेहतर होगा ,पहले अपने आप से पूछ ले ,अपने आप को जान ले ,फ़िर दुसरे के बारे में जाने
राम खिलावन अपने को जानता है दूसरो को जानने की कोशिश भी नही करता क्यो करे ,जान कर करेगा भी क्या? ,आचार डालने के लायक भी तो नही hai koi
बलभद्र कहता है वो सब को जानता है ,अपने को छोड़ कर ,
ये अलग बात है की उसे कोई नही जानता
हम राम को, बलराम को ,जानते है खुदा की खुदाई को भी जानते है ,
पर अपने आप को क्यो जानने की कोशिश नही करते ?
शायद किसी ने रोका है आपको ?
राम खिलावन का चिंतन यह है की किसी ने नही आप ने ख़ुद अपने आप को रोक रखा है
बाहर आनंद है तो अन्दर , परमानद है
राम खिलावन ,मोलश्री के पेड़ के नीचे बैठे',चिंतन कर ही रहे थे की ,बलभद्र प्रशाद ,अपनी कछनी संभालते संभालते पहुच ही गए ,
रामखिलावन बोले ऐचेकताना ,कहा से सवारी आ रही है ?
का बताई ,कहा से आ रहे है ,
सोसायटी गए रहे की कुछ राशन ले आवे ,
तो का हुआ,
राशन सब ख़तम और का ,चले आए मुह लटकाए ,पता नही कोउन लईगा हमारे नाम का राशन?
बोखवा sudama bhi vahi baitha raha ham to chale aaye par wo abhi bhi baitha hai
intjar me
किसके इंतजार में ? रामखिलावन ने पूछा
सोसायटी के बाबू के और किसके ,
अच्छा अच्छा ,हम सोच रहे थे की वहा अफशर ही अफशर होते है खैर ,खुदा खैर करे ,सुदामा का
बलभद्र ,पास ही पड़े ताजे अखवार के समाचार पठने लगे
मुनाफाखोरों को बक्सा नही जाएगा ,बक्सों में बंद कर दिया जायेगा ,सुनो ,सुनों ,सुनो ,
आज की ताजा ख़बर सुनो
और कब खोला जाएगा यह सरकार तय करेगी सुनों ,सुनों ,सुनों
आज की ताजा ख़बर सुनों
रामखिलावन का ताज़ी ख़बर पर चिंतन जारी है ,
ये अलग बात है की उनके बाप रोज ताज़ी ख़बर ही पढ़ते थे ,जो दूसरे दिन बासी हो जाती थी और फ़िर वो भूल जाते थे की कल क्या ख़बर थी ,क्यो की वे वर्त्तमान में जीते थे और रामखिलावन भी अपने बाप की तरह वर्तमान को ही जीता है ,बासी बातो,खयालातो को राम खिलावन लात मारता है
बिल्कुल अपने बाप की तरह
रामखिलावन गुनगुना रहे है लागा चुनरी में दाग छिपाऊ कैसे ,घर जाऊ कैसे ,लागा चुनरी में दाग ............









हम है पखेरू बहुत दूर के

भारत भवन भोपाल , में सालो साल पहले पधारे ए़क कवि की कविता की कुछ पक्तिया ,
आपके लिए
प्रेम से तुम सुनो ,और
सुन कर गुनो,
मन मिलाओगे, तो मन से ,
जुड़ जायेगे ,
वरना हम है ,
पखेरू बहुत दूर के ,
बोलिया ,बोल अपनी ,
उड़ जायेगे

हायकू

रौदते सभी
फ़िर भी खिलते है
घास के फूल

Saturday, June 13, 2009

राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन संत ,सनसनाते हुए आए और धम्म से ओसरी में धरे तखत में बैठ गए सोच रहे थे कहा फस गए ,माया ने तो पहले से फसा रखा है , और ,अब ये नया लफडा ,माया से बडा तो कोई लफडा है नही फ़िर ये फसना,फ़साना क्या ?
सब माया है ,
सब काया है
कही धूप कही छाया है,गुनगुनाते हुए रामखिलावन चिंतन में डूब गए
बलभद्र चुतियाई की बाते बहुत करता है ,कल कह रहा था,
रघुवंस दुबे की बिटिया हरिहर के लौडे से फ़सी थी इसी लिए भागी थी ,कभी कुछ तो कभी कुछ कहता है ,उसकी समझ में तो कुछ आता नही ,ऊपर से हमें समझाने चला है
तभी बलभद्र ताबड़तोड़ सायकिल भगाते ओसारी से आ टकराए ब्रेक तो था नही यदि था भी तो लगते लगते लगता था ,तब तक जो होना होता था हो जाता था ,पिट पिटा जाते थे या छिल छुला जाते थे ,पर सायकिल का ब्रेक था की सुधरने की नाम नही लेता था जैसे बलभद्र ख़ुद सुधर नही रहे है और दुसरे को सुधारने में अपनी उर्जा तो उर्जा गुप्त उर्जा को भी लगाये पड़े है
राम खिलावन दस बार बता चुके है की बल्भदर बेटा उर्जा एक ही होती है सौ ,पचास नही होती है तुम्हारे भेजे में क्यो नही धसती है ये बात ,बता
बलभद्र ,को तो जो समझाना होता था वही समझते और जो नही समझाना होता था उसमे आय बाय करने लगते कुल मिला कर वो अपने मर्जी के गुलाम थे ,बिना मर्जी के कुछ नही करते थे और न ही कोई माई का लल्लू उनसे कुछ करा भी सकता था
रामखिलावन को इस बात का भी मलाल रहा करता है की फ़िर वो कुछ पूछता क्यो है जब उसे करना अपने मन का ही है क्यों मेरा समय जाया करता है ,मनमौजी लाल
फसने फ़साने की बात तो राम खिलावन को पसंद ही नही आई कभी ,उनका दर्शन बहुत स्प्रस्त्त था की माया से बडा कोई फंदा नही है जब उसमे फसे है तो फ़िर ये फसना फ़साना क्या मायने रखता है इस काया में रहते क्या कोई माया के फंदे को तोड़ पाया है रामखिलावन यह भी जानते है की माया बडी ठगनी है,
रामखिलावन ,ठगनी ,ठगने में भी विस्वास नही रखते है वो ठगे जाने में विस्वास रखते है कोई भी ठग ले ,खड़े है रामखिलावन ठगे जाने के लिए आओ और ठगों ,रामखिलावन कहते ,ठग कर करोगे kya ,rakhoge कहा ,कहा जाओगे ,वही जाओगे न jaha से आए हो ,भूल गए kafan में जेब नही होता ,तुमने yadad bana रखे हो ये बात अलग है , kisi ko batana mat nahi to pichhe पड़ जायेंगे तुम्हारे की मेरे kafan में भी bana दो ,जेब क्या करोगे ,फस जाओगे ,fasoge क्या फसे तो हो ही ,क्या कहने है ,आपके, जय हो जय हो
राम खिलावन ,इसी udhed bun में khoye हुए थे की बलभद्र की सायकिल ने unake चिंतन को जोर का jhataka दिया और वे jhatak कर बैठ गए क्यो बे, कहा से chidimaro की तरह आ रहे हो ?
kaku का बताये sunoge तो sunaau ,पंचायत का बड़ा baabu धर लिए गए है
रामखिलावन का चिंतन jari है माया है सब माया है कही धूप कही छाया है

Friday, June 12, 2009

राम खिलावन हाजिर है

राम खिलावन , आज तड़के से दिसा मैदान कर,सैर पर निकल गए थे वैसे तो रोज ही सैर पर जाते है उसके सेहत का राज ही सुबह की सैर है बिना नागा सालो साल से राम खिलावन अपने प्रति यह धर्म निभा रहे है
राम खिलावन का यह चिंतन है की जो धारण किए हो वही धर्म हैजैसे आग _जलना और जलाना धारण किए हुए है अतःआग का धर्म हुआ जलाना और जलाना
पानी _शीतलता ,फूल_महकना ,और प्रथ्वी _सहना धारण किए है
धर्म का मतलब जो धारण किए हो
रामखिलावन ने बलभद्र जो पास ही तमाखू घिस रहे थे से पूछा _
न बे बल्भदर ,आप भी कुछ धारण किए है या फ़िर हर हर गंगे
बलभद्र जिनके मुह में बबासीर है बोले _हम तो जाघिया धारण किए है ,तो हमारा धर्म क्या जाघिया हो गया ?
रामखिलावन बोले अबे ,हर हर गंगे ,ये ध्यान ,धारणा ,समाधी की बाते है ,तू नही समझेगा
बलभद्र बोले तो कौन समझेगा ?जो जाघिया धारण नही किए है ,वो समझेगे ?
बताओ रामखिलावन
रामखिलावन चुप्पी साध लिए ,कौन इस नमूने के मुह लगे
बलभद्र ,रामखिलावन की चुप्पी तोड़ने की नाकाम कोशिश करते रहे ,पर रामखिलावन तो रामखिलावन ,चुप ,तो चुप समझदार के लिए तो इशारा ही काफी है
ऐसा राम खिलावन का सोचना है
वैसे आप जो चाहे सोचे ,सोचे या नोचे राम खिलावन के चिंतन के चिंतन को कोई खलल नही पड़ता
रामखिलावन सोच रहा है की खुदा ने, भगवान ने ,परवरदिगार ने जिसने भी हमें इस लोक में भेजा है पता नही ,पर मानव बना कर ही भेजा और हम क्या बन गए ,यदि मानव बने रहते तो मानव धर्म ही निभाते ,रामखिलावन की जासूसी निगाहे सब देख रही है की कौन मानव है और कौन दानव
रामखिलावन सोच रहा है जो मानव बन कर अवतरित हुए थे और दानव बन गए है और वे दानव धर्म निभा रहे है तो कोई बात नही ,पर ,यदि आप ,अपने आप को मानव समझ रहे है और धर्म निभा रहे है दानव का तो क्या कहने ,हर हर गंगे
रामखिलावन यह भी जनता है की अब तो दानव पैदा ही नही हो रहे है द्वापर,त्रेता होता तो कहा भी जा सकता था अब तो केवल मानव ही पैदा हो रहे है और धर्म निभा रहे है .............................?का
रामखिलावन का चिंतन यही है की क्या हम मानव होते हुए मानव धर्म निभा रहे है ?
निभा रहे है तो जय हो जय हो नही तो --------------------?
रामखिलावन का चिंतन जारी है

Thursday, June 11, 2009

राम खिलावन हाजिर हे.

राम खिलावन आज नहा धो कर तरोताजा तरबूज की तरह महकते मंद मंद मुस्कुराते ओसारी के नीचे खटिया में पड़े `कुछ ' सोच रहे थे क्या सोच रहे थे वो सोच रहे थे की ये कुछ है क्या बला?जब भी कोई लफडा होता है या न भी ho सामान्य रूप से भी तो भी सब यही कहते कुछ तो है,इसी कुछ को राम खिलावन खोज रहा है की कैसे मिलेगा कुछ मिलेगा तो पुछुगा की तू है क्या बे ?राम खिलावन की यह धारणा है की स्रास्टी के उत्पन होने के पीछे भी कुछ तो रहा होगायही कुछ आज राम किलावन का दिमाग ख़राब किए है
ये कुछ ,जो है निराकार है वह कही भी बिना स्वरुप के होता है पर उसे लगता है की बिना आकार के,स्वरुप के वह हो कैसे सकता है भगवान है क्या ?नही कटाईकुछ न कुछ तो है पर ,साला दिखता नही है जैसे हवा,ये भी तो कहा दिखती है,पर रहती है ,चलती है महसूस होती है फ़िर सोचता है की हवा तो प्रकति का हिस्सा है तो क्या यह मान लिया जाए की कुछ भी प्रकृति का हिस्सा है राम खिलावन सोच रहा था की यह क्या अजन्मा है ,इसकी कोई भोतिक काया भी नही दिखती है की गला पकड़ लू और पुछू की क्यो बे तू है क्या ?राम खिलावन इतना तो समझा गया था की कुछ तो लफडा है कुछ के साथ तभी तो दिखता नही फ़िर सोचने लगा की भगवान भी तो नही दिखता ,परवरदिगार खा छिपे हो ,मोहन प्यारे दर्शन दो घनस्याम मोरी अखिया प्यासी रे ............पर खा प्यास बुझती है जिनकी प्यास बुझानी थी द्वापर ,त्रेता में बुझ गई अब तो रटते रहो प्यारे मोरी अखिया प्यासी रे ,प्यासी ही रहेगी अखिया इन अखियो से जब तक कुछ को नहीं लोंगे कुछ भी नहीं मिलेगा समझे
कल ही कोई ख रहा था की रघुवंस दुबे की बिटिया हरिहर के लौडे के साथ भाग गई ,पास में खड़े बलभद्र जिन्हें बिना बोले रहा नहीं जाता ,अपच की बीमारी से ग्रसित है कुछ रहा होगा ,तभी तो भागी है कुछ न होता तो क्यो भागती भला राम खिलावन सोचने लगा मतलब कुछ लड़कियों को भगाने में अपना योगदान देता है ये तो बडा लफडे वाला लगता है क्या किया जाए कुछ के लिए कुछ करना पड़ेगा ऐसा मन राम खिलावन का हो रहा था वे चुपचाप इसी mishan में लगे है की कुछ मिले तो कुछ करे pahale तो कुछ को दे marege फ़िर कुछ karege पर जब मिले tab na
ramkhilavan का कुछ को ले कर vichalan swabhavik है manav है आप जैसा नहीं की कुछ को dudane की कोशिश क्या सोचते भी नहीं है आप अकेला ramkhilavan क्या डूड payega कुछ को ,कुछ तो tamam bagra है पर पकड़ में नहीं आ रहा है यही तो smasya है,बलभद्र के ऊपर से तो उसका vishvas tb से ud गया जब से उसने कहा था की रघुवंस की बिटिया भागने में भी कुछ था tb भी उसने उसे पकड़ा नहीं पकड़ लेता कुछ karata चाहे न मेरे पास तो lata फ़िर में dekhata उस कुछ को पर नहीं bolege jarur कुछ था ,कुछ है पर pakadege नहीं मेरे पास layege नहीं सब sale कुछ से मिले jule है ऐसा लगता है
कभी कभी ramkhilavan यह भी सोचता है की कही कुछ लोग कुछ के पीछे तो नहीं पड़े है hath धो के कुछ karata चाहे कुछ भी न हो और ये सब कुछ का नाम ले कर उसे badanam कर रहे हो ramkhilavan chintak की mudra में kafi देर तक इसी bat पर चिंतन करते रहे ,chinta तो वे करते नहीं ये आप भी jante है क्यो की chaturai ghatati है
कुछ तो कुछ है पर ये वही janate है जिन्हें कुछ कुछ होता है आप को हुआ है क्या ?कुछ कुछ ramkhilavan यह सोचता है की ये कुछ कुछ कैसा होता है ?आकार लिए होता है या फ़िर निराकार ही होता है वह यह भी सोच रहा है की कुछ और कुछ में अन्तर होता है ऐसा aabhash उसे हुआ और वह achakchiya के ud baida की are कुछ है वह उसे dudane लगा khub duda पर मिला नहीं ,ये कुछ भी क्या bla है ,है भी ,पर है भी नहीं
baharhal राम खिलावन कुछ को खोजने में prayasrat है जिन्हें उनके bap भी नहीं खोज paye पर ramkhilavan का कुछ पे चिंतन jari है